सिर्फ नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ही नहीं, कोविड-19 ने भी एक समाज के तौर हमें कई तरह से उजागर किया है, जैसा अक्सर आपदाएं करती हैं। इन आपदाओं में हमारा सबसे अच्छा और सबसे बुरा दोनों सामने आ जाता है। और यह हमें हमारे मौजूदा विचार, दृष्टिकोण और स्वीकृत ज्ञान पर सवाल उठाने और समीक्षा करने के लिए भी प्रेरित करता है। सुधार ऐसे ही होते हैं।
यह सिर्फ नरेंद्र मोदी नहीं हैं। यह धर्म भी है। जिस तरह से हमने विश्वास को तर्क के ऊपर वरीयता दी, उस कारण लोग स्वाभाविक तौर पर स्वच्छता के प्रति लापरवाह रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ईश्वर के नाम पर हो रहा कारोबार मानव जीवन से बड़ा है? यह केवल हमारे लिए ही नहीं बल्कि भविष्य के लिए भी एक प्रश्न है, जिसे दर्शनशास्त्र में विकल्प की तरह रखा जा सकता है। नई वास्तविकताओं के आलोक में इसकी गंभीर समीक्षा की आवश्यकता है। हमें इसके स्वरूप को देखने और यह प्रश्न करने की आवश्यकता है कि धर्म का अर्थ क्या है और हमें इसके बारे में कैसे कदम बढ़ाना चाहिए। कोविड-19 ने इस मिथक को भी तोड़ा है कि धर्म हमें बचा लेगा। प्रचलित प्रथाओं के चक्कर में पड़ने से चीजें केवल बिगड़ी हैं और यह अपने आप में सुपर स्प्रेडर बन गया। इस कारण से संबंधित सरकारों को अपने ही मतदाताओं से झूठ बोलने और डाटा छिपाने जैसा कदम उठाना पड़ा है (जो अपने आप में कोई छोटा पाप नहीं है)।
अब बात करते हैं ज्योतिषियों की। अगर हम उनसे पूछें कि महामारी कब खत्म होगी, संभावना है कि उनका जवाब गलत ही होगा। क्योंकि वे उन पहले लोगों में शुमार नहीं हैं, जिन्होंने महामारी को आते देखा था। उन्हें चैनलों पर ढेर सारा एयर टाइम और अखबार व पत्रिकाओं में खूब कॉलम स्पेस मिला है। भले ही यह सरकार इसे एक गंभीर शोध व अकादमिक विषय में बदलना चाहती है और इसे पूर्ण विज्ञान की तरह मानना निश्चित रूप से सार्वजनिक धन की बर्बादी है, लेकिन तथ्य यह है कि यह सबसे अच्छा टाइम पास है, और हमारे बीच के लालचियों को लुभाने और मूर्ख बनाने का माध्यम है।
इसी पंक्ति में रामदेव जैसे झोलाछाप भी आते हैं। किसी भी अन्य सभ्य समाज और सभ्यता में, उस आदमी पर मुकदमा चलाया जाता, गिरफ्तार किया जाता और ऐसे समय में जब हर जगह लोग मर रहे हैं, तब अफवाहें, झूठ फैलाने व झूठ बोलने के लिए दंडित किया जाता। तब हमारे केंद्रीय मंत्री सार्वजनिक रूप से उसके सेल्समैन की तरह काम कर रहे थे, इससे भी यह दिखता है कि सरकार को इस झोलाछाप को पोसने में कुछ फायदा नजर आता है, वह भी इसलिए नहीं कि सरकार चाहती है कि लोग स्वस्थ रहें, बल्कि वह मूल रूप से अपने वोट बैंक को खुश करने के लिए ऐसा करती है। उसे लगता है कि उसे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है और वह सही है। हम में से कितने लोग विज्ञान को छोड़कर रामदेव की गोली खाकर अपना इलाज कराएंगे? हममें से कितने लोग अपने आस-पास बीमार और मरने वाले लोगों, अपने मित्रों और परिवार को इसकी सलाह देंगे? हममें से कितने लोग इसे अपने बच्चों को देंगे?
अंतत: यही हम और हमारा लोकतंत्र है। मोदी जी, कर्म, किस्मत, नक्षत्रों को दोष देना आसान है, लेकिन वास्तविकता के लिए सामूहिक स्तर पर एकात्म होकर सोचने की जरूरत है कि हम किस तरह से जीना चाहते हैं और एक देश व नागरिक के रूप में अपने जीवन के लिए कैसा नेतृत्व चाहते हैं। ऐसा करने के लिए हमें सक्रिय होना होगा और सवाल करने होंगे। हमें झूठ और भ्रमित करने वाला डाटा पकड़ा दिया जाता है, क्योंकि हमने इन पर सवाल नहीं उठाया। खराब वेंटिलेटर, पीएम केयर फंड, लोगों को एक ऐसी वैक्सीन देने का निर्णय जिसके परीक्षण के नतीजों का इंतजार चल रहा था। ऐसे ढरों सवाल हैं।
खराब स्वास्थ्य सुविधाओं, डॉक्टर, बेड व ऑक्सीजन की कमी को दोष देना आसान है, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि हमने ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिए इस सरकार को नहीं चुना। हाल के एक सर्वेक्षण के अनुसार, हम भारतीय अभी भी नरेंद्र भाई से काफी खुश हैं। हालांकि ऐसे खुश लोगों को वास्तव में देखना वाकई अच्छा लगेगा। इसके लिए उन्हें दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यह हम ही हैं जिन्हेंं इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि इतने वर्षों में भारत का प्रदर्शन कितना खराब रहा है, चाहे बात अर्थव्यवस्था की हो, आजादी की हो, लोकतांत्रिक विरोध की हो, बेरोजगारी की हो, महंगाई की हो, कश्मीर की हो, अयोध्या में भूमि घोटाले की हो, लद्दाख में चीन से टकराव की हो या फिर कोविड के कारण आई तबाही की हो। उन्होंने वही किया जो वह सबसे बेहतर तरीके से कर सकते थे। इस देश को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई है। हमारी प्रति व्यक्ति जीडीपी बांग्लादेश से भी कम है, यह कुछ ऐसा है जिसके बारे में किसी ने सोचा भी नहीं होगा। हम इससे खुश और संतुष्ट हैं, यह एक अद्भुत बात है, जो हमें और हमारे लोकतंत्र को एक महान केस स्टडी बनाती है।
बेशक एक विचारधारा है, जो मानती है स्थिति और बुरी हो सकती थी। और यह संभव है। अभी यह सरकार दो साल और हम पर शासन करेगी।
लोकतंत्र में किसी देश को सिर्फ प्रधानमंत्री के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। यह बात अब बिना किसी संदेह के प्रमाणित हो गई है। देश को चलाने में भूमिका और जिम्मेदारी को लेकर पूरी तरह दोषी नहीं होने पर भी अब सवाल पूछने, खुद को रीसेट करने और जिम्मेदार महसूस करने का समय आ गया है। हां, यह सच है कि हमें महान शासन का सपना बेचा गया था, लेकिन सवाल पूछना, व्यवस्था व उससे जुड़े लोगों को जिम्मेदार ठहराना हमारा काम था। चूंकि हम अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहे हैं इसलिए सिस्टम ने हमारे सामने सवाल छोड़ दिया है।
हमें अपने अंदर के सबसे बुरे से अपने अंदर के सबसे अच्छे को बचाना होगा, यही विकास की प्रक्रिया है। यह एक सामान्य समझ भी है, जिसका समय अब आ गया है।
(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं। वे वाइब्स ओफ इन्डिया की राय या विचारों का प्रतिबिंब नहीं हैं।)