वह शायद कॉर्पोरेट प्रफेशनल हो सकते हैं। लेकिन वह हैं सांसद। साथ ही क्रिकेट प्रेमी और सामुदायिक नेता भी है। इतना ही नहीं, वह दुनिया में कहीं भी अपने खर्च पर छुट्टियों का आनंद उठा सकते हैं।लेकिन, परिमल नथवानी को सबसे ज्यादा सुकून मिलता है सासन गिर में। वैसे धन अर्जित कर लेने या पेशेवर पहचान बना लेने के बाद इस तरह की बात कोई नई नहीं है।
PN के नाम से मशहूर परिमलभाई कहते हैं, “जब मैं कुछ भी नहीं था, सिर्फ भारत का एक बहुत ही आम नागरिक था, तब मैं यहां बस या ट्रेन से आया करता था फिर कई दिनों तक रहता था। गिर के ये शेर मुझे प्रकृति के साथ एक होने की अकल्पनीय शांति और संतुष्टि देते हैं।”
गिर दुनिया में एशियाई शेरों का एकमात्र निवास स्थान है। अब परिमलभाई भी जंगल में अपने पसंदीदा जानवरों को देखने के लिए अधिक समय बिताने के मकसद से वहां एक घर बना रहे हैं। सासन गिर, जैसा कि वे कहते हैं, “शांति का बिंदु” है। परिमलभाई यहां घर जैसा महसूस करते हैं। कहते हैं कि यहां पक्षियों की चहचहाहट के बीच, सुखदायक हवा, जंगल का सन्नाटा-जो केवल शेर की दहाड़ से भंग होता है या शेरों के खतरनाक आगमन की सूचना देने वाली बंदर की सीटीनुमा अनुपम आवाज से।
वह याद करते हुए कहते हैं, मैं जाम खंबालिया का रहने वाला हूं। मेरे पास परिवहन के जो भी साधन होते, उनसे अक्सर इन 215 किलोमीटर की यात्रा करता था। ऐसा लगता है कि 35 साल से अधिक समय पलक झपकते ही बीत गए है। बता दें कि परिमलभाई नियमित रूप से गिर जाते हैं। राजश्री चाय और नाश्ते के अधिकांश दुकानदार से लेकर गिर के वनरक्षकों और वनपालों तक हर कोई परिमलभाई को जानते हैं और शेरों के संरक्षण में उनके योगदान की बात विनम्रता से स्वीकार करते हैं।
अब परिमलभाई रिलायंस में कॉर्पोरेट मामलों के अध्यक्ष हैं, (फिर से धीरूभाई अंबानी के करीबी संबंधों के साथ एक और परिवार, जिसकी दृष्टि से वे विनम्रतापूर्वक जीवन में बड़े होने की बात स्वीकार करते हैं), तेलंगाना से राज्यसभा सांसद, परोपकारी और सामुदायिक नेता हैं।उनका जीवन बदल गया है लेकिन इससे सासन गिर और गुजरात के शेरों के प्रति उनके प्यार और लगाव में कोई बदलाव नहीं आया है।
जंगल को लेकर उत्साही परिमलभाई ने वाइब्स ऑफ इंडिया को बताया की, “बोव थयु, मारू घर ज गिर मां होवु जोइए’ (बस, अब मेरे पास गिर में एक घर होना चाहिए)।” उन्हें आसपास अधिक लोग नहीं चाहिए। वह मुस्कुराते हुए कहते हैं, “गिर में लगभग 700 शेर हैं। उनको देखना, उनके संरक्षण के लिए काम करना, शेरों के लिए विशेष एम्बुलेंस के रूप में सुविधाओं को बढ़ाना ही मुझे पर्याप्त काम दे देता है।”
यह याद करते हुए कि 35 साल पहले वह एक ड्राई क्लीनर का खर्च नहीं उठा सकते थे, कहते हैं कि वह राज्य परिवहन की सामान्य बस से आने के बाद जंगल में घूमते, फिर अपने कपड़े धोते और किसी सस्ते आवास में रहते जहां सभी तरह के टैक्स के बाद हर रात का किराया दस रुपये होता था।
गिर, उसके गौरव और एशियाई शेरों के प्रति इस तरह शुरू हुआ उनका लगाव आज तक कायम है। रिलायंस के तत्वावधान में, परिमलभाई ने यहां निर्माण कराया है और अभी भी कम से कम 3000 आधुनिक कुओं की योजना है, जो यह सुनिश्चित कर सके कि इनमें कोई शेर न गिरे। हम नहीं जानते थे कि जब शेर रात में चलते हैं, तो वे सीधे या ऊपर की ओर देखते हैं। ऐसे में उनके कुओं में गिरने का खतरा रहता है। इस मुद्दे को परिमलभाई ने संभाल लिया था।
दूसरे, वहां रहने वाले मालधारी का शेरों के साथ अस्पष्ट-सा लगाव है, जो अक्सर उनके मवेशियों को खा जाते हैं। फिर भी, वे शेरों की पूजा करते हैं और बाहर जाने से इंकार करते हैं। परिमलभाई इस लगाव का सम्मान करते हैं और यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ियां भी इसका पालन करें।
अब वह सुपर फाइव स्टार में चाय की चुस्की ले सकते हैं, लेकिन परिमलभाई कहते हैं कि उन्हें आज भी उस एक रुपये की चाय का स्वाद याद है, जो उन्होंने राजश्री में पी थी। राजश्री चाय के मालिक वाइब्स ऑफ इंडिया को बताते हैं, “परिमलभाई अभी भी वही आदमी हैं। वह सभी स्टाफ और ग्रामीणों को नाम से जानते हैं। हमारे लिए भी परिवार की तरह ही हैं। पैसे या एक्सपोजर ने उन्हें बिल्कुल भी नहीं बदला है।” वह बताते जाते हैं कि, परिमलभाई को शेरों से इतना प्यार है कि उन्होंने भारत सरकार को हमारे मौजूदा राष्ट्रीय पशु (बाघ) को राष्ट्रीय पशु के रूप में शेर से बदलने का प्रस्ताव दिया। उनका तर्क वाजिब है। यह केवल भारत है, जिसके पास इस तरह के शेर हैं। यहां तक कि हमारी प्रस्तावना, संविधान, अशोक स्तंभ में भी शेर हैं।
2 अक्टूबर को शुरू हुए राष्ट्रीय वन्य जीवन सप्ताह को चिह्नित करने के लिए परिमलभाई ने 15 मिनट की एक विशेष वृत्तचित्र साझा की। नाम है-गिर लॉयन: माई फर्स्ट लव। वाइब्स ऑफ इंडिया के पाठकों और दर्शकों के लिए यह वृत्तचित्र यहां उपलब्ध है:
करीब तीन साल पहले परिमल नथवानी ने ‘गिर लॉयन: प्राइड ऑफ गुजरात’ नाम से एक किताब भी लिखी थी। सरकार और परिमलभाई के व्यक्तिगत ध्यान के कारण पिछले कुछ दशकों में गिर में शेरों की आबादी 30 से 700 हो गई है।”
नथवानी ने शेरों को जंगल में उनका सही स्थान वापस दिलाने का संकल्प लिया है। “शेर यहां के राजा हैं और यह जंगल अब उनके लिए पर्याप्त नहीं है (आ जंगल हवे नानु पडे छे)।” प्राकृतिक आवासों पर अतिक्रमण करने वालों के कारण, जंगल के निवासियों के पास बाहर निकलने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। “हाल ही में आए चक्रवातों के दौरान जंगल में तीन लाख से अधिक पेड़ गिर गए और हमें सहायता के लिए सरकार को लिखना पड़ा। अगर पेड़ गिरते हैं, तो वे शेरों को एक सीमित जगह के अंदर रोक देते हैं और इस तरह जंगल भी छोटा होने लगता है। इस तरह के आकार में गिर अभयारण्य के छोटा होने के मुद्दे पर शेरों को मध्य प्रदेश या गुजरात के भीतर भी स्थानांतरित करने के प्रस्ताव आए हैं। लेकिन परिमलभाई दृढ़ता से मानते हैं, “यह शेरों का घर है। सासन गिर शेर राजा का घर है। क्या हमें उन्हें उनके घरों से उखाड़ फेंकने का नैतिक अधिकार है? इसके बजाय हमें यहीं जंगल के विस्तार के बारे में सोचना चाहिए।”
शेर शब्द जंगली प्राणी की छवि को जोड़ता है, जो मानव जीवन और पशुओं को नुकसान पहुंचाने के लिए है। लेकिन सासन गिर में शेर स्थानीय लोगों के साथ मिलजुल कर रहते हैं। “उन्हें स्थानांतरित करने के बजाय हम इन शेरों के लिए और अधिक जगह बना सकते हैं। हमें लोगों को स्थानांतरित करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि क्षेत्र में मालधारी शेरों के साथ पूर्ण तालमेल के साथ रहते हैं। अगर शेर उनके पशुओं को नुकसान भी पहुंचाते हैं, तो भी ग्रामीण नाराजगी नहीं जताते। वन विभाग इनकी भरपाई करता है। जब मानव जीवन को नुकसान पहुंचाने की बात आती है, तो शेर तभी नुकसान पहुंचाते हैं जब हम उन पर हमला करते हैं या उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं। “जंगल मा मंगल करवु होई तो सिंह ने जया आपवी ज पडे।”
ट्रेन और वाहन दुर्घटनाओं के कारण शेर की घातक मौतों, खुले कुएं में गिरने पर उनकी चिंता ने ही उन्हें शाही शेर-राजा की भलाई की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने रिलायंस ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के साथ रात के समय दुर्घटनाओं को रोकने के लिए चारों तरफ ग्रिल के साथ 2,000 खुले कुओं को कवर किया। वह कहते हैं, “हमारा लक्ष्य 3,000 कुओं को कवर करना और शेरों को उसमें गिरने से बचाना है।”
शेरों के ट्रेनों की चपेट में आना दरअसल एक और मुद्दा है, जिस पर नथवानी काम कर रहे हैं। वह कहते हैं, “गिर में ट्रेनें एक निश्चित गति से आती हैं और यही कारण है कि शेरों को बचाना मुश्किल हो जाता है। मैंने इस मुद्दे को रेल विभाग के सामने रखा था। हमें बताया गया था कि वे शेरों की सुरक्षा के लिए ट्रेनों की गति सीमा में संशोधन कर सकते हैं। इसे बेहतर तरीके से लागू करने की जरूरत है और हम इस पर काम कर रहे हैं।”
इसके अलावा, अत्याधुनिक बुनियादी ढांचे के साथ एक सुसज्जित शेर अस्पताल और शेर परिवार की सुरक्षा के लिए डॉक्टरों की एक योग्य टीम भी मौजूद है। वह कहते हैं, “स्वास्थ्य सुविधाएं मुख्य जंगल से 3 किलोमीटर से अधिक दूर हैं। ऐसे में इससे पहले कि शेर केंद्र तक पहुंचें, वे मर चुके होते हैं। हम इस मुद्दे पर काम करना चाहते थे और इसलिए हमें एम्बुलेंस मिलीं, जिससे शेरों का इलाज रास्ते में भी किया जा सकता है और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया भी कराई जा सकती हैं।”