कांग्रेस और आप गुजरात में भाजपा का किला ध्वस्त करने की कोशिश में जुटी हुई हैं। राज्य की सत्ता में सबसे मजबूत राजनीतिक दल को उखाड़ने के लिए आखिर उनका गेमप्लान क्या है?
यह गुजरात में मॉडलों का टकराव है। राज्य में भाजपा लगातार 27 वर्षों से सत्ता में है। सिर्फ 1996 को छोड़ कर, जब शंकरसिंह वाघेला कांग्रेस के बाहरी से एक साल के लिए मुख्यमंत्री बने थे। किसी भी अन्य राज्य में सत्ता विरोधी लहर और ढिलाई के कारण लोकतांत्रिक तरीके से बदलाव के प्रति लोगों की इच्छा आदर्श होती। लेकिन गुजरात तो गुजरात है। अन्य राज्यों से अलग।
विडंबना यह है कि अधिकांश मतदाताओं को एक और कार्यकाल के लिए भाजपा को फिर से चुनने (the majority of voters do not mind re-electing the BJP for another term) में कोई आपत्ति नहीं है। गुजरात पहला राज्य था, जहां भाजपा ने पहली बार पूर्ण बहुमत “हासिल” किया और 1995 में अपनी सरकार (first state where the BJP “earned” an absolute majority and formed its government in 1995) बनाई। बता दें कि अब तक भाजपा गुजरात में सबसे मजबूत राजनीतिक दल है और एक और कार्यकाल जीतने के लिए तैयार है। गुजरात की 182 सीटों के लिए दिसंबर में चुनाव होना है। 2017 के चुनावों में कांग्रेस ने 32 वर्षों में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 182 सीटों में से 77 पर जीत हासिल की थी। हालांकि इसके बाद उसके कई विधायक भाजपा में शामिल हो गए।
तो, गुजरात के 2022 के चुनावों में इतनी दिलचस्पी क्यों? इसलिए कि 1990 के बाद पहली बार राज्य में कड़ा त्रिकोणीय मुकाबला (serious triangular contest) देखने को मिलेगा। 1990 के विधानसभा चुनाव में जनता दल, भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हुई थीं। कांग्रेस ने 33 सीटों पर जीत हासिल की, जो तीनों में सबसे कम थी। हालांकि किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला, फिर भी जनता दल को 70 और बीजेपी को 67 सीटें मिली थीं। उस समय गुजरात में जनता दल-भाजपा की मिलीजुली सरकार बनी थी।
इस बार गुजरात को भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में से चुनना है। पिछले 32 वर्षों में किसी अन्य पार्टी ने भाजपा की चुनावी मशीनरी को उस तरह से चुनौती नहीं दी है, जिस तरह अबकी आप दे रही है।
इसलिए यह विभिन्न मॉडलों का टकराव (clash of different models) है। यदि आप अपने दिल्ली मॉडल को लागू करने के लिए दृढ़ है, तो कांग्रेस राज्य में राजस्थान मॉडल को दोहराने की इच्छुक है। गुजरात मॉडल में भाजपा का विश्वास अटूट है।
आइए देखें कि प्रत्येक मॉडल औसत गुजराती को क्या देता है।
बीजेपी का गुजरात मॉडल
यह सब विकास, प्रगति और समृद्धि के बारे में है। ऐसा बीजेपी का दावा है। बीजेपी अब यह नहीं कहती कि वह हिंदुओं और उनके हितों के लिए खड़ी (What BJP does not say anymore is that it stands for Hindus and their interests) है।
भाजपा निश्चित रूप से बहुलवाद पर गर्व नहीं (doesn’t pride itself on pluralism) करती- ऐसा नहीं है कि गुजराती शिकायत कर रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि मुसलमान भी सत्ताधारी पार्टी के प्रति उतने खफा नहीं हैं।
संख्याएं खुद सब बता देती हैं: गुजरात में 9.67% मुस्लिम और 0.96% जैन हैं।
गुजरात में ईसाई आबादी जैनियों की तुलना में कम है। तीव्र ध्रुवीकरण के लिए मशहूर गुजरात को भारत की भगवा प्रयोगशाला (Gujarat is dubbed the Saffron laboratory of India) कहा जाता है, जिसमें भाजपा और आरएसएस राज्य में अपनी सामाजिक इंजीनियरिंग रणनीतियों के साथ प्रयोग कर रहे हैं।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि गुजरात मॉडल दरअसल रणनीतिक रूप से अपने शक्तिशाली हिंदुत्व की पुष्टि करते हुए शहरी समर्थक, उद्यमिता समर्थक और उच्च जाति समर्थक (pro-urban, pro-entrepreneurship and pro-upper caste) है।
गुजरात में शहरी आबादी लगातार बढ़ रही है। वर्तमान में गुजरात की शहरी आबादी 44% है, जो 2001 में 37.4% थी। शहरी आबादी में वृद्धि और 2009 में भाजपा द्वारा किए गए परिसीमन ने उसके लिए लाभ का काम (The increase in urban population and the delimitation exercise the BJP undertook in 2009 have worked to its benefit) किया है।
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे, तो उन्होंने बड़ी चतुराई से विभिन्न हिंदू जातियों को हिंदू एकता (amalgamated various Hindu castes) से जोड़ दिया। इनमें गरीब से गरीब भी शामिल थे। भाजपा गुजराती पहचान के गौरव ‘गुजरात नी अस्मिता’ का आह्वान करती है।
फिर बहुसंख्यकवाद को खारिज कर दिया जाता है और छद्म धर्मनिरपेक्षता प्रबल (plurality is dismissed and pseudo-secularism prevails) हो जाती है।
इसे डर कहें, हिंदू समर्थक के लिए सच्चा प्यार, या एहसान लेने की जरूरत- कई मुसलमानों ने 2012 के बाद भाजपा के प्रति वफादारी की शपथ (Call it fear, genuine love for the pro-Hindu, or the need to extract favours, several Muslims have sworn loyalty to the BJP, post-2012) ले ली है।
यह बताता है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने आखिर कैसे प्रचंड जीत दर्ज की। भाजपा ने सभी 26 सीटों पर जीत हासिल की थी, जो अपने आप में उपलब्धि है। कांग्रेस का पूरी तरह से सफाया कर दिया। आज गुजरात में हालात कुछ और होते अगर नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने अपने पहले के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को 2021 में पूरे मंत्रिमंडल के साथ बर्खास्त नहीं किया होता।
रूपाणी की बर्खास्तगी के साथ भाजपा ने स्पष्ट संदेश दिया है: ‘भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अगर वह गुजरात के मुख्यमंत्री हैं, और भ्रष्ट या अक्षम या दोनों हैं-तब भी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।’
इस बीच, गुजरात में मोदी का जादू 2014 के बाद भी कम नहीं हुआ है। वह गुजरात में भाजपा के लिए करिश्माई, वोट खींचने वाले नेता बने हुए हैं।
चूंकि गुजरात पहला राज्य है जहां भाजपा ने 1995 में पूर्ण बहुमत हासिल किया था, इसलिए यह आरएसएस का भी पसंदीदा बना हुआ है। ऐसा लगता है कि मोदी का उत्साह चरम पर पहुंच गया है, यहां तक कि केंद्र और उन राज्यों में भी गुजरात मॉडल को दोहराया गया, जहां भाजपा सत्ता में थी। गुजरात में सफल कन्या केलावणी (लड़कियों की शिक्षा), केंद्र सरकार की नवाचार (innovation) के लिए योजनाएं, नए उद्योगों के लिए स्टार्टअप और प्रोत्साहन आदि की नकल दिल्ली में भी शुरू की गई है।
आप का दिल्ली मॉडल
आम आदमी पार्टी ने खुद को जोश और चतुराई के साथ सफलतापूर्वक लॉन्च किया है। ऐसा मुख्य विपक्ष के रूप में कांग्रेस राज्य में दो दशकों से अधिक समय से करने में विफल रही है।
जैसा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कहते हैं, इस समय गुजरात में विधानसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी का अभियान सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ “जन आंदोलन” में बदल गया है।
आप और कांग्रेस दोनों ही समाज के विभिन्न वर्गों को लुभाने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन आप इसमें अधिक सफल हो रही है। कांग्रेस के विपरीत, आप गुजरात में सड़कों पर उतरी है। पीड़ित पुलिसकर्मियों से लेकर राज्य परिवहन चालकों तक, गुजरात के लोगों के पास अपनी समस्याओं के समाधान के लिए आप से संपर्क करने का (people in Gujarat have reason to approach AAP for solutions to their problems) कारण है।
अन्य बातों के अलावा बेहतर वेतनमान, ग्रेड संशोधन और बेहतर काम करने की स्थिति की मांग आंदोलन का कारण बनी हुई है।
निराश गुजराती बदलाव की मांग कर रहे हैं। आप अपने दिल्ली मॉडल के माध्यम से पुलिस से लेकर राज्य परिवहन कर्मचारियों तक के लिए वेतन में वृद्धि का वादा (making promises to hike the salaries of several government services, ranging from police to state transport staff) कर रही है।
इसके अलावा आप ने राज्य में शिक्षा और बिजली सब्सिडी मॉडल को लागू करने का वादा किया है। खास बात यह है कि केजरीवाल मोदी से ज्यादा बार गुजरात पहुंचे हैं। अकेले सितंबर में केजरीवाल ने पांच बार गुजरात का दौरा किया। उन्होंने कई वादे किए हैं। इनमें प्रति माह 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली, प्रत्येक युवा को नौकरी, बेरोजगारों को रोजगार मिलने तक 3,000 रुपये मासिक भत्ता और 18 वर्ष से अधिक उम्र की सभी महिलाओं के लिए 1,000 रुपये (free electricity up to 300 units per month, a job for every youth, a Rs 3,000 monthly allowance for the unemployed till they find employment, and Rs 1,000 for all women above the age of 18) शामिल हैं।
दिल्ली मॉडल का हवाला देते हुए उन्होंने गुजरात में सरकार द्वारा संचालित स्कूलों के “बड़े बदलाव”, बच्चों को मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और राज्य में सत्ता में आने पर मुफ्त स्वास्थ्य सेवाओं का वादा (he has also promised a “grand makeover” of the government-run schools in Gujarat, free and quality education to children and free healthcare services to the state if voted to power) भी किया है।
गुजरात आप का नया क्षेत्र है, लेकिन पार्टी ने स्थानीय मुद्दों पर अपना होमवर्क किया है। केंद्रीय मंत्री अमित शाह को अहमदाबाद में एक सरकारी स्कूल का उद्घाटन करना पड़ा, यह इस बात का प्रमाण है कि आप ने गुजरात के मानस में किस तरह से दबदबा बना लिया है।
साथ ही, दिल्ली मॉडल का हिंदुत्व की ओर सूक्ष्म झुकाव गुजरात में प्रशंसा बटोर रहा है। आप ने गुजरात में लगभग समाप्त हो चुकी कांग्रेस के लिए न केवल एक व्यवहार्य विकल्प (viable alternative) की पेशकश करने की योजना बनाई है, बल्कि पार्टी ने शासन में गुणात्मक परिवर्तन (qualitative change) का भी वादा किया है। बेरोजगारी और महंगाई के कारण मोहभंग के शिकार हो चुके भाजपा के समर्पित मतदाता भी इसे लेकर उत्सुक हैं।
ठेठ गुजराती हिंदू मतदाता कांग्रेस के लिए अल्पसंख्यक तुष्टीकरण को एक बड़ी बाधा मानते हैं। दूसरी ओर, शाहीन बाग या किसी अन्य अल्पसंख्यक-केंद्रित विरोध पर आप की चुप्पी उन्हें गुजरात में फिलहाल बढ़त (brownie points) दिला रही है, जिसे कच्ची हिंदुत्व छवि को दिखाने में कोई गुरेज नहीं है। अगर भाजपा रामभक्त है, तो केजरीवाल की पार्टी आप हनुमान भक्त है। आम धारणा यह है कि आप काडर गुजरात मानस में सफलतापूर्वक प्रवेश (The general impression is that the AAP cadre has successfully percolated into the Gujarat psyche) कर चुका है।
कांग्रेस का राजस्थान मॉडल
जब तक आप ने गुजरात में दिल्ली मॉडल का वादा नहीं किया था, तब तक यह कहीं नजर नहीं आ रहा था। कांग्रेस अब भी मानती है कि गुजरात में उसके पास मजबूत जमीनी स्तर पर एक संगठन है, जो गलत है। आठ साल हो गए हैं, जब पीएम मोदी ने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में दिल्ली की सत्ता में बने रहने के लिए गुजरात मॉडल का इस्तेमाल किया।
फिर भी, अभी के लिए कांग्रेस इस बात का पर्दाफाश करने के लिए तैयार है कि गुजरात मॉडल कितना उथला और नकली (Congress is geared up to expose how shallow and fake the Gujarat Model is) है। समस्या यह है कि गुजरात के मतदाता इस तर्क को मानने को तैयार नहीं हैं। इसके अलावा, कांग्रेस का कम आक्रामक तर्क कि भाजपा-आप मौसेरे भाई कैसे हैं, भाजपा और आप के बड़े अभियानों में खो गया है।
कांग्रेस मतदाताओं को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि कैसे पीएम के लिए मोदी और गुजरात के लिए आप, कांग्रेस के वोटों में सेंध लगाने के लिए आरएसएस की एक विशिष्ट रणनीति है।
कांग्रेस का कहना है कि गुजरात में बीजेपी-आरएसएस पंजाब मॉडल चाहती है। इसका मतलब यही है कि अगर भाजपा सत्ता में नहीं आ सकती है, तो वह आप का समर्थन करेगी और कांग्रेस को हर कीमत पर दूर (it means that if the BJP cannot get into power, it will prop up AAP and keep Congress away at all costs) रखेगी। यह पूरी तरह से गलत भी नहीं है। गुजरात में आप आराम से बीजेपी की तुलना में कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने की अधिक संभावना रखती है।
अफसोस की बात है कि कांग्रेस को बढ़ावा देने के बजाय पार्टी भाजपा और आप के मॉडल को खारिज करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है। कांग्रेस यह साबित करने में ऊर्जा लगा रही है कि ये मॉडल नकली क्यों हैं और करदाता के खर्च पर कितनी व्यापक मार्केटिंग की जा रही है।
कांग्रेस ने आप के मोहल्ला क्लीनिक की विफलता पर जमकर हमला बोला है, लेकिन भाजपा द्वारा इसकी आलोचना किए जाने के बाद ही। कांग्रेस ने आप के शिक्षा मॉडल को भी खारिज करने का प्रयास किया, यह बताते हुए कि कैसे पार्टी केवल 54 स्कूलों को संसाधन आवंटित कर रही थी, जिससे 950 से अधिक अन्य स्कूलों के साथ अन्याय हुआ। कांग्रेस ने अतीत में दरअसल गुजरात में नकारात्मक प्रचार का अनुभव किया है, जिससे लगातार भाजपा को लाभ हुआ।
अब जब आप एक ताकत के रूप में उभरी है, तो कांग्रेस पार्टी पर तीखा हमला कर रही है। यह कहते हुए कि उसका मॉडल जनहित से अधिक प्रचार पर आधारित है। अभी तक तो गुजरात में कांग्रेस चुनाव प्रभारी अशोक गहलोत तमाम गुटबाजी (stayed away from all the bickering) से दूर रहे हैं। फिर भी वह राजस्थान मॉडल का वर्णन करने में ही व्यस्त हैं।
कांग्रेस का घोषणापत्र अक्टूबर में आएगा। जाहिर है, वह राजस्थान मॉडल पर अधिक ध्यान केंद्रित करेगा। इसमें बताया जाएगा कि यह समाज के मध्यम, निम्न मध्यम और गरीब तबके को कैसे लाभान्वित करेगा। राहुल गांधी के पुराने चहेते दीपक बाबरिया को यह पता लगाने का काम सौंपा गया है कि गुजरात के लोग, खासकर गरीब से गरीब व्यक्ति, देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी से क्या चाहते हैं।
कांग्रेस गुजरात में पहली राजनीतिक पार्टी थी, जिसने पुरानी पेंशन योजना की बहाली की घोषणा की, जो राज्य में विवाद का विषय है। अरविंद केजरीवाल ने भी यही वादा किया है। मुख्यमंत्री चिरंजीवी योजना एक प्रभावशाली सार्वजनिक-केंद्रित योजना है। इसमें सड़क दुर्घटना पीड़ितों को अस्पताल ले जाने वालों को 5000 रुपये नकद दिए जाते हैं। यह राजस्थान मॉडल का एक और पहलू है, जिसे गुजरात कांग्रेस लागू करने की इच्छुक होगी।
इसके अलावा, अच्छे लोगों को उनके सार्वजनिक कार्यों के लिए प्रमाण पत्र भी दिए जाते हैं। चिरंजीवी जीवन रक्षा योजना भी है, जो अमेरिकी चिकित्सा प्रणाली (it bears striking similarities to the US medical system) जैसी है। इस योजना के तहत सड़क दुर्घटना में घायल किसी को भी मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना से संबद्ध निजी और सरकारी अस्पतालों में 72 घंटे तक मुफ्त इलाज का लाभ मिलता है। यह राजस्थान के इस स्वास्थ्य मॉडल को कांग्रेस गुजरात में भी लागू करना चाहती है।
ग्रामीण आबादी और दुग्ध सहकारी समितियों को लुभाने (To woo the rural population and milk cooperatives) के लिए गुजरात के डेयरी किसानों को राजस्थान मॉडल के समान खरीदे गए प्रत्येक लीटर दूध के लिए 5 रुपये का बोनस देने का वादा किया गया है। कांग्रेस सब्सिडी देने के राजस्थान मॉडल को बिजली क्षेत्र में भी लागू करना चाहती है। इसने सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा प्रदान की गई रात की आपूर्ति के बजाय गुजरात के किसानों को दिन के समय बिजली देने का वादा किया है।
पार्टी ने जेनरिक मेडिसिन (Generic Medicines) संबंधी राजस्थान को भी लागू करने का वादा किया है। राजस्थान में सरकार राज्य भर के प्रमुख स्थानों में 15,000 दवा वितरण केंद्रों के माध्यम से आवश्यक दवाएं मुफ्त देती है।
इसके अलावा, राजस्थान मॉडल को कायम रखते हुए कांग्रेस प्रत्येक नागरिक के लिए 5 लाख रुपये का बीमा कवर देना चाहती है। स्वाभाविक रूप से पार्टी ने हमें यह याद दिलाना बंद नहीं किया है कि जब कोविड महामारी फैल रही थी, तब स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों को हल करने में गुजरात विफल रहा था।
ऐसे में यह पूरी तरह से स्पष्ट है: दिसंबर में एक जोरदार चुनावी मुकाबला हमारा इंतजार कर रहा है।
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