लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में केंद्रीय क़ानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया कि इस साल 24 जुलाई तक ज़िला और अधीनस्थ अदालतों में 1,01,837 मामले 30 वर्षों से अधिक समय से लंबित थे. इससे पहले उन्होंने राज्यसभा में बताया था कि देश की विभिन्न अदालतों में लंबित मामले पांच करोड़ का आंकड़ा पार कर गए हैं.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने लोकसभा में शुक्रवार (28 जुलाई) को सूचित किया गया कि विभिन्न उच्च न्यायालयों में 30 वर्षों से अधिक समय से 71,000 से अधिक मामले लंबित हैं.
एनडीटीवी में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, सदन को यह भी बताया गया कि निचली अदालतों में 30 साल से अधिक पुराने 1.01 लाख से अधिक मामले लंबित हैं.
एक सवाल के लिखित जवाब में केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि इस साल 24 जुलाई तक उच्च न्यायालयों में 30 साल से अधिक समय से 71,204 मामले लंबित थे. इसी तरह जिला और अधीनस्थ अदालतों में 1,01,837 मामले 30 वर्षों से अधिक समय से लंबित थे.
इससे पहले बीते 20 जुलाई को उन्होंने संसद के उच्च सदन को बताया था कि देश की विभिन्न अदालतों में लंबित मामले पांच करोड़ का आंकड़ा पार कर गए हैं.
मेघवाल ने कहा था कि विभिन्न अदालतों – सुप्रीम कोर्ट, 25 हाईकोर्ट और अधीनस्थ अदालतों में 5.02 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं.
भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इंटीग्रेटेड केस मैनेजमेंट सिस्टम (आईसीएमआईएस) से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, 1 जुलाई तक सर्वोच्च न्यायालय में 69,766 मामले लंबित हैं.
उन्होंने कहा था, ‘राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, 14 जुलाई तक उच्च न्यायालयों और जिला और अधीनस्थ अदालतों में लंबित मामलों की कुल संख्या क्रमश: 60,62,953 और 4,41,35,357 है.’
मंत्री ने शुक्रवार को लोकसभा में कहा कि अदालतों में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या के लिए न्यायाधीशों की रिक्तियां एकमात्र कारण नहीं है.
अदालतों में मामलों के लंबित होने के लिए कई कारक जिम्मेदार हो सकते हैं, जिनमें भौतिक बुनियादी ढांचे और सहायक अदालती कर्मचारियों की उपलब्धता, शामिल तथ्यों की जटिलता, साक्ष्य की प्रकृति; बार, जांच एजेंसियों, गवाहों और वादियों सहित हितधारकों का सहयोग और नियमों और प्रक्रियाओं का उचित प्रयोग शामिल हैं.
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उक्त रिपोर्ट द वायर द्वारा सबसे पहले प्रकाशित किया जा चुका है।