अहमदाबाद: गुजरात हाई कोर्ट के सुझाव के बाद राज्य सरकार ने मोरबी सस्पेंशन ब्रिज त्रासदी के पीड़ितों के लिए मुआवजे की राशि बढ़ा दी है। बता दें कि 30 अक्टूबर को मच्छू नदी पर पुल टूटकर गिर जाने से 135 लोगों की मौत हो गई थी।
सरकार ने मुआवजा बढ़ाने की जानकारी हाई कोर्ट को दे दी है। बताया है कि उसने 10 दिसंबर को मृतक (deceased) के परिजनों के लिए मुआवाजा 4 लाख रुपये बढ़ाकर 10 लाख रुपये करने का फैसला किया है। इसमें से 8 लाख रुपये मुख्यमंत्री राहत कोष (Relief Fund) से और 2 लाख रुपये प्रधानमंत्री राहत कोष से दिए जाएंगे। इसी तरह घायल हुए 56 लोगों में 40% से अधिक विकलांगता (disability) वाले हर व्यक्ति को 2 लाख रुपये और 40% से कम विकलांगता वाले हरेक 1 लाख रुपये का भुगतान किया जाएगा। महाधिवक्ता (advocate general) ने कोर्ट को बताया कि एक-दो दिन में पैसे दे दिए जाएंगे।
इस बीच, हाई कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार ने मोरबी नगरपालिका के खिलाफ नगरपालिका कानून की धारा-263 और उसके मुख्य अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की, जैसा कि 24 नवंबर को अदालत को आश्वासन दिया गया था।
सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता ने कहा कि नगर पालिका को भंग (dissolution) करने पर विचार किया जा रहा है। लेकिन हलफनामे (affidavit) में कहा गया है कि विशेष जांच दल (SIT) की रिपोर्ट को देखने के बाद फैसला होगा।
इस बीच, राज्य सरकार ने हाई कोर्ट को सीलबंद लिफाफे में एसआईटी की शुरुआती रिपोर्ट सौंप दी है। मुख्य न्यायाधीश अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष शास्त्री की बेंच ने एसआईटी द्वारा की गई सिफारिशों पर ध्यान दिया है। इसमें सार्वजनिक संरचनाओं (public structures) के लिए एक रजिस्टर बनाए रखने और समय-समय पर ऑडिट की जरूरत पर जोर दिया गया है। एसआईटी ने यह भी सुझाव दिया कि ऐसी सुविधाओं का रखरखाव कुशल कर्मियों को सौंपा जाना चाहिए।
एसआईटी की रिपोर्ट से पता चला कि मुख्य केबल सात डोरियों से बनी थी। इनमें से हरेक में सात तार थे। 49 तारों में से 22 में जंग लग चुकी थी और पुल गिरने से बहुत पहले ही टूट चुकी थी।
इतना ही नहीं, 26 अक्टूबर को पुल को जनता के लिए खोलने से पहले इसकी जांच नहीं की गई थी। पुल पर लोगों की आवाजाही को भी नियंत्रित नहीं किया गया था। इसके अलावा, एसआईटी ने कहा कि अजंता मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड ने एक गैर-सक्षम (non-competent) एजेंसी को मरम्मत का काम आउटसोर्स किया था।