“निमित्त मात्र हूं मैं” नाम से है राज्यपाल की जीवनी, मोटी जिल्द वाली इस कॉफी टेबल बुक की 19 प्रतियों के लिए मिला 68,383 रुपये का बिल। साथ में बतौर मरहम मिली जीवनी की एक अतिरिक्त प्रति निःशुल्क।
पहली जुलाई को राज्यपाल कलराज मिश्रा के 80वें जन्मदिन पर उनकी जीवनी का विमोचन हुआ। इसके बाद राजस्थान के सभी 27 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने उनके साथ बैठक की। फिर अपने-अपने सरकारी वाहन से लौट भी गए। लेकिन यह खबर नहीं है। खबर यह है कि लौटने पर उनमें से प्रत्येक के वाहनों में मिले किताबों के दो-दो कार्टन। साथ में हरेक को मिले बिल, जो उनके ड्राइवरों ने दिए। बिल भी 68,383 रुपये का, जो राज्यपाल की जीवनी की 19 प्रतियों के लिए थे। इसका शीर्षक है- “निमित्त मात्र हूं मैं।" हालांकि मरहम के तौर पर उन्हें जीवनी की एक अतिरिक्त प्रति निःशुल्क भी मिली। इतना ही नहीं, जब वे अपने घरों और कार्यालयों में पहुंचे, तो वहां एक और आश्चर्य उनका इंतजार कर रहा था। उन्हें दिए गए बिल में पांच शीर्षक सूचीबद्ध थे, जबकि कार्टन में केवल जीवनी की प्रतियां थीं। बिल के मुताबिक, 3,999 रुपये हर प्रति के हिसाब से कुल हुआ 75,981 रुपये। यह बिल 10 फीसदी की छूट के बाद कुल 68,383 रुपये हो जाता है। जीवनी के सहलेखक हैं राज्यपाल के लंबे समय से ओएसडी गोविंद राम जायसवाल। एक कुलपति ने परेशानी जताते हुए कहा कि इसमें सरकारी खरीद के नियम आदि के बारे में हैं। ऐसे में तकनीकी, स्वास्थ्य, कृषि, पशु चिकित्सा, कानून आदि जैसे विषयों पर आधारित राज्य के 27 विश्वविद्यालयों पर इसे कैसे थोपा जा सकता है? इनकी खरीद को आखिर किस मद में दिखाया जा सकता है? इस बारे में राज्यपाल के सचिव सुबीर कुमार ने कहा- कुलपति "बकवास" बोल रहे हैं। यह गलत और निराधार है।" जीवनी में आरएसएस, फिर जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के साथ मिश्रा के लंबे संबंधों को बताया गया है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक चला आया है। जीवनी के पिछले पेज पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की समीक्षा भी है, जिन्होंने इसे "शानदार कृति" कहा है। इसके 116 नंबर के पेज पर एक मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की तस्वीर है, जिसकी पृष्ठभूमि में बीजेपी का चुनाव चिह्न कमल है। यहां लिखा है-"आइए हम 'नए भारत' के निर्माण के आंदोलन का समर्थन करें। पार्टी से जुड़ें और इस मिशन में हमारे हाथ मजबूत करें। एक भारत श्रेष्ठ भारत।" बहरहाल, कुलपतियों को दिए गए बिल में भुगतान इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड एंटरप्रेन्योरशिप (आईआईएमई), जयपुर के बैंक खाते में करने को कहा गया है। बता दें कि राज्यपाल के ओएसडी के अलावा इस जीवनी के सहलेखकों में डॉ. डीके टकनेट भी हैं। वे लंबे समय से आईआईएमई से जुड़े हुए हैं। पुस्तक पर "प्रमुख शोधकर्ता" के तौर पर टकनेट की पत्नी सुजाता टकनेट का नाम है,जो आईआईएमई से ही जुड़ी हुई हैं।