शीतल भट्ट पिछले 26 वर्षों से गुजरात में तैराकी कोच हैं। उनकी सालाना आमदनी 6 लाख रुपये से ज्यादा थी। मार्च 2020 आया और इसने उनकी किस्मत को और खराब कर दिया। वह कहते हैं, “सरकार ने स्विमिंग पूल को बंद कर दिया। इसका मतलब था; हमारे जैसे कोचों के लिए कोई काम नहीं। मेरी आमदनी शून्य हो गई। पिछले दो वर्षों में मैंने शायद ही कुछ कमाया है।”
उन्होंने आगे कहा, “माने बस स्विमिंग आवे छे; मैं योग सिखाना शुरू नहीं कर सकता, क्योंकि वहां भी यही सब कुछ है। यही हमारा दुर्भाग्य है।”
पत्नी और बच्चों से भरा-पूरा घर चलाना परिवार के लिए कठिन काम था- और ऐसा ही अभी भी है। उन्होंने कहा, “मेरी पत्नी ने पढ़ाना शुरू किया और इस तरह हम दोनों जरूरतों को पूरा करने का प्रयास कर रहे हैं।” वर्तमान में उन्होंने तैराकी सिखाना फिर से शुरू कर दिया है, लेकिन घर चलाना और बच्चों की स्कूल फीस का भुगतान करना अभी भी परिवार के लिए बड़ी समस्या है।
कोविड के बढ़ते मामलों के कारण सरकार ने न केवल निजी क्लबों को, बल्कि खेल कोचिंग सेंटरों और स्कूलों को भी बंद कर दिया है, जो खेल प्रशिक्षकों के जीवित रहने के लिए प्राथमिक स्थान हैं। दुर्भाग्य से, मार्च 2020 के बाद से स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं आया है।
वह महिला जो कभी छात्रों की पसंदीदा स्केटिंग कोच थी; स्केटिंग रिंक के पास कहीं नहीं है। अंकिता ठक्कर 2004 से सेंट जेवियर्स लोयोला स्कूल की स्केटिंग कोच थीं। कोविड के कारण उद्गम स्कूल, थलतेज की नौकरी गंवाए उन्हें लगभग दो साल हो गए हैं।
लगभग रोती हुई वह कहती हैं, “मेरा वेतन 22,000 रुपये प्रति माह था। किसी भी मध्यम वर्गीय परिवार की तरह हमने भी अपना घर बनाने का सपना देखा था। मुझे गोटा में एक मकान मिला भी, जिसके लिए मुझे प्रति माह 13,700 की ईएमआई देनी थी। जब मैंने अपनी नौकरी खो दी, तो मैं टूट गई, क्योंकि पिता कमाते नहीं थे और मां गृहिणी हैं। मैंने वह आगे कहती हैं, अपने को इतना असहाय कभी महसूस नहीं किया।”
वह आगे कहती हैं, “मैंने बुरे से बुरे सपने में भी करियर बदलने के बारे में नहीं सोचा था, लेकिन मुझे करना पड़ा। मैंने कोविड के दौरान टिफिन सर्विस शुरू की और उसे डिलीवर भी किया।” इसी दौरान उनके भाई प्रवीण ठक्कर ने भी ग्लोबल इंडियन इंटरनेशनल स्कूल इन अहमदाबाद (जीआईआईएस), जगतपुर में स्केटिंग कोच की नौकरी खो दी।
उन्होंने कहा, “हम दोनों भाई-बहन सुबह 4 बजे पुराने शहर के सब्जी बाजार जाते थे। भाई ने गोटा में सब्जी की लारी खोली। मैंने टिफिन सर्विस शुरू की, लेकिन तब भी घर चलाना मुश्किल था।” ठक्कर भाई-बहनों को अभी तक नौकरी वापस नहीं मिली है। वे सुबह प्राइवेट कोचिंग और बाकी दिन टिफिन पहुंचाने का काम करते हैं।
63 वर्षीय एंथनी गोम्स तीन दशकों से अधिक समय से टेबल टेनिस कोच हैं। वह सेंट जेवियर्स कॉलेज, लोयोला स्कूल और अन्य निजी क्लबों में छात्रों को प्रशिक्षण देते रहे हैं। इन दिनों आप उन्हें कोचिंग सेशन के बीच किराए के फ्लैटों में काम करते हुए पाएंगे। वह हमें बताते हैं कि क्यों, “गुजरात में 60% से अधिक कोचों को या तो वेतन में कटौती का सामना करना पड़ा या पूरी तरह से अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। निजी स्कूल और क्लब आपको छात्रों की संख्या के अनुसार भुगतान करते हैं। ऐसे में सरकारी नियमों और माता-पिता के बीच भय के कारण हमारे पास शायद ही कोई छात्र बचा था।”
गोम्स आगे कहते हैं, “इन सभी के कारण नौकरी बदल जाती है। इन दिनों मेरा ज्यादातर समय रियल एस्टेट में काम करने में बीतता है। वेतन आधा भी हो जाता है, तो इससे मुझे अपना घर चलाने में थोड़ी मदद मिल जाती है।”
सौराष्ट्र क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान बिमल जडेजा गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के वर्तमान समिति सदस्य भी हैं। उन्होंने कहा, “सरकारी संस्थानों और कोचिंग सेंटरों में वेतन में कोई कटौती नहीं की गई है, लेकिन अगर हम समग्र तस्वीर देखें तो स्थिति चिंताजनक है।”
वह कहते हैं, “अकेले अहमदाबाद में 100 से अधिक मानक क्रिकेट कोच हैं और उनमें से 60% से अधिक ने वेतन में कटौती देखी है। जब घर में भूखे लोग हों, तो आप कोई अजीब काम करने से पहले दो बार नहीं सोचते। ऐसा ही कुछ कई कोचों के साथ हो रहा है।”
कमलेश नानावटी 30 साल से स्विमिंग कोच हैं; लेकिन वह इस समय को “सबसे कठिन” मानते हैं। “राजपथ क्लब जैसे निजी केंद्रों ने सभी चार स्विमिंग कोच बंद कर दिए। थलतेज में एकलव्य खेल केंद्र ने अपने सभी खेल प्रशिक्षकों के वेतन में कटौती की। एक साल से अधिक के लिए हमारे पास कोई आय नहीं थी। हर घर में स्विमिंग पूल नहीं है, इसलिए हमारे लिए निजी कोचिंग की तलाश करना भी मुश्किल था।”
उन्होंने निष्कर्ष निकालते हुए कहा, “मुझे जहां भी मौका मिला, मैंने तैराकी सिखाना जारी रखा, क्योंकि मुझे बस इतना ही पता है।”