भावनाबेन 53 वर्षीया हैं। उन्हें 30 साल पहले एक दुखद दुर्घटना में पति की मृत्यु के बाद चली लंबी, अंतहीन कानूनी लड़ाई के बाद मिली 7 लाख रुपये की बीमा राशि फीकी लगती है। इस दौरान दो छोटे बच्चों के साथ जीने के लिए उन्हें हर दिन काफी कठिन लड़ाई लड़नी पड़ी। फिर भी वह डटी रहीं। पति के नियोक्ता की बीमा फर्म के खिलाफ न सिर्फ मामला दर्ज किया, बल्कि जीत भी हासिल की। पिछले साल 29 मई को गुजरात हाई कोर्ट ने बचाव पक्ष की कई अपीलों की सुनवाई के बाद कलोल निवासी के पक्ष में फैसला सुना दिया।
और धन्यवाद करने के लिए उनके पास उनकी वकील शिवांग जानी हैं।
29 मार्च, 1991 को सुबह 7:15 बजे भावनाबेन के पति दहयाभाई जोशी सुबह की पाली में काम करने के लिए जा रहे थे। तभी कलोल रेलवे क्रॉसिंग पर हुई दुर्घटना में उनकी मौत हो गई। वह भारत विजय मिल्स के कर्मचारी थे। दहयाभाई की शिफ्ट सुबह 7:10 बजे शुरू हो गई थी।
अचानक दो छोटे बच्चों के लालन-पालन के लिए खुद को अकेला पाकर भावनाबेन ने कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) से ईएसआई अधिनियम-1948 के तहत मुआवजे की अपील की। ईएसआईसी श्रम और रोजगार मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय है। यह एक स्ववित्तपोषित योजना है।
ईएसआईसी ने दहयाभाई की मेडिकल रिपोर्ट का हवाला देते हुए निर्भरता लाभ के उनके दावे को खारिज कर दिया। इसमें कहा गया था कि उनकी मृत्यु ब्रेन हैमरेज और न्यूरोजेनिक शॉक से हुई थी, न कि कार्यस्थल पर लगी चोट से।
अपने मामले की योजना बनाते समय भावनाबेन को अपने बच्चों मिलाप और निकिता की भी देखभाल करनी पड़ी, जो उस समय क्रमशः केवल तीन और दो वर्ष के थे।
जब कानूनी लड़ाई अदालत में थी, भावनाबेन के भाई अरविंद शुक्ला ने बहुत समर्थन किया था और उन्हें आजीविका कमाने में सक्षम होने के लिए एक कोर्स पूरा करने में भी मदद की थी। उन्होंने प्री पीटीसी- एक शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम-पालनपुर से पूरा किया और उन्हें 250 रुपये प्रति माह पर पहली नौकरी मिली।
यह गुजारा चलाने के लिए काफी नहीं था। वह कादी में किराए पर रहते हुए बच्चों की परवरिश करने लगी। भावनाबेन याद करती हैं, “मैं उनकी पढ़ाई में मदद करती थी और उनके मुंह में खाना डालने के लिए कमाई करती थी।”
उन्होंने कहा, “यह सब भाई के बिना संभव नहीं होता।”
ईएसआईसी द्वारा अनुरोध को खारिज कर दिए जाने के बाद उन्होंने ट्रायल कोर्ट में अर्जी दायर की। ईएसआई कॉरपोरेशन ने दहयाभाई की फोरेंसिक रिपोर्ट के आधार पर फिर अपना बचाव किया। अदालत ने निगम के दावों को खारिज कर दिया और उसे 1996 के ईएसआई अधिनियम की धारा-52 के तहत अनुसूची-I के मुताबिक भावनाबेन को निर्भरता लाभ देने का निर्देश दिया।
हालांकि निगम ने उसी वर्ष गुजरात हाई कोर्ट में अपील कर इस आदेश को चुनौती दे दी। अपील 23 साल से लंबित थी। 15 नवंबर, 2019 को सुनवाई के दौरान निगम ने दावा किया कि यह रोजगार के दौरान लगी चोट नहीं थी, क्योंकि यह कार्य परिसर में नहीं बल्कि आने-जाने के दौरान हुई थी। इसलिए वह मुआवजे के भुगतान के लिए उत्तरदायी नहीं था। भावनाबेन के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निष्कर्षों और फैसलों का हवाला दिया। इस तरह हाई कोर्ट ने भी भावनाबेन के पक्ष में फैसला सुना दिया।
हालांकि ईएसआईसी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जिसे बिना सुनवाई के आवेदन स्तर पर ही रद्द कर दिया गया।
अंत में 29 मई, 2020 को गुजरात हाई कोर्ट ने ईएसआईसी की अंतिम अपील पर फैसला सुनाया कि दहयाभाई की मृत्यु कार्यस्थल पर हुई दुर्घटना थी।
भावनाबेन कहती हैं, ”न्याय की हमेशा जीत होती है।”
उन्होंने कहा, “यह सब जानी साहब के पिछले 30 सालों के प्रयासों के कारण ही हुआ है कि आज मुझे 7 लाख रुपये का मुआवजा और हर महीने 2,700 रुपये की पेंशन मिली है।”
आज उनके दोनों बच्चों ने ग्रेजुएशन पूरा कर लिया है और मिलाप एमबीए हैं। वे खुशी-खुशी शादीशुदा जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
हालांकि स्थिति को सामान्य बनाने की यात्रा कठिन और श्रमसाध्य थी।