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जिग्नेश मेवाणी ने दलितों, आदिवासियों और ओबीसी के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने की मांग की

| Updated: March 13, 2025 12:41

वडगाम विधायक जिग्नेश मेवाणी ने मंगलवार को गुजरात सरकार से विभिन्न आंदोलनों के दौरान दलितों, आदिवासियों, ओबीसी और अन्य हाशिए पर मौजूद समुदायों के खिलाफ दर्ज सभी मामलों को वापस लेने की मांग की। उन्होंने कहा कि सरकार को पटेल आरक्षण आंदोलन के दौरान पटेल समुदाय के सदस्यों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने की तरह ही अन्य समुदायों के मामलों को भी वापस लेना चाहिए।

मेवाणी ने यह टिप्पणी गुजरात विधानसभा में सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग की बजट मांगों का विरोध करते हुए की।

मेवाणी ने कहा, “मैं सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग के बजट पर अपनी बात रख रहा हूं, जिसमें सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने का कोई उल्लेख नहीं है। इसमें कोई महत्वपूर्ण नई योजना नहीं है, न ही छुआछूत, मैला ढोने की प्रथा और जाति आधारित भेदभाव को समाप्त कर समानता स्थापित करने का कोई जिक्र है।”

उन्होंने सवाल उठाया कि राज्य सरकार ने पटेल आंदोलन में शामिल लोगों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस ले लिया, लेकिन दलितों और अन्य हाशिए पर मौजूद समुदायों के मामलों को क्यों नहीं हटाया गया। उन्होंने पूछा, “मैं सराहना करता हूं कि पटेल समुदाय के खिलाफ दर्ज मामले हटा दिए गए, लेकिन दलितों के खिलाफ ऊना कांड के दौरान दर्ज मामलों को हटाने से इनकार क्यों किया जा रहा है?”

2015 के पटेल आंदोलन के दौरान समुदाय के सदस्यों के खिलाफ लगभग 300 मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें से ज्यादातर मामलों को गुजरात सरकार ने हटा लिया, यहां तक कि आंदोलन के नेता और अब भाजपा विधायक हार्दिक पटेल के खिलाफ राजद्रोह के आरोप वाले कुछ मामले भी वापस ले लिए गए।

इसके विपरीत, मेवाणी ने बताया कि 2016 में ऊना आंदोलन के दौरान दलितों के खिलाफ दर्ज किए गए लगभग 75 मामले अभी भी लंबित हैं। उन्होंने 2018 में दलित कार्यकर्ता भानुभाई वंकर की आत्मदाह के बाद हुए दलित विरोध प्रदर्शनों का हवाला देते हुए कहा, “सरकार ने मामले वापस लेने का आश्वासन दिया था, लेकिन वे आज तक नहीं हटाए गए हैं।”

उन्होंने अन्य आंदोलनों का भी जिक्र किया, जिनमें मालधारी समुदाय का मंडल-बेचराजी विशेष निवेश क्षेत्र के खिलाफ विरोध, सरकारी नौकरियों के लिए लिपिकीय भर्ती (LRD) परीक्षा में गड़बड़ियों पर युवाओं का आंदोलन, वन अधिकार अधिनियम और पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम (PESA) के क्रियान्वयन को लेकर आदिवासियों का संघर्ष, संविदा कर्मचारियों के प्रदर्शन और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) के खिलाफ मुस्लिम समुदाय के प्रदर्शन शामिल हैं।

मेवाणी ने सवाल किया, “आप एक समुदाय के मामलों को हटा देते हैं, लेकिन एससी/एसटी/ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदायों के मामलों को नहीं हटाते। क्या यही राज्य सरकार की भूमिका होनी चाहिए?”

जमीन से जुड़े मुद्दों पर बात करते हुए उन्होंने सरकार पर दलितों और आदिवासियों को आवंटित भूमि पर गैर-दलित और गैर-आदिवासी लोगों द्वारा किए गए बड़े पैमाने पर अतिक्रमण को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “दलितों और आदिवासियों की भूमि पर बाहरी लोगों का कब्जा एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत अपराध है। लेकिन लैंड ग्रैबिंग एक्ट भी दलितों और आदिवासियों को कोई राहत नहीं देता। मेरे अनुमान के अनुसार, बनासकांठा, पाटन, कच्छ और सुरेंद्रनगर जिलों में कम से कम 25,000 बीघा दलित भूमि पर अतिक्रमण किया गया है। क्या राज्य सरकार इस पर चिंतित नहीं है?”

मेवाणी ने महिसागर कलेक्टर नेहा कुमारी के खिलाफ भी कार्रवाई की मांग की, जिन्होंने कथित तौर पर एक आधिकारिक कार्यक्रम में कहा था कि “एससी/एसटी अत्याचार अधिनियम के तहत दलितों और आदिवासियों द्वारा दर्ज 90% मामले ब्लैकमेलिंग के लिए होते हैं।” हालांकि, कलेक्टर ने इन आरोपों को “निराधार” बताते हुए इसे राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास करार दिया।

विधानसभा सत्र के दौरान भाजपा विधायक रमनलाल वोरा ने सरकार का बचाव करते हुए दलितों, ओबीसी और आदिवासियों के कल्याण के लिए उठाए गए विभिन्न कदमों को गिनाया। वहीं, सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री भीखुसिंह परमार ने मेवाणी के आरोपों पर तंज कसते हुए कहा, “मैं जिग्नेशभाई से पूछना चाहता हूं—जब कांग्रेस सत्ता में थी, तब कितने लोग डॉक्टर, वकील और पायलट बने? आज, भाजपा सरकार में आदिवासी लड़कियां भी पायलट बन रही हैं।”

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