अहमदाबाद के नागरिकों को संपत्ति की खरीद और बिक्री जैसे महत्वपूर्ण मामले के संबंध में प्रशासनने परिहार्य मुद्दों से निपटने के लिए छोड़ दिया गया है। जो स्पष्ट रूप से सर्वोपरि महत्व का एक बुनियादी काम है, उसमें जंत्री दर १०,००० से अधिक सर्वेक्षण संख्याओं में तय करने का कार्य अभी तक अधूरा पड़ा है।
जंत्री दरों का अंतिम अध्यतन वर्ष 2011 में किया गया था। जंत्री दरें शहर, कस्बे या गाँव के किसी विशेष इलाके में भूमि मूल्य के रेडी रेकनर के रूप में एक बुकलेट में प्रकाशित दरें हैं, जिन्हें सरकारी राजस्व अधिकारी उचित मानते हैं। यह एक मानक न्यूनतम मूल्य भी बन जाता है जिस पर बिक्री या उपहार द्वारा संपत्ति के हस्तांतरण पर सरकार द्वारा स्टेम्प शुल्क लगाया जाएगा।
उप-पंजीयक कार्यालयों से स्पष्टता के अभाव में, सर्वेक्षण संख्या जहां तय नहीं है, उसकी की जंत्री नजदीक के सर्वेक्षण संख्या को आधार के रूप में लेकर तय की जाती है। कई बार ऐसा होता है कि संपत्ति का अनजाने में मूल्यांकन किया जाता है और ऑडिट के दौरान अनजान खरीदार को लाख में स्टेम्प शुल्क का भुगतान करना पड़ता है।
अब, यह पता चला है कि डेप्युटी कलेक्टर कार्यालय अहमदाबाद शहर और जिले में गुजरात स्टेम्प अधिनियम के अनुच्छेद 68(2) के तहत वसूली नोटिस जारी कर रहा है। नोटिस में जवाब देने और राजस्व विभाग द्वारा जुटाई गई राशि के अंतर का भुगतान करने के लिए सात दिन का समय दिया गया है|
सरकारी अधिकारियों का दावा है कि लेखापरीक्षा ने विसंगतिया है जिसके कारण वे शेष राशि की वसूली के लिए बाध्य हैं। हालांकि सवाल यह उठना चाहिए कि गलत स्टेम्प शुल्क के साथ संपत्ति का सौदा क्यों और कैसे दर्ज किया गया था। क्या इस परिहार्य समस्या के लिए रजिस्ट्रार और राजस्व अधिकारियों को जवाबदार नहीं ठहराया जाना चाहिए?