2002 का चुनाव उग्र हिंदुत्व की आड़ में तो 2007 का चुनाव हिंदुत्व की छाया में लड़ा गया ,2012 में विकास का कोलाहल रहा तो 2017 पाटीदार -ओबीसी – दलित आंदोलन के केंद्र में घिरा रहा , लेकिन 2022 के चुनावी वर्ष में गुजरात की 15 प्रतिशत आरक्षित और 30 प्रतिशत सीटों को प्रभावित करने वाले आदिवासी केंद्रित होने की जमीन तैयार होने लगी है। डांग से पार -नर्मदा – ताप्ती रिवर लिंक प्रोजेक्ट के विरोध में गांधीनगर विधानसभा का घेराव करने आये 25 वर्षीय बीए बीएड गणपत चौधरी कहते है यह हमारे अस्तित्व का सवाल है , गुजरात में आदिवासी की बात ही नहीं होती , इसलिए हम अपनी लड़ाई खुद लड़ने के मूड में हैं। जो साथ देगा ,उसका साथ देंगे , लेकिन जमीन बचाएंगे।
चौधरी जैसे हजारो लोगो का यह आक्रोश है जिसे चुनावी समीकरण भी प्रभावित होंगे , यह आदिवासी बाहुल्य सीटो पर पिछले 2 दशक में किसी का एकाधिकार नहीं रहा , इसी विस्तार में कांग्रेस भाजपा को कड़ी चुनौती देती है और कभी कभी आगे भी रहती है ,
आदिवासी बहुल सीटों की बात करें तो 1990 में रिजर्व 26 सीटों में सबसे ज्यादा 11 सीटें जनता दल के पास थीं। बीजेपी ने 6, कांग्रेस ने 7 और निर्दलीयों ने दो सीटें जीतीं।
राम मंदिर आंदोलन के बाद 1995 के चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा 14 सीटें मिलीं, जबकि कांग्रेस के खाते में 8 सीट आईं। झगड़िया की सीट छोटूभाई वसावा ने जीती।
इसके बाद 2012 में कांग्रेस ने 15 सीटों पर कब्जा किया, जबकि बीजेपी के पास 10 सीटें आईं। झगड़िया सीट एक बार फिर छोटूभाई वसावा ने जीती।
पूरे गुजरात में सबसे ज्यादा आदिवासी आबादी साउथ गुजरात में हैं और विधानसभा की सीटें भी। 26 सीटों में 17 सीटें यहीं से आती हैं. 2017 में दक्षिण गुजरात भाजपा के लिए फायदा कारक रहा , यहा कांग्रेस के चेहरों को भाजपा ने शामिल कर अपनी पकड मजबूत की , इसकी गवाही लोकसभा और विधानसभा के आकड़े देते हैं। 2017 एसटी आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेस द्वारा जीती गई सीटों ने 1995 और 2002 को छोड़कर, भाजपा द्वारा जीती गई सीटों की संख्या को 2017 में पार कर लिया था । यहां यह जोड़ा जाना चाहिए कि बीटीपी के साथ कांग्रेस के चुनाव पूर्व गठबंधन ने 2017 में उन निर्वाचन क्षेत्रों में अपनी कुल सीटों की संख्या को 16 से बढ़ाकर 17 करने में मदद की। हालांकि बाद कांग्रेस विधायकों के इस्तीफ़ा देने और भाजपा में शामिल होने पर वर्तमान में यह घटकर 13 रह गयी है ,जबकि भाजपा के विधायकों की संख्या 12 है , वही बीटीपी के पास एक सीट है।
लेकिन इस बार छोटू वसावा की भारतीय ट्राइबल पार्टी ने अलग रास्ता अपना लिया है। वह कांग्रेस के साथ नहीं है ,उसे नाराजगी है की राजस्थान में कांग्रेस ने उसके दो विधायकों को तोड़ने का काम किया ,आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रमुख गोपाल इटालिया ने छोटू वसावा से मुलाकात कर उन्हें आप में शामिल होने का ऑफर दिया ,लेकिन बीटीपी के विधायक महेश वसावा ने मुलाकात की पुष्टि करते हुए कहा की हमने उन्हें कह दिया है की हम स्वतंत्र लोग है ,हम शामिल नहीं होंगे , अगर गठबंधन की बात होती है तो वह हमें मंजूर है , लेकिन गठबंधन दो राष्ट्रीय अध्यक्षों के बीच होगा ,और आदिवासियों के मुद्दे पर होगा , हमारे पास संसाधन कम हैं , आप के पास संसाधन है , केजरीवाल दिल्ली में शिक्षा ,स्वास्थ्य पर काम किया है वह गुजरात में भी हो ,लेकिन साथ में जल जंगल जमीन की रक्षा भी हो , नहीं अकेले लड़ेंगे , लेकिन कांग्रेस के साथ नहीं जायेगे। आप सूत्रो का कहना है की बातचीत सही दिशा में है गठबंधन पर सहमति बन जाएगी अभी बहुत समय है। बीटीपी के दूसरे विधायक राजेश वसावा को पिछले सप्ताह कांग्रेस ने शामिल कर लिया था।
लेकिन कांग्रेस का घर भी सुरक्षित नहीं है खेडब्रह्म से कांग्रेस विधायक आश्विन कोतवाल की नाराजगी से यह आसानी से समझ में आता है , आश्विन कोतवाल नेता प्रतिपक्ष बनने की दौड़ में थे , लेकिन उन्हें मुख्य दण्डक से भी कांग्रेस ने हाल ही में हटा दिया। वह भाजपा के संपर्क में बताये जा रहे है , कोतवाल आदिवासी रैली में भी शामिल नहीं रहे , विधानसभा के बजट सत्र के दौरान भी वह ज्यादातर अनुपस्थित रहे ,हालांकि प्रदेश प्रमुख जगदीश ठाकुर और नेता प्रतिपक्ष सुखराम राठवा कह रहे है की उनके विधायक उनके साथ हैं।
लेकिन दक्षिण गुजरात के भी 2 कांग्रेस विधायक भाजपा के संपर्क मे है ,यह कांग्रेस नेतृत्व भी जान रहा है। लेकिन आदिवासी विस्तार में पार – नर्मदा – ताप्ती आंदोलन के कारण दलीय निष्ठा टूटती जा रही रही ,25 -40 आयुवर्ग आंदोलन की राह में है ,कांग्रेस आदिवासी नेता और नेता विपक्ष सुखराम राठवा पार – नर्मदा – ताप्ती आंदोलन में सक्रीय भागीदारी कर रहे हैं ,वह कहते हैं मै आंदोलन में किसी से पूछ कर नहीं आता , चुनाव प्रबंधन के बल पर भाजपा चुनाव जीतना चाहती है लेकिन ऐसा नहीं होगा।
वही यूपीए -2 में आदिवासी कल्याण राज्य मंत्री रहे और गुजरात के एकमात्र आदिवासी नेता अमर सिंह चौधरी के पुत्र डॉ तुषार चौधरी का मानना है की बीटीपी और आप गठबंधन से कोई फर्क नहीं पड़ेगा , पिछलीबार देढियापाड़ा में हमने सोनिया जी की 5 लाख की सभा कराइ लेकिन गठबंधन में उनके पास सीट चली गयी , हमारे लोग नाराज हुए उसका असर दूसरी सीटों पर पडा , लेकिन वह मानते है की कोंग्रस की पकड़ दक्षिण गुजरात में आदिवासियों में कमजोर हुयी थी ,उसके अलग अलग कारण है , खास तौर से आर्थिक प्रबंधन ,भाजपा हमारे विधायक ले लेती है ।
संगठन भी उनके जाने से प्रभावित होता है क्योकि ज्यादातर उन्ही के लोग होते हैं। लेकिन इस बार लड़ाई पहचान की है। कांग्रेस ने आदिवासी युवा को जोड़ने के लिए प्रभारी सचिव और मध्यप्रदेश के आदिवासी नेता उमंग सिंधार को बनाया है। ताकि वह आदिवासियों को जोड़ सके। लेकिन आखिरी मौके पर खुद से हारने में माहिर कांग्रेस और आदिवासी राजनीती के लिए पार नर्मदा -ताप्ती रिवर लिंक प्रोजेक्ट जय जोहार की आवाज को बुलंद जरूर करता है.