पिछले कुछ महीनों में भारत के अधिकांश हिस्सों में भीषण गर्मी में मानसून किसी आशीर्वाद की तरह आया है। बारिश के साथ तापमान में काफी गिरावट आई है। जहां पृथ्वी पर बारिश पानी (हाइड्रोजन और ऑक्सीजन) की बूंदों से बनी होती है, वहीं कुछ ग्रह ऐसे भी हैं जहां ये बूंदें ज्यादा भारी और मोटी होती हैं। ये पानी के बजाय ये कार्बन से बनी होती हैं। इन ग्रहों पर तापमान और दबाव की स्थिति इतना अधिक है कि कार्बन परमाणुओं को उनके वायुमंडल में हीरों की बारिश में बदल देता है। ये ग्रह हमारे सौर मंडल में ही हैं- यूरेनस और नेपच्यून।
यूरेनस और नेपच्यून को उनके अनूठे नीले रंगों के लिए ख्याति है, जबकि वे समान दिखते हैं, लेकिन विशेषताओं में बहुत भिन्न हैं। नासा पॉडकास्ट में एक खगोल भौतिकीविज्ञानी नाओमी रोवे-गर्नी ने कहा कि
मीथेन गैस के कारण ये दोनों ग्रह नीले दिखाई देते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि मीथेन में कार्बन होता है। लेकिन इन ग्रहों पर वायुमंडलीय दबाव बहुत ज्यादा है। इस कारण मीथेन से कार्बन कई बार अलग हो जाता है और भारी दबाव के कारण ये क्रिस्टल बनने लगते हैं जो एक हीरा होता है। ये हीरे लगातार जमा होते रहते हैं और भारी होकर ये सतह पर गिरते हैं। अगर हम ग्रह पर मौजूद रहें तो ये देखने में हीरे की बारिश जैसा ही लगेगा।
उन्होंने यह भी कहा कि ये एक ऐसी बारिश है जिसे हम देख नहीं सकते हैं। क्योंकि यहां के वायुमंडल में भारी दबाव है। इंसान यहां इसी कारण कभी नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि अगर ये हीरे हैं भी तो हम कभी इन्हें ला नहीं सकते हैं। बता दें कि मीथेन का रासायनिक नाम CH4 है। वातावरण के दबाव के चलते इससे कार्बन यानी C अलग हो जाता हे। अगर पृथ्वी के हिसाब से देखें तो जिस तरह वायुमंडलीय दबाव के कारण बारिश की बूंदें ओला बनती हैं, उसी तरह इन हीरों का निर्माण होता है। पृथ्वी से नेपच्यून की दूरी 4.4 अरब किलोमीटर है। वहीं यूरेनस की दूरी 3 अरब किलोमीटर है।