दुर्भाग्यपूर्ण है खोजी पत्रकारिता का गुम हो जाना: सीजेआई एनवी रमण - Vibes Of India

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दुर्भाग्यपूर्ण है खोजी पत्रकारिता का गुम हो जाना: सीजेआई एनवी रमण

| Updated: December 15, 2021 20:39

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमण ने बुधवार को कहा कि खोजी पत्रकारिता की अवधारणा दुर्भाग्य से मीडिया से गायब हो रही है। वह एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में बोल रहे थे। सीजेआई ने कहा, “मैं ऐसे व्यक्ति के रूप में जिसकी पहली नौकरी एक पत्रकार की थी, वर्तमान मीडिया पर कुछ विचार साझा करने की स्वतंत्रता ले रहा हूं। दुर्भाग्य से खोजी पत्रकारिता की अवधारणा मीडिया से गायब हो रही है। कम से कम भारतीय संदर्भ में तो यह सच है। जब हम बड़े हो रहे थे, तब बड़े घोटालों को उजागर करने वाले समाचार-पत्रों की उत्सुकता से प्रतीक्षा करते थे। समाचार-पत्रों ने हमें कभी निराश भी नहीं किया। अतीत में हमने घोटालों और कदाचार के बारे में समाचार-पत्रों की रिपोर्टें देखी हैं, जिनके गंभीर परिणाम सामने आए। एक या दो को छोड़कर, मुझे हाल के वर्षों में ऐसे परिमाण वाले किसी समाचार की याद नहीं है। चारों तरफ सिर्फ अच्छा ही अच्छा लग रहा है। मैं इसे आप पर छोड़ता हूं कि इसके निष्कर्ष आप खुद निकालें।”

सीजेआई वरिष्ठ पत्रकार सुधाकर रेड्डी उडुमुला द्वारा लिखित पुस्तक “ब्लड सैंडर्स: द ग्रेट फॉरेस्ट हाइस्ट” के विमोचन समारोह में बोल रहे थे।

अपने भाषण में उन्होंने महात्मा गांधी का एक उद्धरण सुनाया, जो इस तरह था, “तथ्यों के अध्ययन के लिए समाचार-पत्रों को पढ़ना चाहिए। उन्हें स्वतंत्र सोच की आदत को मारने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।”

सीजेआई ने कहा, “मुझे उम्मीद है कि मीडिया आत्मनिरीक्षण करेगा और महात्मा के इन शब्दों की कसौटी पर खुद को परखेगा।” उन्होंने कहा कि इस किताब ने इस बात की जानकारी दी है कि आंध्र प्रदेश के चित्तूर, नेल्लोर, प्रकाशम, कडप्पा और कुरनूल जिलों में फैले नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र में क्या गलत हुआ है। उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा, “कुछ दशक पहले तक इन जगहों पर लाल चंदन खूब होता था। अब यह विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रहा है।”

सीजेआई रमण ने कहा कि सुधाकर रेड्डी ने लाल चंदन और शेषचलम वन पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिए कुछ बहुत अच्छे सुझाव दिए हैं। इसमें लाल चंदन की खेती, फसल और व्यापार के लिए अनुकूल माहौल बनाना शामिल है। मुख्य न्यायाधीश ने यह भी सुझाव दिया कि संरक्षण में स्थानीय लोगों को शामिल करने से बहुत बड़ा अंतर आ सकता है।

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