प्रसिद्ध हड़प्पा-युग की मुहरें और तख्तियां विभिन्न प्रतीकों को दर्शाती हैं। ये एक लेखन प्रणाली या संभावित लिपि का संकेत देती हैं। हालांकि, 1924 में हड़प्पा की खोज के एक सदी बाद भी शोधकर्ताओं के लिए लिपि एक पहेली बनी हुई है। रविवार को आईआईटी गांधीनगर (IIT-Gn) में संपन्न हुई अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘हड़प्पा सभ्यता के उभरते परिप्रेक्ष्य’ (Emerging Perspectives of the Harappan Civilization) में विशेषज्ञों ने लेखन की प्रकृति को समझने की कोशिश की।
चेन्नई स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ मैथेमेटिकल साइंसेज (IMSc) में कम्प्यूटेशनल एपिग्राफी लैब के एक रिसर्च एसोसिएट मोहम्मद इजहार अशरफ ने बताया कि उन्होंने हड़प्पा सभ्यता के ज्ञात लेखन (known writings) पर सांख्यिकीय मॉडल (statistical model) का इस्तेमाल किया है।
उन्होंने कहा, “इस दृष्टिकोण से हम किसी भी आधुनिक भाषा की तरह एक वाक्यविन्यास पाते हैं। हमने इसकी तुलना 20-विषम आधुनिक (odd modern) और प्राचीन भाषाओं के साथ की। पाया कि यह पूरी तरह से फिट बैठता है। उदाहरण के लिए, अंग्रेजी भाषा में अक्षर S की आवर्ती आवृत्ति (recurring frequency) अधिक है। इसी तरह, हम अंत में समान प्रतीकों को दोहराते हुए पाते हैं।”
आईएमएससी में सैद्धांतिक भौतिकी के प्रोफेसर सीताभद्र सिन्हा भी इस सिद्धांत के समर्थकों में से हैं कि लिपि को दाएं से बाएं लिखा गया था- मुहर पर अक्सर छोटे अंतिम शब्द की ओर इशारा करते हुए। वे भी इस कार्यक्रम में शामिल थे।
निशा यादव और पल्लवी गोखले सहित अन्य वक्ताओं ने भी स्क्रिप्ट के पहलुओं पर विस्तार से बताया। क्योटो विश्वविद्यालय के आयोमो कोनासाकुवा ने तर्क दिया कि यदि प्रारंभिक हड़प्पा चरण से लेकर सभ्यता की परिपक्वता (maturity) तक शिलालेखों के विकास को देखा जाए, तो प्रारंभिक लेखन में 71 प्रतीक हैं, जो बाद में सदियों में कई गुना बढ़ गए। उन्होंने सभ्यता के भूगोल पर मुहरों और आवर्ती प्रतीकों (recurring symbols) जैसे हीरा, मछली, भाला आदि में जानवरों की दिशा की ओर भी इशारा किया।
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