बताया जाता है कि अपनी हत्या से कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह से कहा था, “अगर उन्हें कुछ हो जाए तो बेटे राजीव गांधी को शपथ दिला दीजिएगा।”
लेखक-स्तंभकार वीर सांघवी ने शीघ्र प्रकाशित होने वाली आत्मकथा- “ए रूड लाइफ-द मेमोयर्स,” (पेंगुइन वाइकिंग)- में लिखा है कि जैल सिंह ने उन्हें बताया था कि इंदिरा जून 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद अपने जीवन पर आने वाले खतरों से अवगत थीं। इसलिए जैल सिंह को “कांग्रेस को कुछ करने देने का मौका मिलने से पहले ही राजीव को शपथ दिला देने के लिए कहा था।”
वीर मुंबई (तब बॉम्बे) की एक पत्रिका इम्प्रिंट के संपादक थे। सिंह का रहस्योद्घाटन चौंकाने वाला है, क्योंकि राष्ट्रपति के अपने पूरे कार्यकाल में जैल सिंह के राजीव गांधीके साथ संबंध सहज नहीं थे। कहा जाता है कि एक बार तो राष्ट्रपति ने राजीव सरकार को बर्खास्त करने तक मन बना लिया, जिससे एक भारी और अभूतपूर्व संवैधानिक संकट पैदा हो सकता था। जैल सिंह के पास इसका भी स्पष्टीकरण था कि आखिर राजीव उन्हें पसंद क्यों नहीं करते थे- “क्योंकि इंदिरा गांधी उनके फैसले से अधिक प्रणब मुखर्जी और आर.के. धवन पर भरोसा करती थीं, इसलिए उनसे भी वह नफरत करते थे।”
वीर ने जैल सिंह के साथ अपनी एक मुलाकात का बहुत मजेदार वर्णन किया है। वीर ने राष्ट्रपति भवन में उनके निजी कमरे के दृश्य का वर्णन किया है-“जैल सिंह एक बिस्तर पर बैठ गए। उन्होंने अपनी पगड़ी उतार दी थी। वह कमजोर और असहाय लग रहे थे। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के राष्ट्रपति जैसा कुछ नहीं था।” वह आगे लिखते हैं, “उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने राजीव को प्रधानमंत्री के रूप में शपथ दिलाई थी। उन्होंने कहा कि श्रीमती (इंदिरा) गांधी ने उनसे कहा था कि अगर उन्हें कुछ हुआ (और वह जानती थीं कि उन्हें खतरा है), तो कांग्रेस को कुछ करने देने का मौका मिलने से पहले उन्हें राजीव को शपथ दिलानी होगी।”
राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह 31 अक्टूबर, 1984 को जब प्रधानमंत्री आवास पर इंदिरा की उनके ही सुरक्षा गार्डों ने हत्या कर दी थी, तब ज्ञानी जैल सिंह यहां से दूर सना, यमन में थे। उन्हें दिल्ली से एक फोन आया, जिसमें उन्हें घटना की सूचना दी गई और उन्हें तुरंत लौटने के लिए कहा गया।
उस भयावह दोपहर में जैल सिंह के विमान के पालम हवाईअड्डे पर उतरने से पहले यह चर्चा थी कि कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में उभरे हैं। मुखर्जी को आधिकारिक तौर पर इंदिरा कैबिनेट में नंबर दो मंत्री का दर्जा हासिल था। राजीव के प्रति कथित रूप से “अनादर” दिखाने के लिए मुखर्जी को 1984 में कांग्रेस से निकाल दिया गया था। बाद में अपने संस्मरणों में मुखर्जी ने पूरे प्रकरण को “गलतफहमी का मामला” करार दिया था, जो तब साफ हो गया था जब राजीव ने उन्हें 1988 में कांग्रेस में वापस ले लिया था।
वीर से बात करते हुए जैल सिंह ने स्वीकार किया कि उन्हें दिल्ली में सड़कों पर बाहर जाने और सिखों को सांत्वना देने की अनुमति नहीं थी। जैल सिंह के अनुसार, “वे (सत्ताधारी) नहीं चाहते थे कि वह देखें कि क्या हो रहा है। सरकार इस बात से डर गई थी कि कहीं वह बाहर आकर सार्वजनिक रूप से यह न कह दें कि सिखों का कत्लेआम किया जा रहा है।” उन्होंने वीर से कहा, “अगर मैंने इस्तीफा दे दिया होता, तो यह सरकार (राजीव शासन) कितने समय तक चलती?”
वीर ने चंद्रशेखर के साथ जैल सिंह को लेकर हुई एक बातचीत भी बताई है, जो बाद में प्रधानमंत्री बने, कि राष्ट्रपति की पीड़ा कोई असामान्य नहीं थी। चंद्रशेखर के बेटे का एक मित्र सिख था, जो सिख विरोधी दंगों के दौरान खतरे में था। “चंद्रशेखर ने तुरंत नरसिम्हा राव ( तबके गृह मंत्री) को फोन किया। पूछा कि क्या वह उस क्षेत्र के लिए पुलिस सुरक्षा की व्यवस्था कर सकते हैं जहां उनके बेटे के दोस्त के मुताबिक सिखों का कत्लेआम हो रहा था। ताकि पुलिस की सुरक्षा में वह परिवार चंद्रशेखर के घर आ सके। वीर ने चंद्रशेखर के हवाले से कहा है, “राव ने जवाब दिया, नहीं- नहीं। यह बहुत खतरनाक है चंद्रशेखर जी। अपने बेटे से कहो कि वह किसी भी सिख को अपने घर में न आने दे। बहुत ख़तरनाक।’
वीर के संस्मरण ऐसे ही छोटी-छोटी कथाओं, कहानियों और रत्नों से भरे पड़े हैं। एक टुकड़ा हरियाणा में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के “भोंडसी आश्रम” के बारे में है। यह 1991 की शुरुआत की बात है, जब चंद्रशेखर बाहर से कांग्रेस के समर्थन पर प्रधानमंत्री थे। बंजर, चट्टानी और उत्साहहीन भोंडसी को स्वपनिल बना दिया गया था- जो यात्रा करने वाले दिल्लीवासियों के लिए पहाड़ियों और झीलों की ताजी हवा के साथ टॉनिक की तरह काम करता था। प्रोटोकॉल के तहत प्रधानमंत्री आखिर में पहुंचे, इसलिए चंद्रशेखर के आने से कुछ मिनट पहले राजीव ड्रिंक वाली जगह (उन्होंने सोडा वाटर पिया) पहुंच गए। जब कुछ लोगों ने “आश्रम” को पार्टियों और आधिकारिक सम्मेलनों के लिए चंद्रशेखर की पसंदीदा जगह बताया, तो राजीव शक की नजरों से देख रहे थे।
इस पर राजीव ने कहा, “यह कोई आश्रम नहीं है। यह तो क्लब है। ” उन्होंने यह इतना जोर से कहा कि आसपास मौजूद सभी सुन सकते थे। तब वीर ने चंद्रशेखर के बचाव में धीमे से कुछ कहा, जिस पर राजीव ने उनसे पूछा, “क्या आपने ब्रेझनेव के बारे में कहानी सुनी है?” राजीव के “मजाक” आज भी प्रासंगिक हैं। यह इस प्रकार है:
ब्रेझनेव की मां एक बार उनसे मिलने पहुंचीं। तब उन्होंने मां से कहा कि उन्हें उन पर गर्व होना चाहिए। उन्होंने अपना सरकारी आवास दिखाया। अपनी कई फैंसी कारें दिखाईं। रहने के लिए अपने आलीशान कमरे दिखाए। आश्चर्य कि उनकी मां रोने लगीं। ब्रेझनेव हैरान। पूछा, “मां, क्या आपको मुझ पर गर्व नहीं है?” इस पर रोती हुए मां ने कहा, “ओह लियोनिद, अगर कम्युनिस्ट वापस आ गए तो तुम्हारा क्या होगा?”
हर्षद मेहता घोटाले पर वीर का ब्योरा काफी कुछ बयां करता है। मेहता एक शेयर दलाल यानी स्टॉक ब्रोकर था, जिन्हें मीडिया ने द बिग बुल (तेजड़िये) का नाम दे दिया था। अखबारों और मैगज़ीन की कवर स्टोरी में उसे एक प्रतिभाशाली व्यक्ति के रूप में सम्मान मिलता था। 1992-93 तक मेहता पर बैंकों को धोखा देने और बाजारों में हेरफेर करने का आरोप लग गया, जिसे हर्षद मेहता घोटाले के रूप में जाना जाने लगा। बाजार औंधे मुंह गिर गया और मध्यम वर्ग ने वह खो दिया जो उसने तेजी के दिनों में निवेश किया था।
मेहता ने प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव पर एक करोड़ रुपये व्यक्तिगत रूप से रिश्वत लेने के सनसनीखेज आरोप लगाए थे। इसके बाद एक बड़ी बहस हुई कि क्या एक करोड़ रुपये एक सूटकेस में समा सकते हैं, जिसे मेहता ने कथित तौर पर प्रधानमंत्री आवास के अंदर राव को सौंपा था।
वीर नई दिल्ली के रेसकोर्स रोड स्थित प्रधानमंत्री के आवास से परिचित थे। इसलिए उन्होंने मेहता से बारीकी से पूछताछ की। वीर लिखते हैं, “जब उससे इस मुलाकात का हर विवरण प्राप्त किया, यहां तक कि रेसकोर्स रोड पर रिसेप्शन द्वारा जारी किया गया आगंतुक पास उसने दिखाया, तो मैं समझ गया कि वह सच कह रहा था। वह स्पष्ट रूप से वहां था और राव से मिला। ” फिर उन्होंने सवाल किया, “लेकिन क्या उसने पैसे सौंपे थे?”
अपनी बात साबित करने के लिए उसने एक सूटकेस मंगाकर आजमा लेने को कहा। ताकि पता चल सके कि, क्या एक करोड़ रुपये एक सूटकेस में आ सकते हैं? तब एक और समान तरह की सूटकेस और एक करोड़ नकद की व्यवस्था की गई। यह दिखाने के लिए एक वीडियो शूट किया गया कि एक ही सूटकेस में इतना पैसा ले जाना वास्तव में संभव है।”
राव शांत रहे और 1996 में प्रधानमंत्री के रूप में अपना कार्यकाल पूरा किया, जबकि मेहता तबाह हो गया। 2001 में मृत्यु होने तक उस पर नौ साल तक मुकदमा चला।