विदेशों में काम करने वाले लाखों भारतीय श्रमिकों के लिए पासपोर्ट और वीज़ा जैसे आवश्यक दस्तावेज़ प्राप्त करना और नवीनीकरण कराना पहले से ही एक कठिन प्रक्रिया है। लेकिन भारत सरकार द्वारा हाल ही में संशोधित अनुरोध प्रस्ताव (RFP) इस प्रक्रिया को और अधिक कठिन बना सकता है, क्योंकि इससे सेवा शुल्क में 15 से 20 गुना तक की भारी वृद्धि होने की संभावना है। यह वृद्धि उन ब्लू-कॉलर श्रमिकों पर भारी वित्तीय बोझ डालने वाली है, जो विदेशों में कठिन परिश्रम करके अपने परिवारों की सहायता करते हैं और प्रेषण के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
भारी शुल्क वृद्धि से लाखों श्रमिक प्रभावित होंगे
भारत सरकार ने 23 भारतीय मिशनों/पोस्ट्स में पासपोर्ट, वीज़ा और वाणिज्य दूतावास (CPV) सेवाओं को आउटसोर्स करने के लिए संशोधित RFP पेश किया है। इस नए शुल्क ढांचे से सेवा लागत 15 से 20 गुना तक बढ़ सकती है, जिससे उन ब्लू-कॉलर श्रमिकों पर भारी वित्तीय बोझ पड़ेगा, जो भारत के वैश्विक प्रवासी समुदाय की रीढ़ हैं।
अनिवार्य बंडल सेवा: महंगे शुल्क की मार
प्रस्तावित मॉडल के तहत प्रत्येक आवेदन पर “सेवा शुल्क” लागू किया जाएगा, जिसमें दस्तावेज़ डिजिटलीकरण, फिंगरप्रिंट और चेहरे की बायोमेट्रिक पहचान सहित चार अतिरिक्त सेवाएं—फोटोकॉपी, फोटोग्राफी, फॉर्म भरना और कूरियर सेवा शामिल हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह शुल्क अनिवार्य है, चाहे आवेदक को इन सेवाओं की आवश्यकता हो या नहीं।
नतीजतन, एक साधारण सेवा, जिसकी वर्तमान लागत $5-$7 है, अब $90-$100 तक बढ़ सकती है। यह वृद्धि मुख्य रूप से खाड़ी देशों, ब्रिटेन और अन्य देशों में काम करने वाले भारतीय श्रमिकों को प्रभावित करेगी, जो पहले से ही आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं।
विदेशों में भारतीय श्रमिकों के छिपे हुए संघर्ष
भारतीय ब्लू-कॉलर श्रमिक खाड़ी, ब्रिटेन और दक्षिण-पूर्व एशिया में निर्माण, आतिथ्य और घरेलू श्रम जैसे उद्योगों की रीढ़ हैं। इनमें से अधिकांश श्रमिक साधारण पृष्ठभूमि से आते हैं और विदेशों में नौकरी पाने के लिए कर्ज तक लेते हैं। उनका मुख्य उद्देश्य अपने परिवारों की आर्थिक सहायता करना होता है, जिससे वे अपने घर के खर्च, बच्चों की शिक्षा और चिकित्सा आवश्यकताओं को पूरा कर सकें।
कठोर कार्य स्थितियों, कम वेतन और शोषणकारी अनुबंधों के बावजूद, ये श्रमिक बेहतर भविष्य के लिए संघर्ष करते हैं। लेकिन सरकार की नवीनतम शुल्क वृद्धि उनके पहले से ही कमजोर वित्तीय संतुलन को और अधिक संकट में डाल सकती है।
वित्तीय दबाव और इसके गंभीर परिणाम
हर महीने मात्र 20,000–30,000 रुपये कमाने वाले इन श्रमिकों के लिए बचत कर पाना मुश्किल होता है। अब सेवा शुल्क में अचानक वृद्धि—$5-$7 से बढ़कर $90-$100 हो जाने से, वे अपनी बुनियादी आवश्यकताओं में कटौती करने के लिए मजबूर हो सकते हैं। कई श्रमिक पासपोर्ट नवीनीकरण या आवश्यक दस्तावेज़ प्राप्त करने में असमर्थ हो सकते हैं, जिससे उनकी विदेशी नौकरी खतरे में पड़ सकती है।
कई प्रवासी श्रमिक अपनी विदेश यात्रा को वित्तपोषित करने के लिए ऋण लेते हैं। सेवा शुल्क में वृद्धि उनके वित्तीय बोझ को बढ़ा सकती है, जिससे वे कर्ज के जाल में फंस सकते हैं या आवश्यक दस्तावेज़ न होने के कारण बेरोजगार होकर भारत लौटने के लिए मजबूर हो सकते हैं।
भारत की अर्थव्यवस्था और प्रेषण पर प्रभाव
यह वृद्धि भारत की विदेशी मुद्रा प्राप्ति पर भी सीधा प्रभाव डालेगी। 2023 में, भारत को 100 अरब डॉलर से अधिक का प्रेषण प्राप्त हुआ था, जिसमें सबसे बड़ा योगदान ब्लू-कॉलर श्रमिकों का था। यदि सेवा शुल्क में बढ़ोतरी के कारण बड़ी संख्या में श्रमिक भारत लौटने के लिए मजबूर हो जाते हैं, तो प्रेषण में भारी गिरावट आ सकती है, जिससे लाखों परिवार प्रभावित होंगे और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ेगा।
क्या सरकार अपने प्रवासी श्रमिकों के बारे में सोचेगी?
अब सवाल यह उठता है—क्या भारत के नीति-निर्माता अपने प्रवासी श्रमिकों का समर्थन करेंगे, या उन्हें अनावश्यक और शोषणकारी सेवा शुल्क का बोझ उठाने के लिए मजबूर किया जाएगा? सरकार को इस शुल्क संरचना पर पुनर्विचार करना चाहिए ताकि उन लाखों भारतीय श्रमिकों को और अधिक कठिनाइयों का सामना न करना पड़े, जो न केवल अपने परिवारों की बल्कि राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
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