उत्तर प्रदेश में मेरठ के निकट सिसोला गांव का फुटबॉल के खेल से अनोखा संबंध है, नहीं, इस गांव ने देश को बड़ी संख्या में फुटबॉल खिलाड़ी नहीं दिए हैं, बल्कि ये संबंध इसीलिए अनोखा बंता है क्यूंकी यह पूरा गांव फुटबॉल बनाने के व्यवसाय से जुड़ा है. गांव की किसी भी गली में जाएं, आपको एक ही दृश्य दिखाई देगा और वो द्रश्य होगा फूटबाल बनाते गाँव के लोगों का।
सीसोला गांव के 1800 परिवारों में से 1500 परिवार फुटबाल बनाने के छोटे-बड़े व्यवसाय से जुड़कर आत्मनिर्भर हो गए हैं। एक फुटबॉल की सिलाई के लिए 15 रुपये वेतन मिलता है और औसतन रु500 तक का दैनिक रोजगार प्राप्त होता है
सिसोला के युवा साधारण या छोटे-मोटे कामों के लिए गांव नहीं छोड़ते, बल्कि यहां फुटबाल खेलते हैं। कुछ छोटी फुटबॉल बनाने वाली इकाइयां शुरू करते हैं, कुछ शिल्पकार के रूप में काम करते हैं।
करीब चार दशक पहले यहां का एक ग्रामीण धनीराम फुटबाल सिलाई सीखकर मेरठ से आया और यहां काम करने लगा। उसे देखकर कुछ और लोगों ने यह काम शुरू किया और फिर उसकी कमाई देखकर कुछ ही सालों में गांव के ज्यादातर परिवार उसके साथ हो गए।
शहर से कच्चा माल लाकर यहां कटिंग, सिलाई और फिनिशिंग का काम किया जाता है। सिसोला में बने फुटबाल आज देश के ज्यादातर बाजारों में बिकते हैं। यहां फुटबॉल के परिष्करण और मजबूत तारों की विशेषता देखने को मिलती है।
लॉकडाउन के दौरान जब पूरी दुनिया रोजगार के लिए हाथ-पांव मार रही थी तब भी इस गाँव में रोजगार की कोई कमी नहीं थी।मजे की बात यह है कि इस गांव की बेटियां भी इस हुनर को जानती हैं इसलिए शादी के बाद जहां भी जाती हैं वहां काम करती रहती हैं , यह गतिविधि अब दूसरे गांवों में भी फैल रही है.
रिपोर्ट: आशीष खरोड़