लॉन्च होने के सात घंटे के भीतर ही क्रैश हो जाने वाले नए इनकम टैक्स फाइलिंग पोर्टल ने एक बार फिर शासन की कथनी और करनी के अंतर को उजागर कर दिया है। और, इसकी कीमत चुकाने वाला है करदाता।
नया “टैक्सपेयर-फ्रेंडली” पोर्टल 7 जून को लॉन्च हुआ था। लॉन्च के साथ ही आई तकनीकी गड़बड़ियों पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने इंफोसिस के सीईओ सलिल पारेख को तलब कर लिया था। इसके साथ ही आयकर विभाग ने ई-फाइलिंग की तारीख 31 जुलाई से बढ़ाकर 30 सितंबर, 2021 कर दिया था।
हालांकि वे करदाता, जिन्होंने जुलाई के अंत तक अपना रिटर्न दाखिल किया, वे भ्रमित हैं। कर विशेषज्ञ और करदाता शिक्षाविद मुकेश पटेल बताते हैं कि ऐसे लोगों की समस्या यह है कि संपर्क के लिए उनके सामने कोई नहीं है। यह भी दरअसल, समस्याओं का छोटा-सा सिरा है।
वाइब्स ऑफ इंडिया के साथ बातचीत में पटेल ने बताया कि आयकर पोर्टल की गड़बड़ियां ईमानदार कर देने वाले नागरिकों के साथ क्रूर मजाक है। उनके साथ हुई बातचीत के संपादित अंश से जानिए कि आखिर ऐसा क्यों है:
क्या शुरू करने से पहले टेस्ट करना भूल गई सरकार?
आयकर विभाग के पास पहले एक पोर्टल था, लेकिन सरकार ने इंफोसिस द्वारा नया पोर्टल पेश करने के साथ ही पुराने को एकदम से हटा दिया। यह सब कतई सहज तरीके से नहीं हुआ। आखिर सरकार रातों-रात सब कुछ क्यों बदलना चाहती थी? इतना ही नहीं, जो बड़े-बड़े वादे किए वे सारे धराशायी हो गए। पोर्टल शुरू होने के सात घंटे के भीतर ही साइट धराशायी हो गई। ढाई महीने हो गए हैं और आज भी साइट के नवीनीकरण को लेकर हमें कतई विश्वास नहीं हो रहा है। अगर सरकार ने पायलट परीक्षण किया होता, तो उन्हें पता चल सकता था कि पोर्टल विफल हो गया है। इसके लिए दोषी दोनों को ठहराया जाना चाहिए: आयकर विभाग, वित्त मंत्रालय यानी सरकार और इंफोसिस।
राजस्व विभाग को घाटा
हर दिन आप उन मुद्दों का सामना करते हैं जो पहले अनसुने थे। इसका खामियाजा करदाताओं, कर विशेषज्ञों और आयकर विभाग को भुगतना पड़ रहा है। जब पोर्टल काम नहीं करता है, तो लोग करों का भुगतान नहीं कर पाते हैं। इससे हमेशा सरकारी विभाग के राजस्व में कमी होती है।
यह सरकार के लिए भी शर्मनाक है। रिटर्न फाइलिंग के लिए दो तिथियां हैं-गैर-लेखापरीक्षा मामलों के लिए जुलाई के अंत में और दूसरी फाइलिंग के लिए अक्टूबर में। जहां तक जुलाई की बात है, तो ऐसे लोगों को 30 सितंबर तक का समय मिला। जो लोग तब टैक्स भरने में असमर्थ थे, उनमें से काफी ने अगस्त की शुरुआत में अपना टैक्स रिटर्न दाखिल किया। जब सरकार ने इसके लिए समय बढ़ा दिया है तो आप कर रिटर्न दाखिल करने में देरी के लिए जुर्माना नहीं लग सकता है, लेकिन पोर्टल ने इस निर्देश को कभी अपडेट नहीं किया।
इससे हुआ यह कि 5,000 रुपये का न्यूनतम जुर्माना उनके रिफंड से काट लिया गया और सरकारी खजाने में चला गया। इस मजाक के बाद वे एक नोटिस लेकर आए कि राशि वापस कर दी जाएगी। अगर कोई करदाता टैक्स देने में देरी करता है तो उस पर जुर्माना लगाया जाता है। लेकिन, इस बार तो सरकार या इंफोसिस ने गलती की है। ऐसे में उन्हें करदाताओं को भुगतान करना चाहिए।
आईटी पोर्टल की लागत का अनुमान लगाएं
सरकार ने करदाताओं के पैसे का भुगतान करदाताओं को असुविधा पैदा करने के लिए किया। यह मंजूर नहीं किया जा सकता है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 16 जनवरी, 2019 को साढ़े आठ साल की अवधि के लिए 4,241.97 करोड़ रुपये की इस परियोजना के लिए अपनी मंजूरी दी थी। इसमें प्रबंधित सेवा प्रदाता (एमएसपी), जीएसटी, किराया, डाक और परियोजना का प्रबंधन लागत शामिल है। नया आयकर ई-फाइलिंग पोर्टल बनाने के लिए सरकार ने इंफोसिस को जनवरी 2019 से जून 2021 के बीच 164.5 करोड़ रुपये का भुगतान किया।
डेटा का नुकसान?
करदाताओं के पहले के सभी रिकॉर्ड– रिफंड, ई-फाइलिंग, आय– पोर्टल पर दिखाई दे रहे थे, जो गायब हो गए हैं। नए पोर्टल में कोई डेटा नहीं है। भले ही नया पोर्टल फिर से काम करना शुरू कर दे, लेकिन मुख्य सवाल यह है कि क्या हमारे पास बैकअप है?
करदाताओं को अधर में छोड़ा
अगर किसी उपभोक्ता को किसी उत्पाद से कोई समस्या है तो वे कॉल सेंटर तक पहुंचते हैं, लेकिन इस मामले में करदाता न तो आयकर विभाग और न ही इंफोसिस से संपर्क कर सकता है। आयकर की फेसलेस असेसमेंट प्रक्रिया आदर्श रूप से एक उपयोगी सुविधा है, क्योंकि करदाता अपना काम डिजिटल रूप से करा सकता है। लेकिन ऐसे अभूतपूर्व समय में, फेसलेस असेसमेंट एक अभिशाप है, क्योंकि हमारी बात सुनने के लिए कोई है ही नहीं। हमारे पास कोई कॉल नंबर भी नहीं है। हम असहाय हो गए हैं।
करदाताओं को ईमेल मिल रहे हैं कि वे टैक्स फाइलिंग में सहायता के लिए पोर्टल पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के लिए जा सकते हैं। वे हमें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के लिए एक समय और तारीख देते हैं और हम लॉग ऑन करते हैं, लेकिन कोई नहीं आता है। गैर-जिम्मेदाराना तरीके से हमें निर्धारित समय के 24 घंटों के बाद ही सत्र स्थगित करने के बारे में एक ईमेल मिलता है। वह भी हमें यह सूचित करता है कि हम पोर्टल पर होने वाली असुविधा के बारे में शिकायत दर्ज कर सकते हैं। यह आयकर विभाग की सादगी का स्तर है।