इस साल की शुरुआत में ब्रिटेन मुसलमानों और हिंदुओं के बीच हिंसा के पीछे साजिश का पता चला है। दरअसल हिंसा भड़काने के पीछे ब्रिटेन के बाहर ट्वीटर पर मौजूद फेक अकाउंट्स के नेटवर्क का हाथ था। यह जानकारी ब्लूमबर्ग न्यूज ने दी है। रटगर्स यूनिवर्सिटी में नेटवर्क कॉन्टैगियन रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, इस साल अगस्त के अंत और सितंबर की शुरुआत में लीसेस्टर में दंगों के दौरान ट्विटर इंक (Twitter Inc) पर हिंसा और उससे जुड़े मीम्स के साथ भड़काऊ वीडियो पोस्ट करने वाले लगभग 500 फेक अकाउंट बनाए गए थे।
बता दें कि 27 अगस्त को भारत और पाकिस्तान के बीच एक क्रिकेट मैच के बाद सैकड़ों लोग सड़कों पर उतर आए थे। लाठी और डंडे लिए कुछ दंगाइयों ने कांच की बोतलें फेंकी। पुलिस ने उन पर किसी तरह काबू पाया। लीसेस्टर शायर पुलिस के अनुसार, इस संघर्ष के दौरान घरों, कारों और धार्मिक कलाकृतियों (religious artifacts) को नुकसान पहुंचाया गया। ऐसा हफ्तों चला। इस सिलसिले में 47 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
मस्जिदों में आग लगाने और अपहरण के दावों के वीडियो से सोशल मीडिया भर गया था। इसके बाद पुलिस को चेतावनी जारी करनी पड़ी कि लोगों को ऑनलाइन मिलने वाली गलत सूचना पर विश्वास नहीं करना चाहिए। रिसर्च करने वालों ने कहा कि अशांति को बढ़ाने वाले कई ट्विटर अकाउंट भारत में बने थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत में बहुसंख्यक हिंदुओं में मुस्लिम विरोधी भावना बढ़ रही है। बताया जा रहा है कि देश के बाहर के हिंदुओं को भी हिंदुत्व की रक्षा करनी चाहिए। यह एक प्रकार का हिंदू राष्ट्रवाद है।
उनके मुताबिक, शुरुआती वीडियो में हिंदुओं को मुस्लिमों पर हमला करते हुए दिखाया गया है, जो अपुष्ट दावों को हवा देता है। इस वीडियो को राजनीति से प्रेरित लोकल कार्यकर्ताओं ने आगे बढ़ाया। दावा किया गया है कि वीडियो ने एक विदेशी प्रभाव वाले नेटवर्क (foreign influence network) के हित को जगाया, जिसकी भागीदारी ने हिंसा को भड़काया।
लीसेस्टर के मेयर पीटर सोल्स्बी ने कहा कि अमेरिकी प्रौद्योगिकी (technology) कंपनियों ने टकराव को हवा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कई मीडिया रिपोर्ट के अलावा गिरफ्तार किए गए 21 वर्षीय एडम यूसुफ ने जज को बताया कि प्रदर्शन के दौरान वह चाकू लाया था, क्योंकि वह सोशल मीडिया पर मीम्स और वीडियो देखकर प्रभावित हो गया था।
एनसीआरआई (NCRI) के संस्थापक जोएल फिंकेलस्टीन ने कहा, “हमारे रिसर्च से पता चलता है कि बढ़ते जातीय तनाव के बीच लोकल और विदेशी फेक अकाउंट्स ने सोशल मीडिया का हथियार के रूप में उपयोग किया। हमें इस तरह की तकनीक से अपने लोकतंत्र की रक्षा करने के लिए सीखने की जरूरत है।
Google के YouTube, मेटा प्लेटफार्म इंक के इंस्टाग्राम, ट्विटर और बाइटडांस लिमिटेड के टिकटॉक से जुटाए गए डेटा का उपयोग करते हुए बुधवार को प्रकाशित NCRI की रिपोर्ट बताती है कि कैसे विदेश में बैठे लोगों ने गलत सूचना फैलाकर ब्रिटेन के सबसे विविधता वाले (diverse) शहरों में से एक में संघर्ष कराए।
एनसीआरआई ने पाया कि “हिंदू” का जिक्र “मुस्लिम” के जिक्र से लगभग 40% अधिक है। इतना ही नहीं, हिंदुओं को बड़े पैमाने पर हमलावरों और षड्यंत्रकारियों के रूप में चित्रित किया गया है। लीसेस्टर में संघर्ष के दौरान 70% तक ट्वीट हिंदुओं के खिलाफ किए गए।
रिसर्च के नतीजों के मुताबिक, विशेष रूप से प्रभावी मीम, जिसे अंततः ट्विटर द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया का हैशटैग था- #HindusUnderAttackInUK. कार्टून में मुस्लिम समुदाय को कीड़ों के रूप में दिखाया गया था। इसमें आरोप लगाया गया था कि इस्लाम के विभिन्न पहलू “भारत को नष्ट करने के लिए एक साथ मिल रहे हैं।”
शोधकर्ताओं को बॉट जैसे खातों के सबूत भी मिले। ये हिंदू-विरोधी और मुस्लिम-विरोधी दोनों मैसेज को फैला रहे थे। हिंसा के लिए दूसरे को दोषी ठहराते थे। रिसर्च के अनुसार, बॉट्स की पहचान अकाउंट बनाते समय और बार-बार किए गए ट्वीट्स की संख्या के आधार पर की गई थी, जिनमें से कुछ ने प्रति मिनट 500 ट्वीट किए थे। एक अकाउंट में लिखा गया था, “यह हिंदू बनाम मुस्लिम नहीं है, यह लीसेस्टर बनाम चरमपंथी (extremist ) हिंदू है, जो नकली पासपोर्ट के जरिये यहां आए। वे 5 साल पहले यहां आने लगे थे। इससे पहले हिंदू और मुस्लिम शांति से रहते थे.” एक और अकाउंट (जिस पर प्रतिबंध लगा दिया गया है) से कहा गया कि हिंदू “वैश्विक नरसंहार (global genocide) को संगठित करने” की कोशिश कर रहे थे।
फिंकेलस्टीन ने कहा कि मोटे तौर पर, शोधकर्ताओं ने पाया कि ब्रिटेन स्थित हमलावरों ने हमलों को व्यवस्थित करने और ब्रिटिश हिंदुओं के खिलाफ साजिशों को बढ़ाने के लिए एक हथियार के रूप में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किया।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ट्विटर पर फर्जी वीडियो फैलने की पहली घटनाओं के बाद भारत के हिंदू समर्थकों ने लीसेस्टर में घटनाओं के लिए पूरी तरह से मुसलमानों को दोषी ठहराते हुए ट्वीट किए। इससे हिंदुओं के खिलाफ और भी अधिक हिंसा भड़क गई।
लीसेस्टर ईस्ट की सांसद क्लाउडिया वेबे ने माना कि दंगे सोशल मीडिया के कारण ही हुए थे। उनका मानना है कि हिंदू और मुस्लिम समुदाय लोग “फोन के जरिये ” बड़े पैमाने पर प्रभावित हुए थे। यहां तक कि जो लोग सड़कों पर नहीं उतरे, वे व्हाट्स ऐप और ट्विटर के माध्यम से जो कुछ प्राप्त कर रहे थे, उससे डरे हुए थे। वे हफ्तों तक बाहर जाने से डरते थे।
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