व्हिस्की का आनंद लिया है? गुजरात में बिना परमिट के 750 मिली लीटर सिग्नेचर व्हिस्की की कीमत आपको 2000 रुपये पड़ेगी, जो इसकी एमआरपी (अधिकतम खुदरा मूल्य) से लगभग दोगुनी है। फिर भी, गुजराती इसे खूब खरीद रहे हैं।
इस सप्ताह की शुरुआत में गुजरात हाई कोर्ट ने “स्पष्ट निरंकुशता” और “निजता के अधिकार” के उल्लंघन के आधार पर शराबबंदी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। याचिकाकर्ताओं में से एक राजीव पटेल ने कहा, “राज्य यह तय नहीं कर सकता कि कोई क्या खाएगा और क्या पीएगा।”
गुजरात में शराब पर प्रतिबंध बॉम्बे प्रेसीडेंसी के गुजरात और महाराष्ट्र में विभाजन के समय यानी 1 मई 1960 से लगा हुआ है। कागजों में यानी कानूनन यहां शराबखोरी काफी कठिन है। लेकिन 2019-2020 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के अनुसार, ग्रामीण महाराष्ट्र की तुलना में ग्रामीण गुजरात में महिलाएं शराब का अधिक सेवन करती हैं। लगभग यही हाल शहरों का है।
हालांकि नतीजों को देखते हुए राज्य में अवैध खपत की दर को मापना मुश्किल है। लेकिन, पिछले तीन वर्षों में कानूनी परमिट दोगुने हो गए हैं। राज्य सरकार पर्यटकों के लिए शराब का परमिट ऑनलाइन जारी करती है। फिर मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के आधार पर भी लोग डॉक्टर की पर्ची के साथ परमिट के लिए आवेदन कर सकते हैं। मीडिया में आए मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के बयान के अनुसार, राज्य सरकार ने पिछले तीन वर्षों में नए और नवीनीकरण वाले शराब परमिट से अर्जित राजस्व में 19 करोड़ रुपये कमाए।
कई लोगों ने तर्क दिया है कि शराबबंदी काम नहीं करती है। यह न केवल तस्करी और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है, बल्कि इसके कारण राज्य के राजस्व का एक महत्वपूर्ण स्रोत भी खो जाता है। शराबबंदी के बिना वाले राज्यों के लिए शराब से उत्पाद शुल्क औसतन कमाई का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत है, जो 2019-2020 में लगभग 12.5 प्रतिशत रहा। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश को लें। उसने केवल एक वर्ष में शराब की बिक्री पर 31,517.41 करोड़ रुपये का उत्पाद शुल्क जुटाया। यह परमिट पर गुजरात के तीन साल के राजस्व से 165,779% अधिक रहा। महामारी वर्ष के दौरान परमिट के नवीनीकरण की लागत एक यूनिट के लिए लगभग 20,000 (बीयर की एक लीटर की 12 बोतलें, शराब की दो बोतल या व्हिस्की/वोदका/स्कॉच की एक बोतल) है।
महामारी वर्ष के दौरान एक नया परमिट जारी करने पर 25 से 30 हजार रुपये का खर्च आता है।
20 से अधिक वर्षों से शराब परमिट रखने वाले एक गुमनाम परमिट धारक ने कहा, ” मेरे लिए परमिट की तुलना में ब्लैक मार्केट से लेना सस्ता पड़ता है।” पिछले साल गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री शंकरसिंह वाघेला ने तर्क दिया था कि शराबबंदी एक ऐसा घोटाला है जो “सामाजिक मद्यपान का अपराधीकरण करता है।” उन्होंने शराबबंदी को वापस लेने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाने की अपील भी की थी। कहा था, “बीजेपी और कांग्रेस वाले कभी भी इस राज्य में शराबबंदी के नाम पर से हो रही अवैध आय को खोना नहीं चाहेंगे। वे हमेशा चाहते हैं कि लोग गिरफ्तारी के डर से दोगुना भुगतान करें और शराब पीएं।”