भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के दो लड़ाकू विमानों सुखोई 30 और मिराज 2000 के दुर्घटनाग्रस्त होने के कारणों का पता लगाने के लिए कोर्ट ऑफ इंक्वायरी का गठन कर दिय गया है। शनिवार को दोनों लड़ाकू विमानों के आसमान में टकरा कर गिर जाने से एक अनुभवी पायलट की मौत हो गई थी।
भारतीय वायुसेना के पूर्व अधिकारियों सहित विशेषज्ञों ने बताया कि इस तरह के मिशनों में “जटिलता” (complexity) के स्तर और शामिल पायलटों के कौशल-स्तर (skill-level) को देखते हुए जांच पूरी होने से पहले वजह का अनुमान लगाना कठिन है।
बता दें कि मध्य प्रदेश में शनिवार को दो लड़ाकू विमान सुखोई एसयू-30 और मिराज-2000 के दुर्घटनाग्रस्त होने से भारतीय वायु सेना के एक पायलट की मौत हो गई। घटना में सुखोई के दो पायलटों को मामूली चोटें आईं, जबकि मिराज के पायलट की गंभीर रूप से घायल होने के बाद मृत्यु हो गई। दुर्घटनाग्रस्त विमान के मलबे राजस्थान के भरतपुर और मध्य प्रदेश के मुरैना में मिले।
विशेषज्ञों के मुताबिक, एक ही हवाई अड्डे से दो विमानों के उड़ान भरने, एक ही समय के आसपास दुर्घटनाग्रस्त होने और एक ही क्षेत्र में उनका मलबा मिलने से हवा में टक्कर होने के ही संकेत मिलते हैं। जंग की ट्रेनिंग वाले भारतीय वायुसेना के एक पूर्व अधिकारी ने कहा, “हम नहीं जानते कि किस चरण में (दुर्घटना के पीछे की खराबी) हुई। क्या उन्होंने संपर्क बनाया और फिर टक्कर हुई या यह शब्द गो से जुड़ा मसला था? जांच के बाद ही ये पहलू सामने आएंगे।’
उन्होंने कहा कि टैक्टिक्स एंड एयर कॉम्बैट डेवलपमेंट एस्टैब्लिशमेंट में “अत्यधिक उन्नत” युद्धाभ्यास कराए और सिखाए जाते हैं। उन्होंने कहा, “युद्ध का माहौल और युद्धाभ्यास जितना जटिल होगा, जोखिम उतना ही अधिक होगा। यह कोई सुखद स्थिति नहीं है। ऐसे हादसे सामान्य नहीं हैं। इस तरह के एक जटिल प्रशिक्षण मिशन को अंजाम देने से पहले बहुत सारी सावधानियां, तैयारी और प्रशिक्षण होते हैं।”
उड्डयन (aviation) इतिहासकार अंचित गुप्ता के अनुसार, हवा में टक्कर आम तौर पर नहीं सुना जाता। ऐसा हादसा करतब दिखाते समय या युद्ध के लिए उड़ान के दौरान हो सकता है, जब विमान को एक-दूसरे के बहुत करीब उड़ान भरने की आवश्यकता होती है। गुप्ता द्वारा जुटाए डेटा से पता चलता है कि पिछले सात दशकों में हवा में हुए हादसे के कारण भारतीय सेना ने 62 विमान खोए हैं। इनमें 11 मिग-21 हैं।
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