गुजरात में सरकारी विद्यालय में शिक्षा व्यवस्था के बदहाली का असली कारण सरकार की उपेक्षा पूर्ण नीति है। शिक्षकों के खाली पद , कमरों और सुविधाओं का अभाव इसे और जटिल बनाते हैं। गुजरात में सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में शिक्षकों और प्राचार्य के 32,000 से ज्यादा पद रिक्त हैं। अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों की तस्वीर और भी दर्दनाक है। ” वाचे गुजरात ” महज नारेबाजी तक सीमित है। यह हम नहीं कह रहे हैं, गुजरात सरकार द्वारा बुधवार को सदन में दिए आकड़े बता रहे हैं।
शिक्षा विभाग से जुड़े एक सवाल के जवाब देते हुए शिक्षा मंत्री कुबेर डिंडोर ने विधानसभा को बताया कि दिसंबर 2022 तक शिक्षकों के 29,122 पद और प्रिंसिपल के 3,552 पद गुजराती और इंग्लिश मीडियम सरकारी एवं अर्ध सरकारी स्कूलों में रिक्त हैं ।
32,674 रिक्त पदों में से 20,678 पद सरकारी स्कूलों और 11,996 पद सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में हैं। कुल मिलाकर, सरकारी विद्यालय में प्राथमिक शिक्षक के 17,500 से अधिक पद रिक्त हैं।
अकेले कच्छ जिले में ही 1,507 रिक्तियां हैं, इसके बाद आदिवासी बहुल दाहोद में 1,152, बनासकांठा में 869, राजकोट में 724 और महिसागर
बाद आदिवासी बहुल दाहोद में 1,152, बनासकांठा में 869, राजकोट में 724 और महिसागर जिले में 692 रिक्तियां हैं।
अग्रेजी माध्यम की स्कूलों के बड़े दावों के बीच गुजरात के 33 जिलों में से 14 जिलों में एक भी सरकरी अग्रेजी माध्यम के विद्यालय नहीं हैं।
साथ ही गुजरात के एक भी जिले में कक्षा 9 और 10 या उसके ऊपर की कक्षा के लिए सरकार द्वारा संचालित माध्यमिक स्तर के अग्रेजी माध्यम के विद्यालय नहीं है। गुजरात की परिस्थिति ऐसी है कि अगर कोई छात्र आठवीं तक अंग्रेजी माध्यम के सरकारी विद्यालय से पढ़ भी लेता है तो 9 वी के लिए उसे निजी विद्यालय में जाना होगा या तो उसे अपनी पढाई का माध्यम बदल कर गुजराती करना होगा।
शहरो की भी हालत शिक्षा के मामले में बहुत अच्छी नहीं है। राज्य की राजधानी गांधीनगर में 1366 पद रिक्त हैं। जबकि अहमदाबाद में 3840 सूरत में 3850 ,भावनगर में 972 ,राजकोट में 1090 , जामनगर 676 बड़ोदा में 910 पद रिक्त है।
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