कभी आपने सोचा है कि उन कंपनियों का क्या हुआ जो कभी गुजरात की उद्यमशीलता की भावना का प्रतीक हुआ करती थीं? ये कंपनियां अब इतिहास बन गई हैं।
पच्चीस साल पहले मैं जब ‘द इकोनॉमिक टाइम्स’ में पत्रकार था, उस समय हमने गुजरात के शीर्ष 50 कॉरपोरेट दिग्गजों की एक सूची तैयार की थी। राष्ट्रीय स्तर पर इस तरह की लिस्टिंग काफी आम है, लेकिन पहली बार राज्य स्तर पर ऐसा किया जा रहा था। उस समय महाराष्ट्र के साथ गुजरात एकमात्र ऐसा राज्य था, जहां की कई बड़ी कंपनियों को स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध किया गया था। मेरे लिए इस तरह की लिस्टिंग की वजह बहुत स्पष्ट थी : इससे राज्य में कारोबारी परिदृश्य की तस्वीर साफ हुई और यह स्पष्ट हुआ कि बिजनेस न्यूज कवरेज के मामले में किन कंपनियों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।
सूची पर अब एक नजर डालने पर पता चलता है कि इनमें से आधी कंपनियां आज दफन हो चुकी हैं और किसी का ध्यान इनकी ओर नहीं गया। आज की पीढ़ी ने इन कंपनियों के बारे में सुना भी नहीं होगा, जो कभी गुजरात के आर्थिक परिदृश्य में अहम स्थान रखती थीं। बिक्री, लाभ और बाजार पूंजीकरण के मामले में सूची में नंबर एक कंपनी आईपीसीएल (इंडियन पेट्रोकेमिकल्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड) थी, जिसे 2002 में रिलायंस इंडस्ट्रीज ने अधिगृहीत कर लिया था। पांच साल बाद रिलायंस के साथ विलय होने पर इसका अस्तित्व समाप्त हो गया।
कंपनियां भी इंसानों की तरह बूढ़ी होती हैं और मर जाती हैं। उम्र अपने साथ ऐसी अक्षमताएं लेकर आती है, जिन्हें दूर करना मुश्किल है। एक मजबूत प्रतियोगी द्वारा खरीद लिया जाना शायद किसी कंपनी के मरने का सबसे अच्छा तरीका है, क्योंकि इससे कर्जदाताओं, कर्मचारियों, विक्रेताओं और शेयरधारकों को कम दर्द होता है। गुजरात की शीर्ष 50 में से अस्तित्व गंवा देने वाली अन्य कंपनियों में अहमदाबाद इलेक्ट्रिसिटी (1995 में छठा स्थान) भी शामिल है, जिसका 1997 में टोरेंट पावर में विलय हो गया था (बॉम्बे डाइंग के साथ इस मामले में थोड़ा संघर्ष की स्थिति भी बन गई थी, जिसने इसे खरीदने के लिए बोली लगाई थी)। एक और कंपनी है लालभाई समूह की एनाग्राम फाइनेंस (20वां स्थान), जिसे आईसीआईसीआई ने सही समय पर अधिगृहीत कर लिया था।
1990 के दशक में गुजरात की कई शीर्ष कंपनियों, विशेषरूप से वडोदरा में स्थित कंपनियों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने उस समय खरीद लिया था, जब अर्थव्यवस्था खुल रही थी। फैग प्रिसिजन बियरिंग्स (29वें स्थान पर) अब शैफलर इंडिया है, एबीएस इंडस्ट्रीज (34वें स्थान पर) अब बेयर का हिस्सा है और बैटरी निर्माता लखनपाल नेशनल (28वें स्थान पर) अब पैनासोनिक एनर्जी इंडिया है। ये सभी कंपनियां भारतीय प्रवर्तकों की एक राष्ट्रीय प्रवृत्ति का शिकार हुईं, जिन्होंने वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना करने के बजाय अपनी हिस्सेदारी बेचने का विकल्प चुना।
कुछ ऐसी कंपनियां हैं, जो एक बार फली-फूलीं, फिर बीमार हो गईं और अंत में दर्दनाक तरीके से खत्म हो गईं। विडंबना यह है कि इनमें से कई कपड़ा व्यवसाय से जुड़ी कंपनियां भी थीं और यह व्यवसाय 1990 के दशक की शुरुआत में उभार पर था। कुछ फार्मास्युटिकल और केमिकल कंपनियां भी हैं, जैसे कोर हेल्थकेयर (23वें स्थान पर) और मार्डिया केमिकल्स (11वें स्थान पर), जो अन्य किसी कारण के बजाय प्रबंधन की अक्षमता के कारण ध्वस्त हो गईं।
पिछले दो दशकों की उथल-पुथल से बचने वाली कंपनियों में गुजरात सरकार द्वारा प्रायोजित कंपनियों गुजरात स्टेट फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स लिमिटेड (जीएसएफसी), जीएनएफसी और गुजरात एल्कलीज एंड केमिकल्स की तिकड़ी शामिल है। 1995 में जीएसएफसी शीर्ष 50 रैंकिंग में दूसरे स्थान की कंपनी थी, जिसका वार्षिक कारोबार 1,482 करोड़ रुपये और बाजार पूंजीकरण 1,097 करोड़ रुपये था। आज इसका सालाना कारोबार 7,499 करोड़ रुपये और बाजार पूंजीकरण करीब 4,500 करोड़ रुपये है।
पिछले 25 वर्षों में फलने-फूलने वाली कंपनियों का किस्सा भी रोचक है। टोरेंट फार्मास्युटिकल्स का बाजार पूंजीकरण 538 करोड़ रुपये था और 1995 में गुजरात के कॉरपोरेट जगत में 13 वें स्थान पर थी। आज इसका बाजार मूल्य 47,000 करोड़ रुपये से अधिक है। सन फार्मा, जो 39 वें स्थान पर थी और 1995 में जिसका मूल्य 347 करोड़ रुपये था, अब 161,000 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की कंपनी बन गई है। इनसे थोड़ा कमतर प्रदर्शन रहा है एलेकॉन इंजीनियरिंग (15 वें स्थान पर) का। 1995 में इसका बाजार मूल्य केवल 25 करोड़ रुपये था, जो आज बढ़कर लगभग 1,400 करोड़ रुपये हो गया है।
पिछले 25 वर्षों में कुछ सबसे बड़ी सफलता की कहानियां फार्मा क्षेत्र में लिखी गई हैं। कैडिला हेल्थकेयर, जो 1995 में स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध नहीं थी, अब गुजरात की सबसे मूल्यवान कंपनियों में से एक है, जिसका मार्केट कैप 65,000 करोड़ रुपये से अधिक है। इसके बाद अडानी समूह का नाम आता है। 1995 में गुजरात की शीर्ष 50 कॉरपोरेट दिग्गजों की सूची में अडानी की केवल एक कंपनी थी, अडानी एक्सपोर्ट्स। 275 करोड़ रुपये के बाजार पूंजीकरण के साथ यह चौथे स्थान पर थी। आज समूह की सूचीबद्ध कंपनियों में अडानी एंटरप्राइजेज, अडानी ग्रीन, अडानी पोर्ट्स, अडानी पावर और अडानी टोटल गैस शामिल हैं। इन कंपनियों में हिस्सेदारी के मूल्य के आधार पर चेयरमैन गौतम अडानी सबसे धनी भारतीयों की रैंकिंग में मुकेश अंबानी के बाद दूसरे स्थान पर हैं।