कोविड-19 की पहली लहर जुलाई 2020 में घटती दिख रही थी। तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवसारी के सांसद सीआर पाटिल (सीआर के रूप में जाना जाता है) को गुजरात भाजपा अध्यक्ष के रूप में पेश करके चौंका दिया। कहना ही होगा कि अपनी इस विशेषता के लिए वह जाने भी जाते हैं। उनके इस कदम ने सभी को चौंका दिया। इसलिए कि सीआर पाटिल गुजराती नहीं हैं। हालांकि वह यहां लंबे समय से बसे हुए हैं। इसलिए यह नियुक्ति पुराने जातिगत या क्षेत्रीय समीकरणों के खांचे में फिट नहीं थी।
कम ही लोग जानते थे कि पाटिल गुजरात में भाजपा के लिए बदलाव के अग्रदूत और मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के लिए कयामत के दूत साबित होंगे। उन्होंने ज्योतिषीय सलाह पर अपने उपनाम पाटिल की वर्तनी भी बदल ली थी। अंग्रेजी में पाटिल लिखने में एक ए अतिरिक्त रूप से लगा लिया था।
पहला संकेत अभी महीनेभर पहले ही मिला था, जब पाटिल ने रूपाणी के कैबिनेट सहयोगियों को सप्ताह में दो बार भाजपा के राज्य मुख्यालय श्री कमलम में विधायकों और सांसदों की शिकायतों को सुनने के लिए बैठने को कहा था।
इसके बाद निर्वाचित प्रतिनिधियों की ओर से बार-बार शिकायतें मिलीं कि मुख्यमंत्री नौकरशाही पर लगाम लगाने में असमर्थ हैं। इस सुनवाई से विधायकों को थोड़ी राहत भी मिली थी।
हालांकि प्रदेश पार्टी अध्यक्ष का यह निर्देश मुख्यमंत्री और मंत्रियों को रास नहीं आया। इसलिए कुछ समय बाद ही व्यवस्था बंद कर दी गई, लेकिन उनके और रूपाणी के बीच की खाई और गहरी हो गई। सीआर पाटिल ने तब तक सभी को संदेश भेज दिया था कि वह एक मिशन के साथ इस पद पर आए हैं।
अगली बार यह खाई कोविड-19 की दूसरी भयंकर लहर के चरम पर खुलेआम सामने आई। तब राज्य भाजपा के प्रमुख ने घोषणा की कि उनकी पार्टी के सूरत कार्यालय से 5,000 रेमडेसिविर इंजेक्शन वितरित करेगी।
इसने एक बड़े विवाद को जन्म दिया, क्योंकि विजय रूपाणी सरकार महत्वपूर्ण इंजेक्शन की हर शीशी की छानबीन कर रही थी। अस्पताल के बिस्तर, ऑक्सीजन, एम्बुलेंस वैन और इंजेक्शन की कमी के साथ-साथ श्मशान और कब्रिस्तान में जगह की कमी को लेकर भारी जन आक्रोश था।
जब रूपानी से पाटिल के इंजेक्शन के वादे के बारे में पूछा गया, जबकि सरकार खुद इसकी भारी कमी का सामना कर रही थी, तो उन्होंने मीडियाकर्मियों पर चिल्लाते हुए कहा था, “जाओ और उन (सीआर) से ही पूछो।”
केवड़िया में राज्य भाजपा कार्यकारिणी की बैठक से पहले और उसके दौरान हाल के दो और घटनाक्रम स्पष्ट संकेत थे कि रूपाणी के दिन गिने-चुने हैं। सबसे पहले, रत्नाकर को बिहार में उनके कार्यभार के बाद गुजरात महासचिव (संगठन) के रूप में लाया गया था, भिखुभाई दलसानिया की जगह, जो पिछले 13 वर्षों से वहां थे।
दलसानिया जहां विजय रूपाणी के करीबी के रूप में जाने जाते थे, वहीं रत्नाकर के सीआर पाटिल के साथ अच्छे संबंध हैं। ये दोनों उन दिनों की बात करते हैं जब वे नरेंद्र मोदी के वाराणसी अभियान की देखरेख कर रहे थे।
दूसरा संकेत तब मिला, जब पिछले महीने के अंत में राज्य कार्यकारी समिति की बैठक के बाद केंद्रीय नेतृत्व ने पाटिल को मुख्यमंत्री के सलाहकारों में नियुक्त करने का लिया। यह स्पष्ट रूप से रूपाणी को पसंद नहीं था, जिन्होंने केवल एक महीने पहले मुख्यमंत्री के रूप में पांच साल पूरे होने का जश्न मनाया था। पाटिल इससे पहले राजस्व मंत्री कौशिक पटेल की अध्यक्षता वाली सलाहकार समिति में थे। बता दें कि गुजरात में सभी कैबिनेट मंत्रियों की सलाहकार समितियां हैं।
और, यह सब तब हुआ जब मुख्यमंत्री बार-बार इस बात से इनकार करते हुए कह रहे थे कि किसी तरह का बदलाव नहीं हो रहा है। रूपानी इस बात से भी इनकार करते रहे हैं कि उन्हें पिछले एक साल से अधिक समय से किनारे कर दिया गया था।