गांधीनगर नगर निगम में भाजपा का सत्ता में आना या स्थानीय निकाय की 184 में से 136 सीटों पर, जो बड़े पैमाने पर शहरी और उपनगरीय इलाकों में थीं, जीत लेना कतई अप्रत्याशित नहीं रहा।
1995 के बाद से जब भाजपा पहली बार गुजरात में अपने दम पर सत्ता में आई तो दिसंबर 2017 तक पार्टी की चुनावी जीत आम तौर पर पूर्व निश्चित ही रही।
यह और बात है कि 2014 में नरेंद्र मोदी के दिल्ली चले जाने के बाद से 2021 तक गुजरात में भाजपा ने तीसरी बार मुख्यमंत्री बदला है। एक बात और, वह यह कि गुजरात में लगभग सभी वर्गों को प्रभावित करने वाले राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर मुद्दों की कोई कमी नहीं है, ऐसे में किसी अन्य पार्टी के बजाय उसे धूल चटाते हुए देखना चाहिए था।
इसमें नया मामला कोविड-19 को लेकर मची अराजकता भी थी, जिसकी आंच से मुख्यमंत्री का चेहरा बदलकर भाजपा सरकार बच गई है। और कैसे? गुजरात के नए मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने मंगलवार को कहा, “हमें 44 में से 41 सीटें मिलीं, लेकिन हमारे प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल-साहेब पूछ रहे थे कि हमें बाकी तीन सीटें भी क्यों नहीं मिलीं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि उन्होंने विधानसभा में 182 में से 182 का लक्ष्य रखा है।” पिछले दो मुख्यमंत्रियों में से किसी ने भी राज्य पार्टी अध्यक्ष के लिए “साहेब” शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। लेकिन जब गुजरात की बात आती है, तो यह बात दूर तलक जाती है।
राजनीतिक विश्लेषक और अर्थशास्त्री हेमंत शाह इस स्थिति का आकलन करते हुए कहते हैं: “हिंदुत्व का इंजेक्शन गुजरात के लोगों के लिए लगभग कांग्रेस-विरोधी वैक्सीन की तरह है। भाजपा के पास सफाई से तैयार बढ़िया नेटवर्क और कैडर के साथ-साथ पूरी सरकारी मशीनरी है, जिसका वह बिना किसी छूट के उपयोग करती है। भले ही वह इनमें से किसी का भी सहाना न ले, फिर भी हिंदुत्व सब संभाल लेगा।”
संभव है कि हेमंत शाह पूरी तरह से सही नहीं हों। फिर भी सबसे पहले संख्याओं को देखें। नरेंद्र मोदी के आक्रामक हिंदुत्व के तहत भाजपा ने 2002 में विधानसभा की 182 में से 127 सीटें जीतीं। 2007 में यह गिरकर 117, 2012 में 115 और 2017 में 99 रह गई।
जब भाजपा आलाकमान ने पिछले महीने मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और उनकी पूरी टीम को बदलने का फैसला किया, तो संदर्भ बिंदु 2017 का चुनाव था। गौरतलब है कि बीजेपी ने पिछली बार 7 सीटों पर हारते-हारते बची थी। ऐसा तब था जबकि महत्वपूर्ण दिनों में मोदी ने खुद गुजरात में चुनाव प्रचार किया था।
वैसे बेरोजगारी, किसान संकट, नोटबंदी और जीएसटी के दुष्परिणाम जैसे मुद्दे, जिसने भाजपा के लिए बाधाएं पैदा कीं, 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान भी थे। लेकिन पुलवामा आतंकी हमले और उसके बाद सरकार की प्रतिक्रिया ने पासा पलट दिया। कहना ही होगा कि जब राष्ट्रवाद और इसके साथ हिंदू-मुस्लिम विभाजन की बात आती है, तो मोदी की वाकपटुता को कोई मात नहीं दे सकता।
लेकिन यहां एक महत्वपूर्ण अंतर है। भाजपा जहां 2017 में लगभग तय दिखती हार को नहीं भूली, वहीं कांग्रेस ने हाथ आती जीत की पहली किरण को अनदेखा कर दिया। इसके बाद कांग्रेस के कई विधायकों के नियमित अंतराल पर भाजपा में शामिल होते चले जाने से पार्टी का पतन तेज ही होता गया।
इस तरह पार्टी फरवरी 2021 में स्थानीय निकाय चुनावों के दौरान खुद को नष्ट करने के लिए आत्मघाती हमलावरों के एक वास्तविक समूह की तरह दिखाई दी, जिससे दूसरे को कोई क्षति नहीं हुई।
उन चुनावों में वास्तविक मतदान से कुछ दिन पहले ही कांग्रेस पार्टी को 200 से अधिक सीटें गंवानी पड़ीं। पार्टी इनमें से कुछ सीटों पर नामांकन खारिज होने के कारण हार गई थी, तो अंतिम दिन काफी उम्मीदवारों ने अपने नामांकन वापस ले लिए थे। इन 200 के अलावा, ऐसे लोग भी थे जिन्हें पार्टी की ओर से प्रत्याशी बनाए जाने के बावजूद अंतिम समय में बदल दिया गया था।
उन परिणामों ने मुख्य विपक्षी पार्टी में अव्यवस्था को उजागर कर दिया। 2015 में 572 सीटों में से 389 जीतने वाली भाजपा 2021 में 483 पर पहुंच गई, जबकि कांग्रेस 174 से लुढ़ककर 55 पर आ गई। अहमदाबाद और जामनगर को छोड़कर कांग्रेस इकाई अंक तक भी नहीं पहुंच सकी। सूरत में उसका कोई भी उम्मीदवार नहीं जीत सका, तो आम आदमी पार्टी को 27 सीटें मिल गईं।
ऐसे समय में कांग्रेस का यह आरोप कि आप और एआईएमआईएम भाजपा की बी-टीम साबित हो रही हैं, पूरी तरह से गलत नहीं है। हालांकि, जैसा कि राजनीतिक विश्लेषक घनश्याम शाह कहते हैं, “वे (आप और एआईएमआईएम) उस स्थान को भर रही हैं, जो कांग्रेस खाली कर सौंप रही है।”
गांधीनगर नगर निगम चुनाव के मंगलवार को आए नतीजे बताते हैं कि कैसे कांग्रेस के लिए आप खेल बिगाड़ने वाली साबित हो रही है। हालांकि वह भी खुद कुछ खास नहीं कर पाई है। वोटशेयर के साथ अपनी पार्टी के तर्क को रखते हुए कांग्रेस प्रवक्ता मनीष दोशी कहते हैं, “भाजपा ने इस बार जीएमसी में 46.89% वोट हासिल किया, जबकि कांग्रेस को 28.02% और आप को 21.77% वोट मिले। 2016 के चुनावों में भाजपा को 44.76% और कांग्रेस को कुल डाले गए वोटों का 46.93% प्राप्त हुआ था।”
यह स्पष्ट रूप से बताता है कि आप ने विरोधी वोट को भाजपा के लाभ के लिए बांटने का काम किया। हेमंत शाह कहते हैं, “आप को वैसे केवल एक सीट मिली, लेकिन उसने सत्ता विरोधी वोटों को निराशाजनक रूप से विभाजित कर दिया। अगर आप और कांग्रेस को भाजपा का विकल्प चाहिए, तो उन्हें साथ आना होगा। लेकिन आप को कोई फर्क नहीं पड़ता।’
बहरहाल, देवभूमि द्वारिका जिले की भानवड़ नगर पालिका के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों की कई ग्रामीण सीटों पर जीत की उम्मीद के साथ अभी भी कांग्रेस के लिए यह अंत नहीं कहा जा सकता है।