अहमदाबाद: गुजरात की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था गंभीर संकट से गुजर रही है, जिसका खुलासा 2024 की नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) रिपोर्ट में हुआ है। इस रिपोर्ट में डॉक्टरों की भारी कमी, अपर्याप्त सुविधाएं और अधूरे बुनियादी ढांचे जैसी गंभीर समस्याओं की ओर इशारा किया गया है।
सीएजी रिपोर्ट में राज्य में सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों के लिए एक समग्र नीति की अनुपस्थिति को जिम्मेदार ठहराया गया है, जिससे डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिक्स की भारी कमी बनी हुई है।
2016 से 2022 के बीच 9,983 स्वास्थ्यकर्मियों की भर्ती के बावजूद, मार्च 2022 तक डॉक्टरों के 23%, नर्सों के 6% और पैरामेडिक्स के 23% पद रिक्त थे। 22 जिलों में डॉक्टरों के एक-चौथाई से अधिक पद खाली थे, जबकि 19 जिलों में पैरामेडिक्स की भी भारी कमी थी।
विशेषज्ञ डॉक्टरों की स्थिति और भी दयनीय है। मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य केंद्रों (MCH) में विशेषज्ञ डॉक्टरों की 28% कमी, जिला अस्पतालों (DH) में 36% और उप-जिला अस्पतालों (SDH) में 51% तक की कमी दर्ज की गई है। जिला अस्पतालों में डॉक्टरों के 18% पद, नर्सों के 7% पद और पैरामेडिक्स के 46% पद खाली हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत स्वीकृत 8,208 पदों में से 18% पद अब भी रिक्त हैं।
नर्सिंग शिक्षा भी बुरी स्थिति में है। नर्सिंग कॉलेजों और स्कूलों में 76% शिक्षकों की कमी है, जो भारतीय नर्सिंग परिषद के मानकों से काफी नीचे है। यह कमी राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है।
रिपोर्ट में अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में गंभीर खामियों को उजागर किया गया है:
- पाँच में से चार मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य केंद्रों (MCH) में पर्याप्त पंजीकरण काउंटर नहीं थे।
- 19 में से चार जिला अस्पतालों में केवल एक पंजीकरण डेस्क था।
- 19 में से केवल 10 जिला अस्पतालों में सभी आवश्यक ओपीडी सेवाएँ उपलब्ध थीं, जबकि 13 अस्पतालों में इनडोर और आपातकालीन सेवाएँ आंशिक रूप से उपलब्ध थीं।
- तीन MCH में बच्चों के लिए ऑपरेशन थिएटर उपलब्ध नहीं थे, और एक जिला अस्पताल में आवश्यकतानुसार दो ऑपरेशन थिएटर कम थे।
- तीन जिला अस्पतालों में ब्लड बैंक नहीं थे, और 19 सभी अस्पतालों में पैथोलॉजी और एंबुलेंस सेवाएँ आंशिक रूप से उपलब्ध थीं।
- चार जिला अस्पतालों में शवगृह सेवाएँ उपलब्ध नहीं थीं, जबकि एक अस्पताल में आहार सेवाएँ भी उपलब्ध नहीं थीं।
- वडोदरा के खाद्य और औषधि प्रयोगशाला (FDL) में टेस्टिंग में देरी गंभीर चिंता का विषय रही, जहाँ 2019-22 के बीच लंबित परीक्षण रिपोर्टें 5% (भुज वेयरहाउस) से 55% (सूरत वेयरहाउस) तक दर्ज की गईं।
गुजरात के स्वास्थ्य केंद्र असमान रूप से वितरित हैं, जिससे कई जिलों में गंभीर संकट उत्पन्न हो रहा है:
- 14 जिलों में एक से तीन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) नहीं हैं।
- नौ जिलों में दो से नौ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) की कमी है, जिससे भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों (IPHS) का पालन नहीं हो रहा है।
बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का क्रियान्वयन बेहद धीमा रहा है। 2016 से 2022 के बीच स्वीकृत 5,332 परियोजनाओं में से केवल 24% ही पूरी हुईं, जबकि 70% या तो बंद कर दी गईं या शुरू ही नहीं हुईं। इसके अलावा, 16 जिला अस्पतालों में निर्धारित IPHS मानकों से कम बिस्तर उपलब्ध हैं, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं पर अतिरिक्त दबाव बढ़ गया है।
इस संकट को वित्तीय उपेक्षा और नीतिगत असफलताओं ने और बढ़ा दिया है। 2021-22 के लिए गुजरात का स्वास्थ्य बजट राज्य के कुल व्यय का केवल 5.42% था, जो राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 के 8% लक्ष्य से काफी कम है। छह वर्षों में स्वास्थ्य पर पूंजीगत व्यय मात्र 14.17% रहा।
इसके अलावा, जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 का कार्यान्वयन भी प्रभावी नहीं रहा, जिससे पर्यावरण और रोगी सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।
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