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विशेष रिपोर्ट: गुजरात में दलितों के खिलाफ नफरत, हिंसा और पुलिस की बेरुखी के नए पैटर्न

| Updated: April 16, 2025 13:05

हर रोज़ की हिंसा अब सामान्य होती जा रही है, और दलित समुदाय को न्याय या किसी बदलाव की उम्मीद नहीं बची है।

इदर (गुजरात): उत्तर गुजरात के इदर कस्बे के पास स्थित वाडोल गांव में रहने वाले शैलेशभाई चेनवा अपने ही घर के भीतर भी सफेद रूमाल से चेहरा ढककर रखते हैं। 32 वर्षीय दलित दिहाड़ी मज़दूर चेनवा चलते समय लंगड़ाते हैं, और उनके शरीर पर नीले-काले जख्मों के निशान साफ़ दिखते हैं।

चेनवा बीमार नहीं हैं, बल्कि 11 मार्च को उनके साथ जो हुआ, उसकी शर्म उन्हें आज भी सताती है।

कुछ हफ्ते पहले, चेनवा काम के लिए इदर के एक कोल्ड स्टोरेज यूनिट गए थे। दिनभर मेहनत करने के बाद जब वे लौट रहे थे, तो ठाकुर समुदाय के कुछ लोगों ने उनका अपहरण कर लिया। चेनवा को बेरहमी से पीटा गया। बाद में उन्हें नग्न कर पूरे नानी वाडोल गांव में घुमाया गया।

इतना ही नहीं, उनसे माफीनामा भी लिखवाया गया जिसमें यह लिखा गया कि वह अब किसी ठाकुर महिला से कभी बात नहीं करेंगे।

चेनवा कहते हैं, “सबने मुझे नग्न देखा… जैसे मैं कोई जानवर था। कोई मुझे बचाने नहीं आया।”

“किसे परवाह है?”

वांसोल गांव (मेहसाणा) के रहने वाले किशनभाई सेनमा 2022 में अपनी शादी के दिन को आज भी याद करते हैं — पर ख़ुशी से नहीं, बल्कि डर से।

अगस्त 2022 में जब वे घोड़ी पर सवार होकर बारात लेकर निकले, ठाकुरों ने उन्हें घोड़ी से घसीट कर नीचे उतारा और जातिसूचक गालियों से अपमानित किया। सिर्फ़ इसलिए कि वह एक दलित हैं।

सेनमा कहते हैं, “ये मनुस्मृति के अनुयायी हमें कीड़े-मकोड़े समझते हैं। शुरुआत में वे डर के कारण चुप रहे, लेकिन एक महीने बाद उन्होंने केस दर्ज कराया।

सेनमा बताते हैं, “जब हम एफआईआर दर्ज कराने पहुंचे, तो पुलिस ने कहा कि मामला बातचीत से सुलझ सकता है। तब हमें समझ आया कि हमें अदालत जाना होगा।”

गांव के बुजुर्ग सुखाभाई (60) कहते हैं, “हमारी ज़िंदगी बद से बदतर होती जा रही है। अब हमें कोई वोट बैंक भी नहीं समझता। किसी को फर्क नहीं पड़ता कि हमारे साथ क्या हो रहा है।”

आंकड़े और सच्चाई

गुजरात को विकास का मॉडल बताया जाता है, लेकिन राज्यसभा में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार 2018 से 2021 के बीच अनुसूचित जातियों पर अत्याचार के मामलों में सज़ा दर केवल 3.065% रही — जो राष्ट्रीय औसत से भी कम है।

RTI से मिले आंकड़ों के अनुसार, शहरी गुजरात में भी भेदभाव बहुत अधिक है। 2022 में अहमदाबाद में अनुसूचित जातियों पर अत्याचार के 189 मामले दर्ज हुए, जो राज्य में सबसे अधिक थे। पूरे राज्य में 1,425 मामले दर्ज हुए।

2018 से 2021 के बीच दर्ज 5,369 मामलों में से केवल 32 मामलों में दोष सिद्ध हुआ। वहीं 1,012 मामलों में आरोपी बरी कर दिए गए — इनमें हत्या और बलात्कार जैसे गंभीर आरोप भी शामिल थे।

अमित शाह का गोद लिया गांव, फिर भी हिंसा

गांधीनगर जिले के कलोल तहसील के बिलेश्वर गांव को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गोद लिया है। लेकिन 29 जनवरी 2024 को इसी गांव में दलितों के घरों पर ठाकुर समुदाय के 200 से अधिक लोगों ने हमला कर दिया।

गीताबेन जब अपनी गाय का दूध निकाल रही थीं, तब ठाकुर युवकों ने उन्हें गाली दी और विवाद बढ़ गया। अगले दिन, हथियारों से लैस लोगों ने रोहितवास कॉलोनी पर हमला कर दिया। गीताबेन और उनके परिजनों को बुरी तरह पीटा गया। पुलिस ने एफआईआर दर्ज कराने से मना किया, और जब दर्ज की गई, तो ठाकुरों की ओर से भी पलटकर एफआईआर दर्ज कराई गई।

गीताबेन का केस कलोल जिला अदालत में चल रहा है। लेकिन आज भी वे भय में जी रही हैं, “अब भी डर लगता है, जैसे कोई भी वक्त कुछ कर सकता है।”

घृणा के नए तौर-तरीके

इदर के चितरोड़ी गांव के सोंभाई चेनवा कपास की खेती करते हैं। लेकिन आज उन्हें मवेशियों से डर लगने लगा है, क्योंकि रबारी समुदाय के लोग जानबूझकर अपने मवेशी उनके खेत में छोड़ते हैं। जब उन्होंने विरोध किया, तो उन्हें पीटा गया, गाली दी गई और सिर से खून बहने लगा।

2019 में दाह्याबेन वणकर को केवल इस बात पर पीटा गया कि उनके पोते ने पतंगबाज़ी में ठाकुर युवकों को हरा दिया था। मामला आज भी अदालत में लंबित है।

हर पीड़ित ने यही बताया कि ठाकुर, रबारी और सुथार समुदाय के OBC लोग मुख्य हमलावर हैं। ये सामान्य घटनाओं को बहाना बनाकर दलितों को फंसाते हैं — पुलिस केस, कोर्ट, और मानसिक प्रताड़ना।

सामाजिक चुप्पी और न्याय प्रणाली की उदासीनता

वडगाम से विधायक और राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच के संयोजक जिग्नेश मेवाणी कहते हैं, “भाजपा मनुस्मृति की विचारधारा को मानती है। इसीलिए अत्याचार के मामलों में सज़ा न के बराबर होती है।”

मेवाणी ने बताया कि दलितों की संख्या गुजरात में केवल 7% है, और यही वजह है कि भाजपा को उनकी कोई चिंता नहीं है। “हमने 2023 में ‘स्वाभिमान हेल्पलाइन’ शुरू की, जिसमें 113 कॉल आए और 150 आरोपियों को गिरफ़्तार कराया गया — इससे यह भी स्पष्ट होता है कि लोगों का न्याय व्यवस्था पर से भरोसा उठ चुका है।”

2011 की जनगणना के अनुसार गुजरात में अनुसूचित जातियों की संख्या 40.74 लाख (6.74%) है। पिछले दो दशकों में कोई भी राज्य-स्तरीय अभियान दलितों पर अत्याचार रोकने के लिए शुरू नहीं किया गया।

गुजरात के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता मार्टिन मैकवान कहते हैं, “पहले मंत्री पीड़ितों से मिलने आते थे, अब तहसीलदार भी नहीं आता। न्यायपालिका और प्रशासन खुलकर पक्षपात दिखा रहे हैं। भाजपा के दलित विधायक भी राज्य को जवाबदेह नहीं ठहरा पाए हैं।”

उक्त रिपोर्ट मूल रूप से द वायर वेबसाइट पर प्रकाशित हो चुकी है.

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