गुजरात में बहुप्रचारित पहला लव जिहाद मामला विफल हो गया है। यह मामला कानून लागू होने के दो दिनों के भीतर ही उत्साही वडोदरा पुलिस ने 17 जून को दर्ज किया था। इसे किसी और ने नहीं, बल्कि खुद शिकायतकर्ता ने ही चुनौती दी थी। उसने साबित किया कि एक पारिवारिक विवाद को जबरन धर्म परिवर्तन का मामला बना दिया गया था।
17 जून को वडोदरा के गोत्री पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज होने के कुछ दिनों के भीतर नेहा (पहचान जाहिर नहीं होने देने के लिए बदला नाम) ने एक स्थानीय अदालत में हलफनामा दाखिल किया। इसमें हैरानी जताते हुए कहा गया था कि एक पारिवारिक विवाद को तथाकथित लव जिहाद वाला मोड़ दे दिया गया। उसे तो पता ही नहीं चला कि उसकी एफआईआर को इस तरह बदल दिया जाएगा।
दो महीने बाद 19 अगस्त को गुजरात हाई कोर्ट ने धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 के कुछ प्रावधानों पर रोक लगाते हुए कहा कि यह किसी व्यक्ति के धर्म का पालन करने और अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करता है।
लगभग उसी समय नेहा ने गुजरात हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर पति और ससुराल वालों के खिलाफ अपनी मूल प्राथमिकी यानी एफआईआर को रद्द करने की मांग की। इसके साथ ही उसने पति के साथ भी ऐसी ही याचिका दायर कर दी। उन्होंने कहा कि यह लव जिहाद का मामला नहीं था, बल्कि उनके और परिवार के भीतर का विवाद था, जिसे सुलझा लिया गया था और वे चाहते थे कि प्राथमिकी रद्द कर दी जाए।
इस याचिका के बाद पति समीर कुरैशी, जो चार महीने से न्यायिक हिरासत में थे, को गुजरात हाई कोर्ट से 13 अक्टूबर, 2021 को जमानत मिल गई। अब वह दिन दूर नहीं, जब अदालत पूरी प्राथमिकी को ही रद्द करने का फैसला करेगी।
इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि नया कानून लागू होने के ठीक एक दिन बाद 16 जून को आणंद जिले के खंभात में एक मुस्लिम की याचिका से वडोदरा का “पहला लव जिहाद मामला” चर्चित हुआ था।
खंभात पुलिस के समक्ष मोहम्मद सैयद के आवेदन में आरोप लगाया गया था कि उनकी बेटी 16 जून को लापता हो गई थी। उन्हें जानकारी थी कि उसे हिंदू धर्म में परिवर्तित कर दिया गया था। आखिरकार उन्होंने गुजरात हाई कोर्ट का रुख करते हुए आरोप लगाया कि लव जिहाद विरोधी कानून के तहत उनकी प्राथमिकी खंभात पुलिस द्वारा दर्ज नहीं की जा रही थी, जिन्होंने बिना कोई प्राथमिकी दर्ज किए केवल स्टेशन डायरी में एक प्रविष्टि की थी। न्यायमूर्ति इलेश वोरा ने सरकार से मामले में ब्योरा हासिल करने को कहा और मामले की सुनवाई 27 अक्टूबर को तय कर दी।
संपर्क करने पर आणंद के डीएसपी अजीत राज्यन ने वाइब्स ऑफ इंडिया से कहा, “हमने मामले को देखा। पुरुष और महिला दोनों अपनी मर्जी से साथ रह रहे हैं और दोनों ने ही कोई धर्म परिवर्तन नहीं किया है। पहली नजर में यह धार्मिक स्वतंत्रता कानून के प्रावधानों को लागू करने वाला नहीं है। लेकिन हम हाई कोर्ट के आदेश के मुताबिक चलेंगे।’
हालांकि एक अन्य पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा, “यह सब बाद में साफ हुआ। लेकिन जब गरीब पिता चिंतित होकर एफआईआर दर्ज कराए तो उसे देखना ही चाहिए था। उन्हें हाई कोर्ट जाने की जरूरत नहीं थी। यह उनका रवैया दिखाता है। वडोदरा की लड़की के मामले में घरेलू हिंसा के मुद्दे को लव जिहाद का रंग दे दिया गया, लेकिन खंभात में ऐसा नहीं किया गया। इसलिए कि पुरुष हिंदू और लड़की मुस्लिम थी।