गुजरात में विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए 19 जिलों की 89 सीटों पर गुरुवार को वोट पड़ गए। शाम 5 बजे तक औसतन 59.24 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया। इस तरह उम्मीद से कम मतदान ने कई लोगों को चौंका दिया है। सरकारी आंकड़े अभी घोषित नहीं हुए हैं, लेकिन संकेत पिछले विधानसभा चुनावों की तुलना में 10 से 15% कम वोट पड़ने के हैं।
मोदी और केजरीवाल की रैलियों में उमड़ने वाले लोगों ने उम्मीद के मुताबिक बड़ी संख्या में वोट डालने की जहमत नहीं उठाई। इसके लिए गहरी पड़ताल की जरूरत है। वैसे जनजातीय (tribal) बहुमत वाले क्षेत्रों में भारी मतदान हुआ है। वास्तव में, आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों में मतदान का प्रतिशत शहरी क्षेत्रों की तुलना में 15% अधिक है।
सौराष्ट्र क्षेत्र में मतदान कम रहा, लेकिन सर्वाधिक मतदान तापी जिले में 64.27%, नर्मदा में 63.88% और डांग में 58.55% दर्ज किया गया है। निजार और कपराडा में भी क्रमशः 66.42% और 64.45% के साथ अधिक मतदान दर्ज किया गया।
दूसरी ओर, सौराष्ट्र के भावनगर जिले जैसे शहरी क्षेत्रों में 45.91 प्रतिशत, जूनागढ़ जिले में 46.03 प्रतिशत और सूरत में 47.01 प्रतिशत वोट पड़े। शहरी मतदाताओं की तुलना में जनजातीय क्षेत्रों के लोग अपने नागरिक कर्तव्यों के प्रति अधिक जागरूक दिखे।
दक्षिण गुजरात में 14 आदिवासी सीटें हैं। इनमें नंदोद, देदियापाड़ा, जांगड़िया, मांगरोल, मांडवी, महुवा, व्यारा, निजार, डांग, गणदेवी, वंसदा, धरमपुर, कपराडा और उमरगाम शामिल हैं। 2017 में कांग्रेस ने इन 14 में से 7 सीटों पर जीत हासिल की थी। जबकि बीटीपी ने दो सीटों पर जीत दर्ज की थी।
2017 में आदिवासी सीटों पर औसत मतदान कपराडा में 84.23 प्रतिशत के साथ सबसे अधिक 77 प्रतिशत था। उमरगाम में न्यूनतम 64.52 प्रतिशत से भी नीचे नहीं गया।
ऐसा लगता है कि आदिवासियों में मतदान को लेकर काफी जागरूकता है। यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि समुदाय के भीतर मजबूत सामाजिक बंधन हैं। आदिवासी दरअसल वोट को सामाजिक परिवर्तन के एक औजार के रूप में देखते हैं और इसे एक औजार के रूप में उपयोग करने की आवश्यकता महसूस करते हैं।