विकसित गुजरात कुपोषित भी है । चिंताजनक तथ्य यह भी कुपोषण के शिकार ना केवल आदिवासी विस्तार के मासूम हो रहे हैं बल्कि वड़ोदरा ,आणंद ,सूरत और अहमदाबाद जैसे शहरी विस्तार भी है। गौरवशाली गुजरात के चेहरे पर यह बदनुमा कुपोषण का दाग सरकार के दावे को कागजी साबित करता है। गुजरात विधानसभा में महिला एवं बाल विकास मंत्री भानूबेन बाबरिया द्वारा दी गयी जानकारी के मुताबिक गुजरात के तीस जिलों में 125707 , बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। जबकि 101586 बच्चों का वजन कम है। 24121 बच्चो का वजन तो चिंताजनक स्तर तक कम है , यानि की बहुत कम। राज्य सरकार के पास तीन जिलों के कुपोषित बच्चो का आकड़ा ही नहीं है। गुजरात में 33 जिले हैं।
बच्चों के पोषण की स्थिति के तीन जाने-पहचाने मापदंड हैं उम्र के अनुसार कद, ऊंचाई के अनुसार वजन, और कम वजन उम्र के अनुसार वजन। इन पर गुजरात के आंकड़े जितने चौंकाने वाले हैं उतने ही दुखद भी हैं।
भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास के आकड़े के मुताबिक भारत में 33 लाख से ज़्यादा बच्चे कुपोषित हैं। इनमें से आधे से ज़्यादा यानी 17.7 लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं। सबसे गंभीर रूप से कुपोषित बच्चे महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात में हैं। कुपोषित बच्चों के मामले में गुजरात का रैंक तीसरा है जो ओडिसा और उत्तरप्रदेश जैसे कथित पिछड़े राज्यों से ज्यादा ख़राब है।
गुजरात में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में 39 फीसदी बौने पाए गए। जबकि अखिल भारतीय औसत आंकड़ा 35.5% है जो अपने आप में बहुत अधिक है – लेकिन गुजरात इससे भी बदतर है। गुजरात में सिर्फ 25% से अधिक बच्चे अपनी कद के अनुसार निर्धारित वजन से कम हैं। जबकि राष्ट्रीय आधार पर यह आंकड़ा 19.3% है। गुजरात में, लगभग 40% बच्चे अपनी उम्र के हिसाब से कम वजन के है । भारतीय औसत 32% है। यह देखते हुए कि भारत के औसत में सबसे खराब मानकों वाले कुछ सबसे गरीब राज्य शामिल हैं, तथ्य यह है कि अपनी डबल इंजन सरकार के साथ गुजरात का समृद्ध राज्य अपने बच्चों को पर्याप्त पोषण सुनिश्चित करने में शानदार ढंग से विफल रहा है।
कुपोषण पर महिला बाल विकास मंत्री भानू बेन बाबरिया के अनुसार दाहोद सबसे कुपोषित जिला है जबकि दूसरे नंबर पर वड़ोदरा है। वडोदरा में 11322 बच्चे कुपोषित हैं 9131 बच्चों का वजन कम है जबकि 2191 बच्चों का वजन चिंताजनक है। जिलावार देखने के लिए चार्ट देखे।
चिंताजनक बात यह कुपोषण और गुजरात का नाता पुराना है। 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात में कुपोषण के सवाल पर जवाब देते हुए कहा था कि गुजरात में लड़किया सुन्दर दिखने की चाह में दूध नहीं पीती। वही 2018 में पूर्व मुख्यमंत्री आंनदीबेन पटेल ने कहा था की स्तन बिगड़ने के डर से महिलाएं स्तनपान नहीं कराती है। भाजपा ने पिछले वर्ष कुपोषण को दूर करने के लिए सुखड़ी बाटने का अभियान संगठन के तौर पर शुरू किया था लेकिन उसका असर जमीनी स्तर पर नहीं दिख रहा है।
जैसा कि उपरोक्त आंकड़ों से आसानी से पता लगाया जा सकता है, भारत में बच्चे बड़े पैमाने पर कुपोषण के शिकार हैं। कुछ राज्य बहुत बेहतर करते हैं जबकि अन्य खराब करते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि गुजरात कुछ सबसे खराब राज्यों में आता है। पीएम मोदी चाहते हैं कि गुजराती अपने राज्य पर गर्व करें और अक्सर आरोप लगाते हैं कि राजनीति से प्रेरित आलोचना गुजरातियों को बदनाम करने की कोशिश करती है। लेकिन, इन आंकड़ों से पता चलता है कि यह गुजराती बच्चे हैं, जिन्हें राज्य में उनकी पार्टी द्वारा अपनाई गई ‘मॉडल’ नीतियों के तहत गंभीर नुकसान उठाना पड़ा है।
महिलाओं और बच्चों में एनीमिया
एक और पैरामीटर अध्ययन के योग्य है – एनीमिया। रक्त में आयरन की यह कमी बच्चों में मानसिक और शारीरिक दोनों तरह के विकासात्मक कमजोरी का कारण बनती है। एनएफएचएस-5 के आंकड़ों से पता चलता है कि 5 साल से कम उम्र के 80% बच्चे अनीमिया से पीड़ित हैं। यह भारतीय औसत से भी बदतर है – अपने आप में चौंकाने वाला – लगभग 67%। सर्वेक्षण से पता चला कि बच्चों को अक्सर यह कमी अपनी माताओं से विरासत में मिलती है – लगभग 63% गर्भवती महिलाओं को एनीमिया था, जबकि देश भर में यह औसत लगभग 52% था। वास्तव में, गुजरात में प्रजनन आयु वर्ग (15-49 वर्ष) की सभी महिलाओं में से 65% एनीमिक थीं, जो भारतीय औसत 57% की तुलना में बहुत अधिक है।
अर्थशास्त्री और एच के आर्ट्स कॉलेज अहमदाबाद के पूर्व प्राचार्य हेमंत शाह कहते है यह दुर्भाग्य है कि गुजरात सरकार कुपोषण और स्वास्थ्य को लेकर गंभीर है। आगंनवाड़ी और जननी सुरक्षा योजना में पर्याप्त खर्च नहीं हो रहा है। नेशनल फैमली हेल्थ सर्वे रिपोर्ट 2019 की रिपोर्ट के अनुसार 40 प्रतिशत से ज्यादा बच्चों का वजन कम कम है जबकि 60 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं।
28 प्रतिशत पुरुष एनीमिया से पीड़ित है। तो केवल बच्चे ही नहीं बल्कि महिलाएं और पुरुष भी कुपोषित हैं। शाह के मुताबिक जीडीपी का 2 . 25 प्रतिशत और बजट का 8 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च करना चाहिए लेकिन खर्चएक प्रतिशत से कम हो रहा।
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