कैद में भी रचनात्मकता और उद्यमशीलता पनप सकती है। इसे चारदीवारों में बांधा नहीं जा सकता। परिवेश से परे रास्ते तलाशने के लिए मन और आत्मा हमेशा स्वतंत्र रहते हैं। फर्नीचर, बहुउद्देश्यीय बैग, रसोई के परिधान, कहानी की किताबें, बच्चों के तैयार भोजन के लिए वॉल हैंगिंग स्टोरेज… ये ऐसी चीजें नहीं हैं, जिन्हें आप आमतौर पर जेल के कैदियों के साथ जोड़कर देखते हैं। लेकिन हाल ही में गुजरात राज्य कारागार विभाग (साबरमती सेंट्रल जेल) के सहयोग से एनआईडी द्वारा लगाई गई ‘जेल से’ प्रदर्शनी ने दिखाया कि कैदियों की पहचान उनके अपराधों से अलग भी है।
इस पदर्शनी को एनआईडी में फर्नीचर और इंटीरियर डिजाइन के स्नातकोत्तर छात्रों ने मिलकर लगाया था। इसकी देखरेख एसोसिएट सीनियर फैकल्टी प्रवीण सिंह सोलंकी ने की थी। यह राज्य सरकार के नेतृत्व वाले संगठन ‘गुज प्राइड’ के तहत था, जो केंद्रीय जेल के कैदियों के लिए बेकिंग, टेक्सटाइल, बुनाई वाले फर्नीचर और बाइंडिंग प्रेस जैसे विभिन्न तरीकों के माध्यम से रोजगार को बढ़ावा देता है। ‘जेल से’ प्रदर्शनी में शामिल सभी उत्पादों को जेल के कैदियों ने ही एनआईडी टीम के कुछ पेशेवर मदद और मार्गदर्शन में तैयार किया था।
वाइब्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए एनआईडी के छात्र देवा ने सहयोगी के रूप में जेलों में जाने के अपने अनुभव को साझा किया। उन्होंने पूछते हुए कहा, “फिल्मों ने जेल में बंद आदमी की छवि बनाई ऐसी बना रखी है, जिससे डर लगता है। लेकिन जब हमने जेल परिसर में प्रवेश किया, तो महसूस किया कि कैदी भी आम लोगों की तरह ही होते हैं। निश्चित रूप से उन्होंने एक या दो गलती की थी, लेकिन वे भी जीवन में एक दूसरे मौके के लिए तरस रहे थे। वे एक कैदी से परे अलग पहचान चाहते थे और बाहरी दुनिया को अपना कौशल दिखाना चाहते थे। जब हम लड़खड़ाते हैं, तो क्या हमें दूसरा मौका नहीं मिलना चाहिए?”
अधिकांश कैदियों में एक कुशल व्यक्ति के रूप में पहचान बनाने की तमन्ना थी। एनआईडी टीम को यह तय करना था कि उनके अंदर से सबसे बढ़िया कैसे निकाला जाए। टीम ने जेल के कैदियों द्वारा उपयोग की जाने वाली विभिन्न मशीनों और सामग्रियों का अध्ययन किया। फिर उपलब्ध संसाधनों के साथ उनके कौशल का आकलन करने का प्रयास किया।
जेल परिसर में कैदियों के बनाए कई सामान दिखाए जा रहे थे। लेकिन खराब पैकेजिंग और उचित स्वच्छता की कमी के कारण वे इतने आकर्षक नहीं थे कि बाजार तक पहुंच बेहतर तरीके से पहुंच सकें। इन कमियों को ठीक करने के लिए एनआईडी टीम ने उचित पैकेजिंग के साथ एक लोगो तैयार किया, जो लोगों तक कैदियों की बनाई वस्तुओं को पेशेवर अंदाज में पहुंचाएगा।
एनआईडी के स्नातकोत्तर डिजाइन के अंतिम वर्ष के छात्र आशीष खैरे ने प्रदर्शनी के हिस्सा के रूप में ‘स्क्वायर चेयर’ का निर्माण किया। उन्होंने वाइब्स ऑफ इंडिया से कैदियों की मदद करते हुए अड़चनों को दूर करने को लेकर बात की। कहा, “फर्नीचर निर्माण में आमतौर पर अत्यधिक कुशल श्रम की आवश्यकता होती है, क्योंकि डिजाइन आसान नहीं होते हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि जेल में फर्नीचर निर्माण इकाई कैदियों के लिए सबसे कम आकर्षक थी। हमने अकुशल कैदियों को न्यूनतम प्रशिक्षण के साथ फर्नीचर का उत्पादन करने के लिए मार्गदर्शन करके इस मुद्दे का समाधान निकाला। हमने काटने और ड्रिलिंग के सरल तरीकों का उपयोग किया। इससे कुशल प्रशिक्षण की आवश्यकता समाप्त हो गई। हमने जेल में उपलब्ध मशीनों का उपयोग करके ही इसे हासिल किया। यहां तक कि कैनवास के बैकरेस्ट और बैठने के लिए कुर्सी की व्यवस्था भी कैदियों ने ही की थी।”
जैसा कि वे कहते हैं, यदि बुद्धि से कुछ भी हासिल किया जा सकता है।
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