गुजरात हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश ने बहुत ही गंभीर टिप्पणी की है। उन्होंने कहा है कि हम (गुजरात) कोई सल्तनत नहीं, बल्कि लोकतंत्र हैं। उन्होंने यह टिप्पणी एक व्यक्ति को जिले से निकाल बाहर करने वाले मामले में हाई कोर्ट के आदेश का वीडियो अदालत की वेबसाइट पर नहीं डालने पर की। जबकि सामान्य कामकाज में भी यूट्यूब को अपलोड किया जाता रहा है। अपने इस महत्वपूर्ण आदेश में उन्होंने एक भाजपा विधायक, स्थानीय पुलिस और एक सब डिविजनल मजिस्ट्रेट को आड़े हाथ लिया था।
यह टिप्पणी अपने निष्पक्ष और तीखे फैसलों के लिए जाने जाने वाले जस्टिस परेश उपाध्याय ने की है। दरअसल प्रवीण चारण नामक व्यक्ति को गुजरात के आठ जिलों से दूर रहने का आदेश दिया गया था, जब उसने एक विधायक के बेटे को फोन करके यह जानना चाहा कि निर्वाचित विधायक अपने क्षेत्र में पर्याप्त काम क्यों नहीं कर रहे हैं।
तब प्रवीण चारण पर तीन प्राथमिकी दर्ज की करा दी गईं। फिर इनके आधार पर सबडिविजनल मजिस्ट्रेट ने जिले से बाहर करने का आदेश जारी कर दिया था।
गुजरात के प्रमुख वकील और जज इससे हैरान हैं। गुजरात में इस मुद्दे पर चर्चा हो रही है कि वेबसाइट पर आखिर गुजरात हाई कोर्ट के न्यायाधीश परेश उपाध्याय का वह वीडियो क्यों नहीं डाला गया, जिसमें उन्होंने पुलिस और सबडिविजनल मजिस्ट्रेट की नागरिक का संरक्षक होने के बजाय एक नेता के संरक्षक होने को लेकर कड़ी आलोचना की थी।
गुजरात हाई कोर्ट कार्यवाही का सीधा प्रसारण करता है और सुनवाई का वीडियो वेबसाइट पर डालता है। वीओआइ को शीर्ष सूत्र ने बताया कि इस मामले में सीसीटीवी फुटेज काफी थे, लेकिन उन्हें नहीं डाला गया।
बता दें कि गुजरात हाई कोर्ट ने सोमवार को एक बेहद अहम फैसला सुनाया। हाई कोर्ट ने एक सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट से सख्ती से जवाब तलब किया, जिन्होंने कथित तौर पर उस क्षेत्र में सत्ताधारी को खुश करने के लिए एक आम नागरिक को आठ जिलों से बाहर कर दिया था।
सब डिविजनल मजिस्ट्रेट के अनुसार, जिस व्यक्ति प्रवीण चारण को गुजरात के आठ जिलों में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी, उसने एक “बड़ी” गलती की थी। प्रवीण चारण नाम के व्यक्ति ने गोधरा के एक भाजपा विधायक सीके राउलजी के बेटे मालवदीप सिंह को फोन करके शिकायत की थी कि उनके पिता वह काम नहीं कर रहे हैं जिसका उन्होंने निर्वाचन क्षेत्र में वादा किया था।
हाई कोर्ट के न्यायाधीश परेश उपाध्याय ने ठीक ही कहा कि इसके बाद पंचमहल पुलिस ने प्रवीण चरण के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की और सबडिविजनल मजिस्ट्रेट ने बाद में चरण को आठ जिलों में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दे दिया। पुलिस ने यह कहते हुए कमजोर दलील देने की कोशिश की कि चरण ने मौत की धमकी की थी। इस पर न्यायमूर्ति परेश उपाध्याय ने ठीक ही कहा कि अगर यह मौत की धमकी थी तो चरण को सलाखों के पीछे क्यों नहीं रखा गया और इसके बजाय उन्हें जिलाबदर क्यों किया गया?
यहां असल कहानी अब शुरू होती है। परेश उपाध्याय को एक ऐसे जज के रूप में जाना जाता है जो किसी का पक्ष नहीं लेते हैं और कोई फालतू शब्द भी नहीं बोलते। दरअसल, जस्टिस उपाध्याय ने कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियां की हैं, जो इस तरह हैं-
- हम किसी साम्राज्य में नहीं रहते; हम एक गणतंत्र हैं।
- क्या यह ऐसा लोकतंत्र है जहां एक नागरिक अपने चुने हुए प्रतिनिधियों से सवाल नहीं पूछ सकता है?
- इस तरह की प्रथा को बंद किया जाना चाहिए, जिसमें एक व्यक्ति को विधायक के काम का हिसाब मांगने पर निकाल बाहर किया जाता है। इसके बाद तो यदि कोई नागरिक किसी विशेष विधायक को वोट नहीं देता है, तो उसे निर्वासित किया जा सकता है। यह उससे केवल एक कदम दूर है।
- सब डिविजनल मजिस्ट्रेट को यहां से स्थानांतरित करने की तत्काल आवश्यकता है, क्योंकि उन्होंने लोगों के विश्वास के संरक्षक के रूप में नहीं बल्कि एक नेता के हितों के लिए काम किया है।
- आप एक जोर का संदेश स्पष्ट रूप से देना चाहते हैं कि विधायक के बेटे को फोन न करें और विधायक के कामकाज के बारे में न पूछें।
न्यायमूर्ति उपाध्याय ने भी भाजपा विधायक सीके राउलजी को पार्टी प्रतिवादी के रूप में शामिल करके एक नोटिस जारी किया और कहा कि अदालत उनके बेटे से नहीं, बल्कि विधायक से यह सवाल कर रही है कि क्या वह इस तरह की बातों को मंजूरी देते हैं।
न्यायाधीश ने कहा, यदि स्थानीय विधायकों के खिलाफ नागरिक की शिकायत को इस तरह से निपटाया जाना है, तो न केवल नागरिक को संरक्षित करने की आवश्यकता है, बल्कि संबंधित विधायक से भी प्रतिक्रिया मांगी जानी चाहिए कि क्या वह इस तरह के आदेश का समर्थन करते हैं?
न्यायमूर्ति उपाध्याय ने सभी संबंधितों से 13 अगस्त तक जवाब मांगा है। अगली सुनवाई तभी होगी। गुजरात में कानूनी बिरादरी हैरान है कि न्यायाधीश द्वारा की गई ऐसी महत्वपूर्ण टिप्पणियों को हाई कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड क्यों नहीं किया गया, जैसा कि आमतौर पर किया जाता है।
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि पंचमहल पुलिस ने तीन शिकायतें दर्ज की थीं, जिसके बाद गोधरा सबडिविजनल मजिस्ट्रेट ने चारण के खिलाफ निष्कासन का आदेश पारित किया था।