गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) ने गुरुवार को तथाकथित धर्मगुरु आसाराम बापू (Asaram Bapu) की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने 2013 के बलात्कार मामले में अपनी आजीवन कारावास की सजा को निलंबित करने की मांग की थी। इस मामले में अदालत ने 29 अगस्त के अपने फैसले में कहा, ‘हमें आवेदक और आरोपी द्वारा मांगी गई छूट को बढ़ाने के लिए कोई बेहद खास आधार नहीं मिला है, ऐसे में सजा को निलंबित करने और जमानत देने का कोई मामला नहीं बनता है।’
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार हाई कोर्ट ने कहा कि आसाराम (Asaram) ने अपनी याचिका में यह आरोप भी लगाया है कि यह एक झूठा केस है, क्योंकि इसमें FIR करने में 12 साल की देरी हुई है और उसे भक्तों के बीच किसी प्रतिद्वंद्विता तथा साजिश के कारण फंसाया गया है। लेकिन उसके इन आरोपों पर तभी विचार किया जा सकता है जब दोषी ठहराए जाने के खिलाफ उसकी अपील पर सुनवाई होगी।
हाई कोर्ट ने कहा, ‘अंतिम सुनवाई के समय सबूतों का मूल्यांकन व उन पर विचार किया जाना चाहिए, लेकिन यदि इस स्तर पर हम सभी आधारों पर चर्चा करते हैं या उनसे निपटते हैं, तो इससे दोनों पक्षों में से किसी के लिए भी पूर्वाग्रह उत्पन्न हो सकता है। इसलिए वर्तमान मामले के विशिष्ट तथ्यों तथा परिस्थितियों को देखते हुए, हम आधारों पर चर्चा तथा गुण-दोष के आधार पर जांच करने से खुद को दूर रखते हैं।’
इससे पहले जनवरी 2023 में गांधीनगर की एक सेशन कोर्ट ने सूरत आश्रम में एक महिला शिष्या के साथ बार-बार बलात्कार करने के मामले में आसाराम बापू (Asaram Bapu) को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के विभिन्न प्रावधानों के तहत दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। जिसके बाद आसाराम (Asaram) ने इस मामले में दोषी ठहराने और सजा को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट का रुख किया था। उन्होंने अपनी जेल की सजा को निलंबित करने के लिए भी याचिका लगाई थी।
अभियोजन पक्ष ने उनकी इस याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया कि आसाराम (Asaram) की जेल की सजा को केवल इस आधार पर निलंबित नहीं किया जाना चाहिए कि दोषी ठहराए जाने के खिलाफ उनकी अपील पर उचित समय में सुनवाई होने की संभावना नहीं है। आसाराम के वकील ने स्वास्थ्य कारणों और उनकी बढ़ती उम्र का हवाला देते हुए भी हाई कोर्ट से उनकी जेल की सजा को निलंबित करने की अनुमति देने का आग्रह किया था। जिसके जवाब में अभियोजन पक्ष ने कहा कि आसाराम ने पहले भी जोधपुर एम्स अस्पताल से इलाज करवाने से इनकार कर दिया था और इसलिए यह उनकी सजा को निलंबित करने का आधार नहीं हो सकता।
साथ ही अभियोजन पक्ष ने अदालत को बताया गया कि आसाराम एक प्रभावशाली व्यक्ति हैं, जिनके भक्त बड़ी संख्या में मौजूद हैं। ऐसे में उन्हें रिहा करने की अनुमति देने से गवाहों को खतरा हो सकता है। जिसके बाद अदालत ने भी गवाहों की सुरक्षा को चिंता का विषय बताया और फैसला सुनाते हुए कहा, ‘साल 2014-2015 के दौरान केस के विभिन्न गवाहों और पीड़ितों के रिश्तेदारों पर बहुत सारे हमले हुए थे। हालांकि इसके लिए हम आवेदक (आसाराम) और आश्रम को जिम्मेदार नहीं ठहरा रहे हैं। हालांकि, तथ्य यह है कि घटनाएं हुईं और दो गवाहों की जान चली गई तथा उनमें से कुछ को गंभीर चोटें भी आईं। इसलिए परिस्थितियों की समग्रता पर विचार करते हुए सजा के निलंबन की प्रार्थना पर विचार करना प्रासंगिक नहीं हो सकता है।’
बता दें कि नाबालिग से दुष्कर्म के एक अन्य मामले में राजस्थान हाई कोर्ट ने भी आसाराम को उम्र कैद की सजा सुनाई थी, जिसके बाद वो जोधपुर केंद्रीय कारागार में सजा काट रहा है। हालांकि फिलहाल आसाराम महाराष्ट्र में रायगढ़ जिले के खोपोली के एक अस्पताल में है और अपना इलाज करवा रहा है। राजस्थान हाई कोर्ट ने 13 अगस्त को आसाराम को यहां के आयुर्वेदिक अस्पताल में पुलिस हिरासत में इलाज कराने की अनुमति दी थी। जिसके बाद 28 अगस्त को उसे यहां लाया गया। अगले सात दिन तक इस चिकित्सा केंद्र में हृदय संबंधी बीमारी के लिए आसाराम का इलाज किया जाएगा। आसाराम को पैरोल देते हुए राजस्थान उच्च न्यायालय ने कुछ शर्तें भी लगाईं, जिसके अनुसार चार पुलिसकर्मी हमेशा उनके साथ रहेंगे।
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