तीन दशक से गुजरात भाजपा का गढ़ बना हुआ जिसका आधार शहरी और अर्ध शहरी क्षेत्र हैं। जितनी तेजी से औद्योगिक राज्य का शहरीकरण हुआ भाजपा की जड़ें उतनी मजबूत हुयी। सूरत और अहमदाबाद ने पिछले तीन दशक के सबसे कठिन मुकाबले में 2017 अहमदाबाद और सूरत ने भाजपा को सत्ता के जादुई आकड़े को पार करा दिया था ।
ग्रामीण गुजरात में दो तिहाई से अधिक सीट हांसिल करने के बावजूद शहरी क्षेत्र में कांग्रेस दम तोड़ देती है। राज्य की 8 महानगर पालिका में बड़े बहुमत के साथ पिछले लम्बे समय से कमल खिल रहा है। शिक्षा , स्वस्थ्य और मुफ्त बिजली के सहारे मध्यम वर्ग को आकर्षित करने की कोशिश में लगी आम आदमी पार्टी क्या भाजपा के तिलस्म को तोड़ पाएगी ?
AAP के भाजपा के शहरी वोट बैंक में सेंध लगाने की संभावना पर कांग्रेस के पूर्व नेता प्रतिपक्ष परेश धानाणी ने कहा ” कि ग्रामीण इलाकों में आप का जनाधार नहीं है, लेकिन यह राज्य की 66 शहरी और अर्ध-शहरी सीटों पर बीजेपी को चुनौती देगी, जहां कांग्रेस पिछले 30 साल से जीत नहीं पाई है. उन्होंने कहा कि सत्ता विरोधी लहर अपने चरम पर है और लोग भाजपा के कुशासन से थक चुके हैं।”
2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, गुजरात एक अत्यधिक शहरीकृत राज्य है, जिसकी 43 प्रतिशत आबादी शहरी क्षेत्रों में रहती है। इसकी 182 विधानसभा सीटों में से 84 या तो अर्ध-शहरी या शहरी प्रकृति की हैं, जबकि 98 सीटें ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में ग्रामीण और शहरी चुनावी नतीजों में स्पष्ट अंतर था। शहरी क्षेत्रों में जहां भारतीय जनता पार्टी का दबदबा था, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस को भगवा पार्टी पर महत्वपूर्ण बढ़त हासिल थी।
2017 में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में दो राष्ट्रीय दलों के लिए अलग चुनावी परिणाम कोई नई घटना नहीं थी – यह अब कई चुनावों के लिए लगातार प्रदर्शित किया गया है।
2017 विधानसभा चुनावों में, दोनों के बीच का अंतर केवल एक प्रतिशत था। उप शहरी सीटों पर इन पार्टियों के बीच 2017 में बीजेपी के पक्ष में आठ फीसदी का अंतर था. शहरी सीटों पर बीजेपी का दबदबा है जहां पार्टी को कांग्रेस के मुकाबले 25 फीसदी वोट का फायदा है. गुजरात में भाजपा के प्रभुत्व का एक प्रमुख कारण यह है कि कांग्रेस कभी भी शहरी मतदाताओं को लुभाने में कामयाब नहीं हुई है। और यह प्रमुख कारण है कि कांग्रेस राज्य में भाजपा को वर्षों से हटाने में विफल रही है।
भाजपा ने शहरी विस्तार की 15 सीट 50 हजार से अधिक मतों से जीतने में सफल हुयी थी। यह सब शहरी विस्तार थे। गुजरात के दो सबसे बड़े शहर अहमदाबाद और सूरत जिला में 2012 में 37 सीट में से भाजपा को 33 जबकि 2017 में 30 सीट मिली थी। राजकोट शहर की चारों सीट भाजपा के पास थी जबकि ग्रामीण 4 सीट कांग्रेस के पास।
भाजपा 1998 से राज्य में सत्ताधारी पार्टी रही है। हालांकि, भाजपा और कांग्रेस दोनों ने क्रमशः शहरी और ग्रामीण, अपने गढ़ से दो-तिहाई सीटें जीतीं। 2017 में, शहरी सीटें गुजरात में भाजपा के लिए तारणहार थीं – उसने 84 में से 63 सीटें जीतीं। जबकि ग्रामीण गुजरात में बीजेपी 98 में से 36 विधानसभा सीटों पर ही कब्जा कर पाई.
2017 में शहरी इलाकों में बीजेपी का स्ट्राइक रेट 77 फीसदी था, जबकि 2012 के विधानसभा चुनाव में यह 87 फीसदी था. इसके विपरीत पिछले विधानसभा चुनाव में ग्रामीण क्षेत्रों में बीजेपी का स्ट्राइक रेट महज 37 फीसदी था.
उल्लेखनीय है कि भाजपा ने जिन सीटों पर जीत हासिल की उनमें से अधिकांश न केवल शहरी क्षेत्रों से बल्कि चार प्रमुख शहरों अहमदाबाद, राजकोट, सूरत और वडोदरा से आईं। कुल गुजराती आबादी का बाईस प्रतिशत इन जिलों में रहता है और 55 विधानसभा सीटों का योगदान देता है । और उनमें से 42 विधानसभा क्षेत्र शहरी (और अर्ध-शहरी) हैं। इन 55 सीटों में से, भाजपा ने 2012 और 2017 में 45 और 44 पर जीत हासिल की। दूसरी ओर, 45 ग्रामीण विधानसभा सीटों में से सिर्फ आठ पर जीत हासिल की।
आप के गुजरात महामंत्री मनोज सोरठिया कहते है शहरी और ग्रामीण क्षेत्र दोनों में लोग केजरीवाल को पसंद कर रहे है , आप पूरे गुजरात में बेहतर प्रदर्शन करेगी। विभिन्न चैनल द्वारा किये गए सर्वे के प्रदर्शन को वह पूरी तरह से नकारते हैं। लेकिन वह यह मानते है की स्थानीय निकाय चुनाव में सूरत और गांधीनगर में गुजरात के अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा उनका प्रदर्शन बेहतर था। सोरठिया के मुताबिक शहर का मध्यम वर्ग महगाई से परेशान है, ख़ासतौर से कोरोना के बाद।
गुजरात भाजपा प्रवक्ता जयराज सिंह भी मानते है की शहरी क्षेत्र भाजपा के मजबूत गढ़ हैं , लेकिन आप की संभावना को वह सिरे से नकारते है। साथ ही वह जोर देकर कहते है कि इस बार भाजपा ऐतिहासिक प्रदर्शन करेगी। अपने तर्क के पीछे दलील देते हैं कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए जयराज दलील देते हैं कि पिछले पांच साल में कांग्रेस से भाजपा में ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्र के नेता शामिल हुए है। इस बार गांव -शहर का अंतर ख़त्म हो जाएगा।
राजनीतिक विश्लेषक घनश्याम शाह मानते है की भाजपा की जड़े शहरी गुजरात में बहुत मजबूत हैं , लेकिन उनका मानना है कि आप की इन इलाकों में उपस्थिति हुयी है लेकिन वह किस हद परिणामजनक होंगे इस पर उन्हें भी शंका है।
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