गुजरात सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष 2023 -24 के लिए पेश किये गए तीन लाख करोड़ से अधिक के भारी भरकम बजट में भले ही 23 प्रतिशत की वृद्धि हुई हो लेकिन गुजरात के अल्पसंख्यक समुदाय के लिए खर्च होने वाले बजट में कमी की गयी है। गुजरात विधानसभा में एकलौते मुस्लिम विधायक इमरान खेड़वाला इससे खासे चिंतित हैं। खेड़वाला के मुताबिक गुजरात के वंचित समुदायों के विकास, कल्याण और शिक्षा के लिए वित्तीय प्रावधानों में कमी की गई है।
2023-24 के तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक के बजट में अल्पसंख्यक समुदायों के लिए 7399.57 लाख रुपये का प्रावधान किया गया है.
एक ओर जहां सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के बजट में कुल 16.7 प्रतिशत की वृद्धि की गई है, वहीं अल्पसंख्यकों के लिए आवंटित बजट को घटाकर 7399.57 लाख रुपये कर दिया गया है, जो पिछले साल 8058.67 लाख रुपये था.
2011 की जनगणना के मुताबिक गुजरात में करीब 58 लाख मुस्लिम, तीन लाख ईसाई, पांच लाख जैन, करीब 30 हजार बौद्ध और सिख समुदाय के करीब 58 हजार लोग रहते हैं. इस प्रकार लगभग 70 लाख अल्पसंख्यकों की जनसंख्या में से 85 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या मुस्लिम समुदाय की है। कई लोगों ने अल्पसंख्यक विकास कार्यों और शिक्षा जैसी महत्वपूर्ण योजनाओं में लगने वाली राशि में कमी पर नाराजगी जताई है. उन्हें डर है कि इस बजट से वह समाज की मुख्यधारा में कैसे शामिल होंगे। अल्पसंख्यक बुद्धिजीवियों के मुताबिक 12 सालों में यह जनसंख्या और बढी है। सबका साथ – सबका विकास – सबका विश्वास का नारा बजट देख कर साकार नहीं होता दिखता।
विधायक इमरान खेड़ावाला के सवाल के जवाब में गुजरात विधानसभा में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री भानुबेन बाबरिया ने बताया कि
वर्ष 2020-21 और 2021-22 में क्रमशः 20 लाख रुपये की अनुदान राशि का उपयोग किया गया है। 989.03 लाख और 2278.49 लाख रुपये पेश किए।
विधायक इमरान खेड़ावाला ने शेष अनुपयोगी अनुदान के संबंध में प्रश्न जोड़ा कि कितने अनुदान अनुपयोगी रह गये और इसके क्या कारण हैं?
मंत्री बाबरिया के उत्तर के अनुसार वर्ष 2020-21 एवं 2021-22 में कोविड-19 कोरोना महामारी के कारण हितग्राही समय-सीमा में ऋण दस्तावेजीकरण समय पर नहीं कर सके, अत: रू. 332.99 लाख अप्रयुक्त रह गए।
गुजरात राज्य के कुल बजट में से हर साल अल्पसंख्यकों के लिए बहुत कम राशि आवंटित की जाती है, लेकिन इस साल बहुत कम राशि आवंटित करके, यह मानो अल्पसंख्यक समुदाय की सरकार ने मजाक किया हो। गुजरात की 10 प्रतिशत आबादी के लिए कुल बजट का केवल 0.024 प्रतिशत अल्पसंख्यक समुदायों के लिए निर्धारित किया गया है। यह सीधे तौर पर उनके विकास और विशेष रूप से शिक्षा को प्रभावित करेगा।”
कांग्रेस विधायक इमरान खेड़वाला के मुताबिक पिछले पांच साल के बजट के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि विधानसभा में बजट पेश करते वक्त बजट अनुमान का आंकड़ा संशोधित बजट में कम हो गया है.
गुजरात सरकार के बजट आंकड़ों के अनुसार 2018-19 में अल्पसंख्यकों के लिए बजट अनुमान 6383.16 लाख था जिसे संशोधित बजट में बढ़ाकर 6160.16 लाख कर दिया गया है. यानी 223 लाख रुपए की कमी। इसी प्रकार 2019-20 में बजट अनुमान राशि 6293.86 लाख को संशोधित बजट में 78.61 लाख कम कर 6215.25 लाख कर दिया गया।
2020-21 के 10135 लाख से रु। 7605 लाख, जबकि 2021-22 के लिए राशि 7161.31 लाख रुपये से घटाकर रु। भारत में 4961.31 लाख प्राप्त हुए, जिनमें रु. 2200 लाख रुपए की कमी देखी गई।
गुजरात सरकार के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि 2018-19 में करीब 1259.51 लाख रुपये की राशि बिना इस्तेमाल के रह गई थी. यह आंकड़ा 2019-20 में 1197.16 लाख रुपये, 2020-21 में 1060.05 लाख रुपये था जबकि संशोधित अनुमान के बाद अप्रयुक्त राशि 2021-22 में 437.07 लाख रुपये थी।
वित्त विभाग के प्रमुख सचिव जे.पी. गुप्ता के मुताबिक , “आमतौर पर जब किसी योजना के लिए कोई लाभार्थी नहीं होता है, तो राशि अप्रयुक्त रहती है।”
अर्थशास्त्री हेमंत कुमार के मुताबिक जो राशि खर्च नहीं हो पाती, उसे दूसरे साल आगे नहीं बढ़ाया जाता और फंड ‘लैप्स’ हो जाता है.
कई लोगों का मानना है कि अल्पसंख्यकों के लिए सीधे फंड आवंटित करने और इस्तेमाल करने की नीति उदासीनता दिखाती है।
वित्त विभाग के अतिरिक्त प्रधान सचिव जेपी गुप्ता के मुताबिक . उनके अनुसार, “यह कहना गलत है कि सरकार अल्पसंख्यकों के विकास के लिए उचित उपाय नहीं कर रही है। क्योंकि सरकार की और भी कई योजनाएं हैं, जिनमें अल्पसंख्यकों सहित कई समुदायों का समग्र विकास है। उज्ज्वला योजना का उदहारण देकर वह कहते हैं कि , इससे अल्पसंख्यकों को भी लाभ होता है।”
भारतीय जनता पार्टी के मुख्य प्रवक्ता यमल व्यास ने कहा, “यह सवाल और बात विपक्ष द्वारा फैलाया गया दुष्प्रचार है कि सरकार को अल्पसंख्यकों की चिंता नहीं है. गुजरात राज्य में सभी योजनाओं में हर वर्ग का व्यक्ति लाभान्वित हो रहा है, जिसमें गरीब भी विकास कर रहा है।”
अर्थशास्त्री हेमंत कुमार शाह के मुताबिक ‘अल्पसंख्यकों की आबादी के हिसाब से बजट बांटा जाना चाहिए. तीन लाख करोड़ रुपये के बजट में करीब 10 प्रतिशत अल्पसंख्यकों की आबादी के हिसाब से कम से कम 15 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान होना चाहिए. अल्पसंख्यकों में मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या सबसे अधिक (लगभग नौ प्रतिशत) है, उनके लिए विशेष योजनाएं आदि प्रदान की जानी चाहिए, इसके बजाय सरकार हर साल उनके लिए राशि कम कर रही है।
असलम सायकलवाला के मुताबिक मुस्लिम समाज की बुनियादी सुविधाओं जैसे अपने क्षेत्रों को रहने योग्य बनाने, अपने क्षेत्रों में अच्छे स्कूलों का निर्माण करने, अपने क्षेत्रों में उच्च शिक्षा की व्यवस्था करने आदि की समस्या दिन-ब-दिन बड़ी होती जा रही है।” मुस्लिम और अल्पसंख्यक समाज के विकास की प्राथमिकता भी नहीं तय की जा रही है। उदाहरण के तौर पर वह कहते हैं उर्दू के शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की जा रही है। अल्पसंख्यक मंत्रालय ही नहीं बनाया जा रहा है। जबकि राजस्थान, मध्य प्रदेश या कर्नाटक जैसे राज्यों की बात करें तो इन राज्यों में अल्पसंख्यक समुदायों के लिए अलग खाता है। उदाहरण के लिए राजस्थान में अल्पसंख्यक कार्य विभाग नामक एक अलग खाता है जिसका मंत्री कैबिनेट स्तर का मंत्री होता है। वर्तमान में राजस्थान में इस खाते के मंत्री सालेह मोहम्मद हैं। इसी तरह, कर्नाटक में अल्पसंख्यक कल्याण विभाग है, जिसके तहत कर्नाटक अल्पसंख्यक विकास निगम और कर्नाटक राज्य अल्पसंख्यक आयोग भी गठित हैं। मध्यप्रदेश में पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण विभाग अलग से बनाया गया है।
गुजरात में अल्पसंख्यकों की सबसे बड़ी संख्या मुस्लिम है, लेकिन इस श्रेणी में सिख, बौद्ध, पारसी, जैन और कुछ योजनाओं के लिए भाषाई अल्पसंख्यक जैसे सिंधी आदि भी शामिल हैं।
भगवान गौतम बुद्ध चेरिटेबल ट्रस्ट के प्रमुख और बुद्धिस्ट एसोसिएशन आफ इंडिया के महासचिव सुरेश सोनवणे के मुताबिक , “ज्यादातर बौद्ध बेहद पिछड़े वर्ग से आते हैं, उन्हें अपने विकास के लिए विशेष योजनाओं, विशेष लाभ की जरूरत होती है.”
“न केवल दलित बल्कि अन्य समुदायों के लोग भी बौद्ध धर्म अपनाते हैं और वे विकास से वंचित हैं क्योंकि वे अल्पसंख्यक हैं और विशेष रूप से उनके लिए कोई सरकारी योजना नहीं है।” सोनवणे के मुताबिक अल्पसंख्यको का समान विकास संवैधानिक जिम्मेदारी है लेकिन उसे भी नहीं निभाया जा रहा है। जैन और सिख समाज को छोड़ दे ज्यादातर अल्पसंख्यक समाज की आर्थिक सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति बेहद कमजोर है।