अहमदाबादः उद्योगों द्वारा गैर-अनुपालन के कुछ कामों को अपराध से मुक्त करके व्यापार करने में आसानी को बढावा देने के उद्देश्य से लाया गया गुजरात विद्युत उद्योग (पुनर्गठन और विनियमन) (संशोधन) विधेयक (The Gujarat Electricity Industry (Reorganisation and Regulation) (Amendment) Bill), 2022 बुधवार को विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित हो गया।
बिल पेश करने के दौरान ऊर्जा मंत्री कनु देसाई ने कहा, ‘यह विधेयक गुजरात विद्युत उद्योग (पुनर्गठन और विनियमन) अधिनियम 2003 में संशोधन का प्रयास करता है, ताकि उद्योग और उपभोक्ताओं के लिए व्यवसाय करने में आसानी की दिशा में एक प्रगतिशी कार्रवाई के साथ-साथ अनुपालन के बोझ को भी कम किया जा सके।’
मंत्री ने मौजूदा कानून की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘इस अधिनियम की धारा-54 में प्रावधान है कि लाइसेंसधारी या कोई अन्य व्यक्ति इस अधिनियम के किसी प्रावधान के तहत कानूनी रूप से दिए गए किसी आदेश की बगैर किसी उचित कारण के अवहेलना करने का दोषी पाया जाता है तो उसे तीन माह की जेल होगी या दो लाख रुपये का जुर्माना लगेगा या दोनों सजाएं मिलेंगी।’
उन्होंने कहा कि गैर-अनुपालन के कृत्यों को निम्न, मध्यम और उच्च श्रेणी के रूप में विभाजित किया जाएगा और इस प्रावधान के तहत निम्न और मध्यम श्रेणी के कृत्यों पर कारावास की सजा नहीं मिलेगी।
देसाई ने कहा, ‘हालांकि, यह सरकार के विचाराधीन है कि बिजली उद्योग में व्यवसाय करने में आसानी की पहल के रूप में, उक्त निर्देशों, आदेशों या मांग आदि के गैर-अनुपालन के कुछ कामों को अपराध से मुक्त किया जा सकता है और केवल गंभीर हो सकता है या गैर-अनुपालन के गंभीर मामलों में कारावास की सजा दी जा सकती है ताकि गैर-अनुपालन के खिलाफ प्रतिरोध हासिल किया जा सके।’
एनडीए का आंकड़ा यूपीए शासन (2004 से 2014) से बिल्कुल अलग है। यूपीए शासन में एजेंसी द्वारा केवल 26 नेताओं की जांच की गई थी। इनमें विपक्ष के 14 यानी 54 फीसदी नेता शामिल थे। ईडी के मामलों में बढ़ोतरी मुख्य रूप से प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के कारण हुई है। इस कानून को 2005 में लागू होने के बाद से काफी कड़ा बना दिया गया है। कड़ी जमानत शर्तों के साथ इसके प्रावधान अब एजेंसी को गिरफ्तारी की भी अनुमति देते हैं।
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