पिछले महीने यानी 28-29 जून को वस्तु एवं सेवा कर (GST) परिषद की 47वीं बैठक में लिए गए निर्णय से मरीज के लिए हॉस्पिटल का कमरा भी महंगा हो जाएगा। निर्णय के मुताबिक, 5,000 रुपये प्रति दिन से अधिक के कमरे के किराए वाले गैर-आईसीयू अस्पताल के कमरों पर 18 जुलाई से 5% जीएसटी लगेगा। आईसीयू बेड या आईसीयू कमरे को जीएसटी के दायरे में नहीं रखा गया है।
5000 रुपये प्रति दिन के एक कमरे के किराए पर जीएसटी राशि 250 रुपये होगी। दो दिनों के लिए अस्पताल के कमरे का किराया (जीएसटी के बिना) 10,000 रुपये होगा और उस पर जीएसटी 500 रुपये लगेगा। यानी दो दिन अस्पताल में रहने पर 10,500 रुपये का भुगतान करना होगा। इतना ही नहीं, किसी भी अन्य सेवाओं की तरह अस्पताल में रहने के मामले में भी अस्पताल में मरीज जितना अधिक समय रहेगा, जीएसटी राशि की मात्रा उतनी ही अधिक होगी।
यह कोई रहस्य नहीं है कि स्वास्थ्य सेवा उद्योग किसी भी अन्य उपभोक्ता आधारित उद्योग से अलग है और सरकार को किसी भी नीति-स्तर के बदलाव को लागू करने से पहले इस पर ध्यान देना चाहिए। यह देखते हुए कि अस्पताल में रहना विलासिता का खर्च नहीं है, बल्कि इलाज संकट के समय की आवश्यकताएं हैं। इसलिए अस्पताल से संबंधित सेवाओं के खर्च पर जीएसटी नहीं लगाया जा सकता है, जैसा कि कई अन्य उपभोक्ता आधारित उद्योगों के मामले में है।
लागू करने में परेशानी
मोटे तौर पर भारत में इस समय अस्पताल की सेवाओं पर जीएसटी नहीं है। हालांकि, यह गैर-आईसीयू अस्पताल के कमरों पर 5% जीएसटी की शुरूआत के साथ बदल जाएगा, जिनके कमरे का किराया प्रतिदिन 5000 रुपये से अधिक है। उद्योग के प्रतिनिधियों के अनुसार, इससे अस्पतालों के लिए भ्रम की स्थिति पैदा होगी, क्योंकि इलाज या सेवाओं के लिए अस्पतालों द्वारा पेश किए गए पैकेज के हिस्सा के रूप में रूम किराए को दिखाने में दिक्कत होगी।
इसके अलावा, अस्पतालों को अपने बिलिंग और अन्य सॉफ्टवेयर सिस्टम में उचित बदलाव करना होगा। खासकर वहां, जहां कमरे का किराया 5,000 रुपये प्रति दिन से अधिक है। इसके अलावा, अस्पतालों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता होगी कि मासिक जीएसटी फाइलिंग में इसकी विधिवत रिपोर्ट की गई है और अन्य संबंधित जीएसटी अनुपालनों को विधिवत छूट दे दी गई है।
निष्कर्ष
कुछ प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं के बावजूद सरकार आशंकाओं को अनावश्यक मानते हुए अपने फैसले पर कायम है। सरकार का तर्क यह है कि चूंकि 5% जीएसटी केवल 5000 रुपये या उससे अधिक प्रतिदिन के कमरों पर लगाया जाना है, इसके दायरे में आने वाले कमरों का प्रतिशत ‘छोटा’ होगा। इसलिए इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा।
वैसे दोनों पक्षों के तर्कों में दम है। जहां उद्योग बढ़ी हुई लागत और जटिलताओं से चिंतित है, वहीं सरकार को चीजों के वृहद पक्ष पर विचार करते हुए जीएसटी कवरेज को बढ़ाना होगा। चाहे जो भी हो, चिंताओं को बेहतर ढंग से समझने और यथासंभव समाधान सुनिश्चित करने के लिए सभी संबंधित पक्षों के बीच संवाद शुरू करना ही चाहिए।