अपने बजट भाषण के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रयोगशाला में विकसित हीरों (LGDs) को बढ़ावा देने की घोषणा की। उन्होंने भारत में एलजीडी के विकास को सुविधाजनक बनाने के लिए आईआईटी को ग्रांट देने की भी घोषणा की।
वैसे मोइसैनाइट, क्यूबिक जिरकोनिया (सीजेड), सफेद नीलम, वाईएजी आदि जैसी सामग्री “डायमंड सिमुलेंट” हैं, जो केवल हीरे की तरह “दिखती” हैं, उनमें हीरे की चमक और स्थायित्व (durability) की कमी होती है। इस तरह उन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है। हालांकि, एलजीडी और अर्थ माइन्ड डायमंड के बीच अंतर करना कठिन है। इसके आधुनिक उपकरणों की आवश्यकता होती है।
जैसे-जैसे पृथ्वी में प्राकृतिक हीरे के भंडार कम होते जा रहे हैं, एलजीडी धीरे-धीरे आभूषण उद्योग में बेशकीमती रत्नों की जगह ले रहे हैं। प्राकृतिक हीरे की तरह ही एलजीडी भी पॉलिशिंग और कटिंग की समान प्रक्रियाओं से गुजरते हैं, जो हीरे को उनकी विशिष्ट चमक देने के लिए जरूरी हैं।
लैब में बने हीरे क्या हैं?
लैब में बनाए गए हीरे ऐसे होते हैं, जो विशिष्ट तकनीक का उपयोग करके तैयार किए जाते हैं। वे प्राकृतिक हीरे की नकल होते हैं। वे “डायमंड सिमुलेंट” के समान नहीं हैं। एलजीडी दरअसल केमिकली, फिजीकली और वैकल्पिक (optically) रूप से तैयार हीरा हैं, जिन्हें पहचानना मुश्किल है।
एलजीडी का उत्पादन कैसे किया जाता है?
ऐसे कई तरीके हैं जिनसे एलजीडी का उत्पादन किया जा सकता है। सबसे आम (और सबसे सस्ता) “हाई प्रेशर, हाई टेम्परेचर” (HPHT) विधि है। जैसा कि नाम से पता चलता है, इस विधि में भारी दबाव की आवश्यकता होती है, जो काफी अधिक तापमान (कम से कम 1500 सेल्सियस) के तहत 730,000 पीएसआई तक दबाव उत्पन्न कर सकती है। आमतौर पर ग्रेफाइट का उपयोग “हीरे के बीज” (“diamond seed) के रूप में किया जाता है और जब इन चरम स्थितियों के अधीन होता है, तो कार्बन का अपेक्षाकृत सस्ता रूप कार्बन के सबसे महंगे रूपों में से एक में बदल जाता है।
एलजीडी किसके लिए उपयोग किए जाते हैं?
एलजीडी में प्राकृतिक हीरे के समान मूल गुण होते हैं, जिसमें उनके ऑप्टिकल फैलाव भी शामिल हैं, जो उन्हें विशेष हीरे की चमक प्रदान करते हैं। चूंकि वे नियंत्रित वातावरण में बनाए गए हैं, इसलिए उनके कई गुणों को विभिन्न उद्देश्यों के लिए बढ़ाया जा सकता है।
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