ओमिक्रॉन वेरिएंट के अचानक प्रसार ने क्रिसमस और नए साल के जश्न के साथ-साथ अमीरों की यात्रा योजनाओं को भी तहस-नहस कर दिया है। यह उन लोगों के लिए पूर्वाभास की गहरी भावना लेकर आया है, जिन्होंने अपने प्रियजनों को खो दिया है और जिन लोगों की आजीविका लंबे लॉकडाउन के दौरान प्रभावित हुई थी। एक तरफ इसके अंत की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती, वहीं मामलों में अभूतपूर्व दर से वृद्धि जारी है। कोई विशेषज्ञ यह आकलन नहीं कर पा रहा है कि इससे अस्पताल की व्यवस्था और स्वास्थ्य कर्मियों पर कितना दबाव पड़ेगा। आने वाले वर्षों में मानव शरीर पर दीर्घकालिक प्रभाव अभी भी देखा जाना बाकी है।
टीकों की पहुंच वाले देश बूस्टर खुराक देने में जुट गए हैं। प्रतिबंधों की घोषणा कर रहे हैं। भारत के प्रधानमंत्री ने भी बुजुर्गों और बच्चों के लिए एक चरणबद्ध बूस्टर टीकाकरण योजना की घोषणा की है। राज्य सरकारों ने कर्फ्यू क्षेत्र और अन्य प्रतिबंधों की घोषणा की है। सवाल यह है कि क्या यह महामारी की चुनौती का सामना करने के लिए पर्याप्त है, जो विज्ञान और चिकित्सा प्रतिक्रियाओं को धता बताते हुए नए रूपों में उभर आती है।
डरावनी दूसरी लहर
भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य-और वास्तव में दुनिया भर में- को बहुत गहरे और साहसिक फैसलों की जरूरत है। इसलिए कि टीके और गोलियां अस्थायी राहत प्रदान कर सकती हैं। ऐसे में उन सभी तरीकों से रोकथाम पर ध्यान देना चाहिए जो आज हमें ज्ञात हैं। दुनिया में कोई भी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली संक्रमित होने वाली आबादी के महत्वपूर्ण प्रतिशत का इलाज और देखभाल करने के लिए तैयार नहीं है। हमने दूसरी लहर के दौरान सब ध्वस्त होते देखा है और इसकी कोई गारंटी नहीं है कि ऐसा फिर से नहीं होगा।
अभी भी अज्ञात और पूरी तरह से न समझी जाने वाली महामारी का उछाल दो दशक पहले आए ऐसे ही समय की याद दिलाता है। तब एचआईवी/एड्स ने दुनिया भर में हंगामा किया था। अफ्रीका के देशों, विशेष रूप से युगांडा, केन्या और दक्षिण अफ्रीका, और थाईलैंड और अन्य ने सामान्य आबादी में 2% प्रसार की सूचना दी थी। कई जगह पूरी पीढि़यों का सफाया हो गया। कोई निवारक दवा या इलाज नहीं था।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने घोषणा की कि भारत महामारी का अगला केंद्र होगा। बीमारी के रहस्य को जोड़ने के लिए, यह स्पष्ट था कि युवा आबादी अनुपातहीन रूप से प्रभावित थी। चाहे वह असुरक्षित यौन संबंध, ब्लड चढ़ाना, या नशीली दवाओं के व्यसनों द्वारा संक्रमित सुइयों के उपयोग से संचरण हो, एचआईवी/एड्स ने देश के युवाओं के लिए खतरा पैदा कर दिया था, जो एक परिवार और समाज के आर्थिक स्वास्थ्य का मूल है।
भारत ने एचआईवी/एड्स के दौरान डब्ल्यूएचओ को कैसे गलत साबित किया
1997 में विश्व बैंक परियोजना के रूप में भारत में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी। इसके पहले कार्यों में से एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण करना और कमजोर आबादी का आकलन करना था। निवारक दवा या इलाज के लाभ के बिना, प्रसार को कम करने का एकमात्र तरीका संचार के माध्यम से था, यानी व्यवहार परिवर्तन के जरिये रोकथाम।
लोगों को इस बात से अवगत कराने के लिए कि उनमें से हरेक सुरक्षित रहने और परिवारों को सुरक्षित रखने के लिए क्या कर सकता है, एक व्यापक सार्वजनिक पहुंच और संचार योजना शुरू की गई। लोगों तक उनकी भाषा में पहुंचने और असुरक्षित व्यवहार के निहितार्थों को समझने के लिए हर अवसर का उपयोग किया गया। यह डेटा द्वारा समर्थित था, जिसमें सामाजिक कार्यकर्ताओं की भागीदारी थी। इसमें गहन मीडिया अभियानों का भी समर्थन था।
भाषा आसान थी, रोकथाम के सरल उपाय। एक सक्षम वातावरण बनाया गया, जहां लोगों की कंडोम, रक्त के सुरक्षित लेन-देन के लिए स्वच्छ सुई और रक्त बैंकों तक पहुंच थी। मुख्य संदेश था “मैं कर सकता हूँ, मैं करूँगा, मुझे अवश्य करना चाहिए।”
इतिहास इस बात का गवाह है कि भारत न केवल इस रोग को धीमा करने में सक्षम हुआ, बल्कि एंटी-रेट्रोवायरल दवाओं के उपलब्ध होने से बहुत पहले इस महामारी को रोकने में भी सक्षम हुआ। डब्ल्यूएचओ की भविष्यवाणी गलत साबित हुई।
सबको चाहिए एक ‘झटका’
आज हमें कोविड-19 महामारी के लिए एक समान केंद्रित नीति की आवश्यकता है। हमें एक प्रभावी, बहुस्तरीय संचार और सब तक पहुंचने वाले अभियान की आवश्यकता है, जो सुरक्षित व्यवहार को हर हाल में लागू कराता है।
कोविड-19 के लिए आज सबसे अच्छी रोकथाम सुरक्षित प्रथाओं को अपनाना है, जो हमें कम जोखिम में रखती हैं। जैसे- सही तरीके से मास्क पहनना, सामाजिक दूरी बनाए रखना और भीड़-भाड़ वाली जगहों से बचना। टीकों ने सुरक्षा का एक उपाय दिया है, लेकिन निश्चित समयसीमा तक उनकी प्रभावशीलता अभी तक स्थापित नहीं हुई है। भले ही सर्वोत्तम टीके उपलब्ध हों, यह सुनिश्चित करना कि पूरी आबादी को पूरी तरह से टीका लगाया गया है, एक बड़ी चुनौती होगी।
जबकि सरकारों और चिकित्सा बिरादरी को इन प्रयासों का नेतृत्व करना चाहिए, एक साधारण सूचना प्रयास पर्याप्त नहीं होगा। हमें एक प्रभावी, चुभने वाले ‘झटके’ या व्यवहार परिवर्तन संचार की आवश्यकता है। हमें मजबूत व्यवहार परिवर्तन विधियों के माध्यम से रोकथाम पर जोर देना चाहिए।
इसलिए कि वह बताता है कि कैसे सार्वजनिक नीति को लोगों को सही चुनाव करने के लिए मार्गदर्शन करना चाहिए।