गर्मी छुट्टी के दौरान स्कूल में पढ़ने वाले शारदा नंद तिवारी का अधिकांश समय लखनऊ में किराने की दुकानों पर काम करने में चला जाता था। वह अपने शौक का बोझ सुरक्षा गार्ड की नौकरी करने वाले पिता पर नहीं थोपना चाहते थे। इसलिए तिवारी ने किराने की दुकान से बतौर मजदूरी मिले 700 रुपये का एक-एक पैसा हॉकी के सामान खरीदने के लिए बचा लिया।
कुछ सौ किलोमीटर दूर करमपुर में उत्तम सिंह पिता कृष्णकांत सिंह के सपने को पूरे करने में लगे थे। महत्वाकांक्षी खिलाड़ी कृष्णकांत को पिता के असामयिक निधन के बाद हॉकी छोड़ कर परिवार की मदद करने के लिए मजबूर होना पड़ा। जबकि छोटे किसान ने बेटे उत्तम को खिलाड़ी बनाने में जुटाई गई थोड़ी-बहुत पूंजी भी लगा दी थी।
अटागांव के पास ही जब विष्णुकांत सिंह सिर्फ छह साल के थे, तब उन्होंने राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी बहन प्रीति के नक्शेकदम पर चलते हुए गांव के मैदान में ही खेलना शुरू कर दिया था। उस दिन के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
अलग-अलग प्रेरणाओं और पृष्ठभूमि के साथ तीनों के रास्ते सबसे पहले लखनऊ में भारतीय खेल प्राधिकरण की अकादमी में मिले। अब वे जूनियर विश्व कप में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले 18 खिलाड़ियों में शामिल हैं, जहां वे बुधवार को ओडिशा की राजधानी में क्वार्टर फाइनल में बेल्जियम से भिड़ेंगे।
जी हां, इस टीम के पांच खिलाड़ी उत्तर प्रदेश से हैं। यह राज्य में हॉकी के पुनरुद्धार का संकेत है, जो कभी देश में खेल का उद्गम स्थल हुआ करता था।
प्रशासक और पूर्व खिलाड़ी आरपी सिंह कहते हैं, ”यह खुशी की बात है। लोग यूपी के हॉकी इतिहास के बारे में भूल गए थे। लगभग दो दशकों से हमारे पास एक ऐसा खिलाड़ी नहीं है, जिसे भारत की ओर से खेलने के लिए चुना गया हो। मुझे उम्मीद है कि यहां से नए अध्याय की शुरुआत होगी।”
आरपी सिंह उस पीढ़ी के हैं, जब यूपी ने कुछ सबसे स्टाइलिश खिलाड़ी तैयार किए थे। जैसे मोहम्मद शाहिद, एम पी सिंह और जफर इकबाल। 1970 और 1980 के दशक के दौरान भारतीय टीमें वस्तुतः सबसे अधिक आबादी वाले राज्य के खिलाड़ियों से बनती थीं।
उदाहरण के लिए 1982 में यूरोप के दौरे के दौरान टीम के 16 सदस्यों में से 11 मेरठ स्पोर्ट्स हॉस्टल से आए थे। 1988 के सियोल ओलंपिक में छह खिलाड़ी लखनऊ के छात्रावास से थे। कुल मिलाकर 1976 और 1996 के बीच, राज्य ने ओलंपिक में भाग लेने वाले एक दर्जन सहित लगभग 60 अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी दिए।
इतना ही नहीं, लखनऊ के इस क्रिकेट स्टेडियम का नाम तक हॉकी के दिग्गज खिलाड़ी रहे केडी सिंह बाबू के नाम पर रखा गया है।
हालांकि पूर्व खिलाड़ियों का कहना है कि प्रतिकूल समय ने कुछ खिलाड़ियों में अनुशासनहीनता को बढ़ावा दिया। ऐसा अकादमियों में कोचिंग तकनीकों को विकसित करने में विफलता के साथ हुआ। यानी इस क्षेत्र में प्रतिभाएं मुरझाने लगीं।
और फिर राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंट के लिए चयन में “सिफरिश” जैसी सदियों पुरानी समस्या तो थी ही। यूपी सरकार के खेल निदेशक आरपी सिंह कहते हैं, “अब हम उस प्रथा को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं। केवल वही खिलाड़ी चुने जाते हैं जो टीम में शामिल होने के लायक होते हैं। “
राष्ट्रीय चैंपियनशिप- सीनियर और जूनियर, पुरुष और महिला – में यूपी की टीमों के प्रदर्शन में हालिया सुधार ने उनके खिलाड़ियों की पहचान राष्ट्रीय टीम चुनने वालों द्वारा भी की गई है, जिससे प्रशिक्षण शिविरों का मार्ग प्रशस्त हुआ है।
गाजीपुर जैसे जिले, जहां बंजर भूमि को प्रशिक्षण क्षेत्रों में बदल दिया गया है। इतना ही नहीं. लखनऊ और इलाहाबाद जैसे पारंपरिक गढ़ की जगह नए क्षेत्र बन गए हैं।
जूनियर विश्व कप टीम के तीन खिलाड़ियों- उत्तम, विष्णुकांत और राहुल राजभर- ने गाजीपुर के करमपुर में अपनी स्टिक का जादू दिखाया है, जो हॉकी प्रेमी स्वर्गीय तेज बहादुर सिंह द्वारा स्थापित अकादमी है, जिसने एक गुमनाम से गांव को खेल की नर्सरी में बदल दिया है। अटलांटा ओलंपिक 1996 में खेलने वाले पवन कुमार के बाद टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक विजेता ललित उपाध्याय इस खेल के लिए चयनित होने वाले राज्य के पहले खिलाड़ी हैं, जिन्होंने शुरुआती कुछ साल इसी अकादमी में बिताए।
उपाध्याय अब इस क्षेत्र के खिलाड़ियों का मार्गदर्शन करते हैं। इस विश्व कप में तीन मैचों में चार गोल करने वाले उत्तम कहते हैं, “वह मैचों से पहले और बाद में हमसे बात करते हैं, हमें बताते हैं कि हमने क्या सही किया है और किन क्षेत्रों में हम सुधार कर सकते हैं। चूंकि ललित की भी हमारी जैसी ही यात्रा रही है, इसलिए वह हमें अच्छी तरह समझते हैं।”
उत्तम आगे कहते हैं: “मेरे पिता पारिवारिक दबाव के कारण खेलना जारी नहीं रख सके। वह अकेला कमाने वाले थे और इसलिए खेल पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सके। मेरे खर्चों को भी संभालना उसके लिए आसान नहीं था। लेकिन तेज बहादुर सिंह, जिनका इसी साल निधन हो गया, और उनके भाई राधे मोहन सिंह ने साई लखनऊ चले जाने के बाद भी मेरी जरूरतों का खयाल रखा।”
यूपी का पंजा पूरा करते हैं वाराणसी के रहने वाले गोलकीपर प्रशांत चौहान।
विश्व कप में ग्रुप मैचों में, दो साल में अपने पहले अंतरराष्ट्रीय खेलों में, इन खिलाड़ियों ने उन गुणों का प्रदर्शन किया जो हमेशा यूपी के खिलाड़ियों की विशेषता रहे हैं। चौहान ने पैरों के बीच निपुणता दिखाई, उत्तम ने लक्ष्य के लिए एक अचूक निशाना दिखाया, और विष्णु कांत ने उल्लेखनीय रूप से तेज कलाई और असाधारण स्टिक कौशल का प्रदर्शन किया।
इन सभी ने टूर्नामेंट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसलिए गत चैंपियन भारत ने फ्रांस से शुरुआती मुकाबला हारने के बावजूद कनाडा और पोलैंड पर जीत हासिल कर क्वार्टर फाइनल के लिए क्वालीफाई करने में सफल रहा।
आरपी सिंह मानते हैं कि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि जूनियर स्तर पर सफलता सीनियर स्तर तक जाएगी। लेकिन उन्हें उम्मीद है कि यह टूर्नामेंट अन्य युवा खिलाड़ियों के लिए दरवाजे खोलेगा।
वह कहते हैं, “अगली पीढ़ी को प्रेरित करने के लिए राष्ट्रीय टीम में प्रतिनिधित्व महत्वपूर्ण है। सालों से हमारे पास ऐसा नहीं था। लेकिन अब, जब युवा इन खिलाड़ियों को देखते हैं, तो यह उन्हें प्रेरित करने वाला साबित होता है। ” उन्होंने कहा, “मुझे उम्मीद है कि हम उन दिनों की वापसी कर सकेंगे, जब सीनियर राष्ट्रीय टीम का आधा हिस्सा फिर से यूपी के खिलाड़ियों से बने।”