वीर सांघवी
यह समय जहां बनता है, वहां क्रेडिट देने का है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष रहते और बाद में परदे के पीछे से अध्यक्ष के रूप में कामों के रिकॉर्ड के बारे में क्या सोचते हैं। इस बात से इनकार करना मुश्किल है कि उनकी भारत जोड़ो यात्रा बेहद शानदार रही है। यह 7 सितंबर को शुरू हुआ था और इसे पूरा होने में 150 दिन लगेंगे। राहुल कन्याकुमारी से कश्मीर तक 3,570 किलोमीटर तक पूरी तरह पैदल चल रहे हैं।
अब तक यह यात्रा काफी सफल रही है। इस दौरान राहुल ने किसी भी कांग्रेस शासित राज्य की यात्रा नहीं की है (वह अभी तक राजस्थान नहीं पहुंचे हैं)। फिर भी जहां भी वे गए हैं, वहां लगभग हर जगह भारी भीड़ को आकर्षित किया है। उनके भाषणों की व्यापक रूप से सराहना की गई है। एक अवसर पर तो भीड़ उनके भाषण को सुनने के लिए भारी बारिश में भी बैठी थी, जो कम बड़ी बात नहीं है। कर्नाटक में जहां भाजपा सरकार अस्थिर है, वहां यात्रा ने कांग्रेस समर्थक भावनाओं को जगाने का काम किया है।
शुरुआती संकेत हैं कि यात्रा ने जमीनी स्तर पर पार्टी के कार्यकर्ताओं में भी जोश भरा है। लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इसने लोगों को असली राहुल गांधी को देखने का मौका दिया है। यह भाजपा द्वारा बनाए गए कैरिकेचर और टीवी समाचारों और सोशल मीडिया पर दिखाए जाने वाले से कतई अलग है।
और पूरे रास्ते चलते हुए राहुल ने एक नितांत भारतीय भावना की तरफ ध्यान खींचा है। वह यह कि नेता वही, जो अपने लोगों के बीच चलता है। यह उस तरह का नेता नहीं है, जो हजारों पुलिसकर्मियों द्वारा क्षेत्र को सुरक्षित करने के बाद हेलीकॉप्टर से उतरता है। उनके भाषण दिल से निकलते हैं और किसी भी एजेंडे से रहित होते हैं। इनमें से अधिकांश यात्रा वाले राज्यों में चुनाव नहीं होने हैं, इसलिए वे केवल वोट जीतने के लिए नहीं निकले हैं।
राहुल गांधी ने अब तक क्या गलत किया?
जब मैं राहुल गांधी के बारिश में चलने या सड़कों पर लाइन लगाने वाले लोगों से बात करने के लिए रुकने के फुटेज देखता हूं, तो हमेशा एक ही विचार से प्रभावित होता हूं: हमने इस राहुल को पहले क्यों नहीं देखा? यह ऐसा राहुल है, जिससे जुड़कर भारत अपने को देख सकता है।
इसके बजाय, राहुल ने पिछले कई वर्षों को ऐसे काम करने की कोशिश में बर्बाद कर दिए हैं, जो उन्हें नहीं करने चाहिए थे। इस प्रक्रिया में वह जवाबदेह के रूप में सामने आए। सबसे पहले, उन्हें यूपीए-2 में मनमोहन सिंह के अधीन काम करना चाहिए था, और विनम्रता से खुद को प्रधानमंत्री की इच्छा के सामने पेश कर देना चाहिए था। इसके बजाय, वह एक वैकल्पिक शक्ति केंद्र बन गए। यहां तक कि एक अध्यादेश को फाड़ कर फेंकने की बात की, जिसे कैबिनेट ने पारित किया था। वह अध्यादेश के बारे में सही थे, लेकिन इसे सार्वजनिक रूप से बकवास कह कर प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा को कम आंकना गलत था। यह पूरी तरह से वैसे धारणा के अनुरूप हो गया, जो भाजपा बना रही थी।
फिर, उन्होंने ऐसा काम हाथ में ले लिया, जिसके लिए वह उपयुक्त नहीं थे। इतिहास ने हमें सिखाया है कि अगर आप किसी संगठन को चलाना नहीं जानते हैं, तो आप कभी भी एक अच्छे कांग्रेस अध्यक्ष नहीं हो सकते। राहुल का विचार सही था: पार्टी पदों के लिए चुनाव कराना, युवा कांग्रेस को पुनर्जीवित करना और उत्तर प्रदेश में पार्टी के कैडरों को फिर से बनाना।
लेकिन यह तेजी से स्पष्ट हो गया कि उनके विचार जितने भी अच्छे रहे हों, उन्हें वह लागू नहीं करा सकते थे। उन्हें यह स्वीकार करना चाहिए था। इसलिए एक तरफ हटकर किसी और को पार्टी चलाने देना चाहिए, भले ही वह इसके प्राथमिक चेहरों में से एक बने रहें।
लोगों के बारे में उनके फैसले भी गलत थे। कांग्रेस में यह कहना सामान्य है कि राहुल गांधी ने जिन युवा राजवंशों से खुद को घेर लिया था, वे सिर्फ अपने लिए थे। इसलिए कि मौका देखते ही वे सभी भाग गए और पहले अवसर पर ही भाजपा में शामिल हो गए। एकदम सही। लेकिन उन्हें इस हद तक बढ़ावा किसने दिया?
इन लोगों के बारे में यह राहुल की गलतफहमी ही थी, जिसके कारण ही वे शुरू से ही इतने महत्वपूर्ण हो गए थे।
एक मितभाषी और अंतर्मुखी व्यक्ति सोनिया गांधी पार्टी के लिए नेतृत्व देने में सक्षम होने का एक कारण यह था कि उनके पास पार्टी के संपर्क में रहने के लिए अहमद पटेल जैसे लोग थे। राहुल गांधी के साथ ऐसा नहीं रहा। आप जिस भी कांग्रेसी से बात करेंगे, वह आपको बताएगा कि (क) राहुल से संपर्क नहीं हो पाता है और (ख) वह उन अक्षम लोगों से घिरे हुए हैं, जिन्होंने पार्टी को हाईजैक कर लिया है। यदि आपको ऐसा माना जाता है, तो आप कभी भी प्रभावी पार्टी अध्यक्ष नहीं हो सकते हैं।
ऐसे में राहुल गांधी को क्या करना चाहिए
आज राहुल गांधी पर जो कुछ भी आरोप लगाया जाता है, वह किसी संगठन को चलाने में उनकी अक्षमता की वजह से है। उन्होंने गुजरात जैसे राज्यों में लाभ के मौकों को खिसकने दिया (वहां कांग्रेस हार जाएगी। हालांकि एक बार उसके जीतने का अवसर भी लगता था।) उन्होंने पंजाब की राजनीति की प्रकृति को गलत समझा और राज्य को उपहार में दे दिया। इसी तरह कांग्रेस केरल में हार गई, क्योंकि वह अंदरूनी कलह को नियंत्रित नहीं कर सके।
राहुल की प्राथमिक विफलता भी है। वह यह कि खुद को उस रूप में नहीं देख पाते, जैसा भारत देख रहा है। अपने बारे में वस्तुनिष्ठ (objective) होना कठिन है, खासकर जब आप ऐसे लोगों से घिरे होते हैं जो आपको बताते रहते हैं कि आप तो महान हैं। इसलिए राहुल यह नहीं मानते हैं कि भारत का अधिकांश हिस्सा उन्हें एक वंशवादी के रूप में देखता है, जिसमें अधिकार की भावना है और जिसे दिखाने के लिए अपनी कोई वास्तविक उपलब्धि (achievements) नहीं है।
भारत में कई सफल राजवंश रहे हैं, लेकिन उनके पास आमतौर पर जाति या क्षेत्रीय आधार थे। एक तरफ यह कहना कि आप एक उदार, प्रतिभाशाली समाज में विश्वास करते हैं और फिर पार्टी का नेतृत्व केवल इसलिए करते हैं क्योंकि यह मौका आपको वंशवाद से मिला। ये विरोधाभासी (conflict) बातें हैं।
लोगों द्वारा सोनिया का सम्मान करने का एक कारण 1991 में पार्टी अध्यक्ष का पद लेने से इनकार करना और फिर 2004 में प्रधानमंत्री पद को ठुकरा देना है। दूसरी ओर, राहुल 60 वर्षों में स्वेच्छा (voluntarily) से और उत्सुकता से राजनीति में शामिल होने वाले पहले गांधी हैं। इसलिए उन्हें यह दिखाने की ज़रूरत है कि वह अपने माता-पिता के उत्तराधिकारी से बढ़कर हैं।
अफसोस की बात यह कि उन्होंने इसे स्पष्ट करने में बहुत कम समय बिताया है। इसके बजाय उन्होंने लोगों को प्रतीक्षा में रखने, हर कुछ महीने पर छुट्टियां मनाने विदेश जाने और फिर ऐसा दिखाने में समय लगाया है कि वह सब कुछ जानते हैं।
लेकिन राहुल गांधी का एक दूसरा पहलू भी है: जो कड़ी मेहनत करने के लिए तैयार है, जो करीब से मिलता है और मिलनसार हो सकता है, जो न तो दुर्भावनापूर्ण है और न ही कुटिल, जो उज्ज्वल और पढ़ा-लिखा है और जो ऐसे जुनून में विश्वास करता है जिन मूल्यों पर भारत की स्थापना हुई थी।
दुर्भाग्य से, हमें ऐसे राहुल गांधी बहुत कम देखने को मिलते हैं। भारत जोड़ो यात्रा का महत्व इसलिए है कि यह राहुल को स्वयं को पहचानने की शक्ति देता है और लोगों को उनके उस पक्ष को देखने देता है। ऐसे समय में जब भारत इतनी नफरत से बंटा हुआ है, कौन इस यात्रा का समर्थन नहीं कर सकता है, जो इस बात की पुष्टि करती है कि हम एक हैं, और उस प्रेम को भारत को एक साथ बांधना चाहिए?
अब आगे क्या? मैं ईमानदारी से नहीं जानता। मैंने सोचा था कि कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में संगठन का कोई अनुभवी व्यक्ति (जैसे अशोक गहलोत या कमलनाथ) होगा और पार्टी अपने को जोड़कर एक साथ काम करेगी।
उस परिदृश्य (scenario) में राहुल वह कर सकते थे जो वह सबसे अच्छा करते हैं: भारतभर की यात्रा, जैसे वह कर रहे हैं। और, इसने जमीन पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं को प्रेरित भी किया है।
मुझे यकीन नहीं है कि मल्लिकार्जुन खड़गे के अधीन यह परिदृश्य कायम रहेगा। लेकिन मुझे उम्मीद है कि राहुल गांधी खुद पार्टी चलाने की कोशिश के जाल में नहीं फंसेंगे। वह इसमें अच्छे नहीं हैं और वह ऐसा कर वह केवल भाजपा के लिए चीजों को आसान बना देते हैं।
इसके बजाय, उन्हें भारत जोड़ो यात्रा की भावना पर आगे बढ़ना चाहिए और उस सद्भावना को जीवित रखना चाहिए। द वेस्ट विंग (The West Wing) के लेखक-निर्देशक आरोन सॉर्किन के प्रसिद्ध कथन के अनुसार, उन्हें राहुल को राहुल बनने देना चाहिए।