गुजरात के राजस्व मंत्री राजेंद्र त्रिवेदी एक्शन मोड़ में हैं , शनिवार को उजागर हुए खेड़ा ‘फर्जी किसान’ रैकेट के बाद त्रिवेदी ने अवैध कारोबार की जांच के आदेश दिए हैं। स्वाभाविक प्रश्न जो मन में आता है: नकली किसान होने के क्या फायदे हैं? खैर, गुजरात में, फर्जी किसान का मामला एक जिला का नहीं है पूरे राज्य का है। फर्जी किसान बनाने का रैकेट मौजूद है।
गुजरात में किसान होना आपके गौरव को उचाई प्रदान करता है ,जिसका मूल कारण है एग्रीकल्चर और टेंडेंसी एक्ट 1949 . जो बाद में गुजरात एग्रीकल्चर और टेंडेंसी एक्ट बना। इस एक्ट के लिहाज से गुजरात में खेती लायक भूमि का मालिक यानि किसान वही हो सकता है जिसके पूर्वज 1949 के पहले किसान रहे हो और 7 \ 12 में उनके पूर्वजो का नाम दर्ज हो , फिर क्रमशः वारिसनामा के तौर पर पीढ़ीगत तौर से उनका नाम स्थापित होता हो। या तो कोई कृषि स्नातक हो तो वह सरकार से अनुमति लेकर जमीन खरीद सकता है।
पिछले सात दशक में गुजरात के आर्थिक और सामाजिक मापदंड बदले है , जिसके कारण जमीन के बढ़ते भाव , लगातार बन नयी टीपी योजना , 8 किलो मीटर की सीमा और शहरीकरण ना केवल नाम आदमी को बल्कि बिल्डरों को भी खेती की जमीन खरीदने के लिए आकर्षित करते है। जिसे बाद में गैर कृषि भूमि में परिवर्तित करके व्यावसायिक निर्माण किये जाते है।
हालांकि शनिवार को त्रिवेदी ने फर्जी किसानों द्वारा जमीन के अवैध अधिग्रहण के खिलाफ सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी है. मंत्री ने विशेष रूप से खेड़ा जिले के मातार तहसील में भू-माफिया द्वारा नियंत्रित 500 नकली किसानों को नोटिस जारी किया। मंत्री ने कहा, “मातार के डिप्टी कलेक्टर सहित पांच राजस्व कर्मचारियों को अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त होने का आदेश दिया गया है।”
मंदिर की भूमि का कृषि भूमि में दुरूपयोग और/या वास्तविक किसानों के लिए उपलब्ध विभिन्न योजनाओं में धोखाधड़ी की बारीकी से जांच की जा रही है। “पुलिस के पास उपलब्ध रिकॉर्ड उन सभी को दिखाते हैं जिन्होंने खेती के लिए जमीन हासिल करने के लिए जाली दस्तावेज बनाए। करीब 1,730 मामलों का सत्यापन किया जा चुका है, जिनमें से 628 मामले बेहद संदिग्ध पाए गए हैं।
गुजरात सरकार के ही आकड़े के मुताबिक 2010 -2011 और 2015 -16 के बीच गुजरात में 4. 32 लाख किसानों की संख्या में वृद्धि हुयी है। नए बने किसानों में ज्यादातर सीमान्त किसान हैं , जिनका उद्देश्य 7 \12 की जमीन में नाम दर्ज कराना है , कई नए किसानों की जमीन का क्षेत्रफल इतना कम है कि वहा पर खेती हो ही नहीं सकती।
2015 -16 की कृषि जनगणना के मुताबिक गुजरात में किसानों की संख्या बढ़कर 53 . 20 लाख हो गयी है , जबकि 2010 -11 में 48 . 86 लाख किसान थे। नए बड़े किसानों की संख्या में लघु और सीमांत किसानों में बढ़ोत्तरी का उछाल 89 प्रतिशत है। सात -बार उतरा भूमि अधिकारों का एक रिकॉर्ड है और इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि के बारे में पूरी जानकारी शामिल है। यह भूमि के स्वामित्व के प्रमाण के रूप में भी कार्य करता है।
गुजरात किसान संघ के महासचिव दर्शन नायक कहते हैं यदि अकेले खेड़ा जिले में 2000 बीघा जमीन में गलत तौर से किसान के नाम दर्ज हुए हैं तो पूरे गुजरात का आकड़ा समझा जा सकता है। अकेले खेड़ा के एक मातार तहसील में 2 महीने में 628 शंकास्पद केस सरकार मान रही है। गुजरात किसान संघ ने पहले भी सरकार को पत्र लिखकर फर्जी किसानो के जाँच की मांग की थी। सरकार यदि एसआईटी बनाकर गुजरात में नए बने किसानों की 2020 के बाद ही जांच करें तो हकीकत सामने आ जाएगी।
राजस्व मामलों के वकील किरण राजपूत वाइब्स आफ इंडिया से कहते है यह सब अधिकारियों की मिलीभगत के बिना नहीं हो सकता , कोई नया किसान गलत तरीके से तभी बनता है जब या तो रिकॉर्ड की अनदेखी की जाय , या फिर गलत तरीके से फर्जी दस्तावेज खड़े किये जाये। बहुत सारे उदाहरण में शिकायत के बाद मामलतदार ने किसान का दर्जा रद्द किया है। लेकिन ज्यादातर मामलों में शिकायत नहीं होती क्योकि जिसके वारीसनामा में नाम जोड़ा जाता है या जो विल लिखकर देता है उसे अच्छा पैसा मिलता है। और पटवारी – तहसीलदार को उनका हिस्सा भी।
हालांकि राजस्व मंत्री राजेंद्र त्रिवेदी झुकने के मूड में नहीं हैं। उन्होंने विस्तृत जांच के सख्त निर्देश जारी किए हैं।
गुजरात विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष सुखराम राठवा कहते हैं गुजरात में लैंड माफिया – भाजपा नेता और अधिकारी मिल कर यह रैकेट चला रहे हैं , वह कार्यवाही को दिखावा मान रहे हैं। राठवा जोर देकर कहते हैं अगर पूरे मामले की ठीक से जाँच हो तो कई बड़े नाम सामने आएंगे। वह इसे सरकार की निष्फलता मान रहे हैं।
कैसे चलता है रैकेट
फर्जी किसान बनने का रैकेट के तरीके सामान्य है , जिसमे पहले चरण में ही राजस्व विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत शुरू हो जाती है , पहले वह हम नाम खोजते हैं , और फिर उनकी जगह लेने वाले का नाम शामिल कर दिया जाता है ,ज्यादातर मामलो में मूल नाम वाला वह जगह सालों पहले छोड़ चूका होता है , या जरूरतमंद खोजकर विल लिखवा ली जाती है।
सांणद में हिन्दू की जमीन मुस्लिम युवक के नाम करने के लिए विल का सहारा लिया गया था , जबकि एक मामले में कमाल भाई को कमालवाला कर पेढ़ीनामा तैयार किया गया है।
मातर के एक मामले में तो वारीसनामा में मा की उम्र 51 वर्ष और पुत्र की आयु 49 वर्ष थी। यह कुछ मामले हैं , जितने खोजिये उतने नाम मिल जायेगे। कई तहसीलों में।