राजकोट स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में फैकल्टी सदस्यों के पदों पर वेकैंसी 78 प्रतिशत तक हैं। यहां 183 डॉक्टर होने चाहिए, जबकि हैं सिर्फ 40 डॉक्टर। यह जानकारी स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री भारती प्रवीण पवार ने दी है। वह शनिवार को संसद में सवालों के जवाब दे रही थीं।
उन्होंने बताया कि दिल्ली एम्स के अलावा, देश भर के 18 एम्स में फैकल्टी पदों की औसत वेकैंसी 45.7 प्रतिशत है। आंकड़ों के अनुसार, एम्स भुवनेश्वर में सबसे कम खाली पदों की संख्या 74 (24.26 प्रतिशत) है। मंत्री ने कहा, “सरकार द्वारा एमबीबीएस छात्रों को पढ़ाने के लिए सभी नए एम्स के लिए पर्याप्त फैकल्टी पद मंजूर किए गए हैं।”
उन्होंने कहा कि इन वेकैंसी को भरने के लिए प्रत्येक नए एम्स में एक स्थायी चयन समिति बना दी गई है। प्रोफेसर और सहायक प्रोफेसर के पदों पर सीधी भर्ती के लिए अधिकतम आयु सीमा 50 वर्ष से बढ़ाकर 58 वर्ष की गई है। बाकी सरकारी मेडिकल कॉलेजों में काम कर रहे प्रोफेसरों को डेपुटेशन पर लेने की अनुमति भी दी गई है।
मंत्री ने कहा कि 70 वर्ष की आयु तक के सरकारी मेडिकल कॉलेजों से रिटायर फैकल्टी की कांट्रैक्ट भर्ती, भारत के विदेशी नागरिकों की नियुक्ति और विभागों के बीच कर्मचारियों के डायवर्जन को पर्याप्त स्टाफ सुनिश्चित करने की अनुमति दी गई है।
संसद में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, एम्स बिलासपुर में छात्र-शिक्षक अनुपात सबसे अच्छा है। वहां प्रत्येक दो छात्रों के लिए एक शिक्षक है। सबसे खराब एम्स गोरखपुर में है, जहां प्रत्येक 5.4 छात्रों के लिए एक शिक्षक है।
नए एम्स में फैकल्टी की कमी लंबे समय से समस्या रही है। दरअसल, इस साल की शुरुआत में एक संसदीय स्थायी समिति ने सहायक प्रोफेसरों के लिए 275 रिक्त पदों और प्रोफेसरों के लिए 92 रिक्तियों को लेकर एम्स दिल्ली की खिंचाई की थी।
समिति ने इन पदों पर नियुक्ति के लिए अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के खिलाफ “पूर्वाग्रह” (bias ) का भी उल्लेख किया था।
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