जलवायु परिवर्तन पर दुनिया के अग्रणी प्राधिकरण, इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने अभी एक विस्तृत मूल्यांकन प्रकाशित किया है कि, कैसे मनुष्य हर क्षेत्र में हमारी तेजी से गर्म होती दुनिया में अपरिवर्तनीय परिवर्तन ला रहे हैं।
66 देशों के 234 वैज्ञानिकों द्वारा समीक्षा की गई रिपोर्ट नवंबर में संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता (COP26) से पहले जलवायु की स्थिति पर वर्ल्ड लीडर्स को सूचित करने वाले सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेजों में से एक के रूप में सामने आया है।
हाल के वर्षों में रिकॉर्ड तोड़ने वाले तापमान से लेकर हीटवेव, जंगल की आग से लेकर दुनिया भर में विनाशकारी बाढ़ तक आईपीसीसी की रिपोर्ट, क्लाइमेट चेंज 2021: द फिजिकल साइंस बेसिस ने ग्लोबल वार्मिंग की स्पष्ट वास्तविकता का खुलासा किया है।
रिपोर्ट भारत के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि आईपीसीसी पहली बार मानचित्र और एटलस के साथ एक स्थानीय दृष्टिकोण प्रदान करता है।
भारत ने जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों को देखा है, जिसमें विनाशकारी बाढ़, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में कई बादल फटने और घातक बिजली की घटनाएं शामिल हैं।
रिपोर्ट के महत्वपूर्ण निष्कर्ष:
रिपोर्ट का सारांश इस कथन से शुरू होता है कि: यह स्पष्ट है कि मानव प्रभाव ने वातावरण, महासागर और भूमि को गर्म कर दिया है। वायुमंडल, महासागर, क्रायोस्फीयर और बायोस्फीयर में व्यापक और तीव्र परिवर्तन हुए हैं।
रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि मनुष्यों ने 1850-1900 की अवधि के बाद से दुनिया को लगभग 1.1C तक गर्म कर दिया है। हालांकि यह औसत आंकड़ा है, लेकिन दुनिया के अलग-अलग हिस्से अलग-अलग तापमान पर गर्म हो रहे हैं। विशेष रूप से, आर्कटिक क्षेत्र वैश्विक औसत से दोगुनी दर से गर्म हो रहा है।
मानव प्रभाव ने उत्तरी गोलार्ध में जमे हुये बर्फ में कमी और 1950 के बाद से हीटवेव (गर्मी की लहरों) में वृद्धि में योगदान दिया है। मानव प्रभाव संभवतः 1990 के दशक से ग्लेशियरों के पिघलने और 1979-1988 व 2010-2019 के बीच आर्कटिक समुद्री बर्फ क्षेत्र में कमी का मुख्य कारक रहा है।
पेरिस समझौते में ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने का लक्ष्य अस्थिर हो रहा है और भविष्यवाणियां बताती हैं कि दुनिया, 2030 और 2052 के बीच पूर्व-औद्योगिक (अत्यधिक आधुनिकरण) स्तर से 1.5C ऊपर पहुंच जाएगी। रिपोर्ट के अनुसार अगर तापमान ऐसे ही जारी रहा तो सदी के अंत तक यह 3 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाएगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक तापन के प्राथमिक चालक CO2 (कार्बनडाई ऑक्साइड) का स्तर 2019 में “कम से कम दो मिलियन वर्षों” में किसी भी समय की तुलना में अधिक था।
मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड के स्तर, वार्मिंग के दूसरे और तीसरे सबसे बड़े चालक 2019 में “कम से कम 800,000 वर्षों” में किसी भी समय की तुलना में अधिक थे।
यह देखा गया है कि “अतीत और भविष्य के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण कई बदलाव सदियों से सहस्राब्दियों तक अपरिवर्तनीय हैं”। इसमें वैश्विक समुद्र स्तर, महासागरों और बर्फ की चादरों में परिवर्तन शामिल हैं। समुद्र का स्तर “हजारों वर्षों तक ऊंचा रहेगा”।
पृथ्वी का हर क्षेत्र जलवायु संकट से प्रभावित हुआ है। रिपोर्ट कहता है कि “मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन पहले से ही दुनिया भर के हर क्षेत्र में कई मौसम और जलवायु चरम सीमाओं को प्रभावित कर रहा है”।
रिपोर्ट ने पहले से कहीं अधिक मजबूत सबूतों को भी उजागर किया है कि भारी वर्षा, सूखा, जंगल की आग, गर्मी की लहरें (हीटवेव) और तूफान जैसी भयावह मौसम की घटनाएं जलवायु संकट के परिणामस्वरूप अधिक बार और अधिक होने की संभावना है।
पृथ्वी की जलवायु में महत्वपूर्ण बिंदु, – थ्रेसहोल्ड जहां एक छोटे से परिवर्तन से अद्भुत परिवर्तन हो सकता है, “इनकार नहीं किया जा सकता”। इस तरह के टिपिंग पॉइंट्स में बर्फ की चादर का गिरना या समुद्र के संचलन पैटर्न में अचानक बदलाव शामिल हो सकते हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को लेकर तत्काल कार्रवाई करने से इस तरह के टिपिंग पॉइंट होने की संभावना कम हो जाएगी।
यह रिपोर्ट निकट भविष्य में जलवायु परिवर्तन का एजेंडा तय करेगी। संयुक्त राष्ट्र दिसंबर में केटोवाइस, पोलैंड में जलवायु वार्ता आयोजित कर रहा है, जो पेरिस जलवायु लक्ष्यों के आधार पर नियम स्थापित करने के लिए है जो उत्सर्जन में कमी और आपदा को रोकने के लिए सरकारों के प्रयासों का मार्गदर्शन करेंगे।