पिछले तीन सालों में गुजरात में हुई राजनीतिक उठापटक और आनेवाले साल के अंत में होने वाली राज्य विधानसभा के चुनाव का सीधा संबंध है। बदली हुई राजनीतिक पृष्ठभूमि में अब भारतीय जनता पक्ष को पुनः सत्ता पर आने के लिए और पिछले बार जितनी सीटें मिली थी उससे ज्यादा सीटें लाने के लिए कुछ जोखिम उठाना जरूरी है। खास करके ऐसी परिस्थितियों में जब पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने १८२ में से १८२ सीटें जीतने का मन बनाया हो और उसके लिए वह पूरी आक्रमकता से योजनाएं बना रहे हो।
गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर से श्रीमती आनंदी पटेल को विदा करने के बाद जो राजनीतिक हलचल हुई उसे शांत करने के लिए रुपाणी पटेल को सत्ता के सूत्र सौपे गए। इन दोनों के कार्यकाल में राज्य में स्थानिक स्वराज्य के संस्थाओं के चुनाव हुए। महानगर पालिका, नगर पालिका और पंचायत भाजपा ने काबिज किए और गुजरात की जनता को अभी भी भाजपा में विश्वास है यह साबित किया। कोरोना जैसी महामारी में से राज्य को बाहर निकालने के लिए संघर्ष भी किया। अपने विरोधीयो और विरोधीदलों को इसमें से राजनीतिक मुद्दा ना मिले ऐसा माहौल खड़ा करने में भी वह दोनों सफल हुए, फिर भी अगले साल आने वाले चुनाव को ध्यान में रखते हुए हाईकमान ने एक झटके में सब कुछ बदल दिया।
रातोरात हुए इस परिवर्तन ने कई नेताओं के करियर पर ब्रेक लगा दी तो कईयों का करियर खत्म भी हो गया। किंतु एक समग्रतया नया चेहरा और नए मंत्रिमंडल के साथ शुरुआत करना यह भी अपने आप में एक बहुत बड़ी चैलेंज थी और आज भी है। मंत्रिमंडल में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्रभाई त्रिवेदी जैसे एकाध अनुभवी को छोड़कर कोई भी मंत्रीपद का अनुभव नहीं रखता है, खुद मुख्यमंत्री भी नही। किंतु उनकी एवं और साथी विधायकों की स्वच्छ इमेज को ध्यान में रखकर लिया गया यह बेहद हिम्मत से भरा कदम था। किंतु जब अगले साल जनता के सामने जनादेश लेने जाना है तब सिर्फ स्वच्छ इमेज से काम नहीं चलेगा, जनता के काम भी जल्द से जल्द हो और प्रजा का विश्वास सरकार में दृढ़ हो यह भी उतना ही जरूरी है।
भाजपा गुजरात में पिछले ढाई दशक से शासन में है और भाजपा को इस जीत को बनाए रखने में कार्यकर्ताओं का नेटवर्क, भाजपा का कमिटेड वोटर और कांग्रेस की राजनीतिक दिवालियापन जैसी स्थिती का हमेशा भरपूर लाभ मिला है। अब नए समय में यह जरूरी नहीं कि यह लाभ मिलता ही रहे। नई पीढ़ी के युवा मतदाता जिनकी संख्या कुल मतदाता के 40% जितनी है वह और महिला मतदाता अत्यंत महत्त्व के फेक्टर है। युवाओं को रोजगार और महिलाओं के घर का बजट इन दोनों को कैसे संभाला जाए यह सरकार का बडा सरदर्द है और इसीलिए वर्तमान सरकार कई सारे प्रश्नों में प्रोएक्टिव होकर और कुछ प्रश्नों में कोर्ट की डांटडपट सुनकर भी कार्यरत हुई है।
अगले महीने गुजरात मे ग्राम पंचायतों के चुनाव होने जा रहे हैं। ग्राम पंचायतों के चुनाव वैसे तो मैंडेट के बिना ही किए जाते हैं इसलिए यह बताना मुश्किल होता है कि कौन से गांव ने किस पार्टी को अपना सहयोग दिया है। हालांकि सरकार के पास ग्रामोद्धार का बहुत बड़ा बजट रहता है और इसलिए “समरस गांव” समेत कई सारी योजनाओं से वह किसानों को अपनी तरफ ला सकती हैं।
ग्राम पंचायतों के चुनावों के बाद जनवरी में गुजरात सरकार का महत्वाकांक्षी वाइब्रेंट गुजरात २०२२ सम्मिट होगा। जिसका काम वैसे तो विभिन्न राज्यों और देशों में रोड शो और एमओयू के द्वारा शुरू हो चुका है। किंतु इस समिट में आनेवाले देशों का पार्टिसिपेशन और संभवित इन्वेस्टमेंट के आधार पर युवाओं के लिए रोजगारी की संभावनाओं के संकेत मिलेंगे। दो साल के “कोरोना उपवास” के बाद यह आर्थिक वृद्धि और इन्वेस्टमेंट गुजरात के उद्योग और अर्थतंत्र के लिए संजीवनी बन सकते हैं। जिसका राजनीतिक लाभ जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी राज्य सरकार लेना चाहेगी।
आने वाले ४ महीनों में पंजाब और उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों मे विधानसभाओं के चुनाव होने जा रहे हैं। इनमें से जिन राज्यों में भाजपा सत्ता पर हैं वहां वह सत्ता पर काबिज रहता है और पंजाब में अगर अमरिंदरसिंह के साथ मिलकर सत्ता पर वापस आता है तो उसकी राजनीतिक ताकत बढ़ जाएगी और भाजपा के अन्य राज्यों के मतदाताओं पर उसका एक सानूकुल संदेश जाएगा।
जहां तक गुजरात की स्थानिक राजनीति का सवाल है भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सी आर पाटील अब संगठन के काम को बडी आक्रमकता से ग्रामीण इलाको तक ले जा रहे है। यह देखते हुए सरकार और संगठन के बीच का सहयोग आनेवाले दिनों में मजबूत होने के आसार हैं। फिलहाल संगठन ज्यादातर सरकार के ऊपर हावी होता हुआ दिखता है किंतु चुनाव जीतने के लिए सिर्फ सरकार के अच्छे कामो पर आधारित नहीं रहा जा सकता यह जानते हुए भाजपा के चतुर नेता आनवाले कुछ महीनों में बडी राजनैतिक उठापटक करें ऐसी पूरी संभावनाएं हैं। पिछले २ सालो में विभिन्न स्तर के चुनावों में भाजपा को मिली सफलता ने उसके कार्यकर्ताओं में भी जोश भर दिया है और जिस प्रकार से मंत्रिमंडल में नो-रिपीट थिअरी लागू हुई उसको देखते हुए अब सीनियर कार्यकर्ताओं में भी आनेवाले चुनाव में टिकट मिलने की आशा जगी है।
जहां तक कांग्रेस की राजनीतिक चैलेंज का प्रश्न है भाजपा इस मामले में पूर्णतया आश्वस्त है क्योंकि कांग्रेस का स्थानीय यूनिट अंदर अंदर की लड़ाई और टांगखिंचाई में बहुत ज्यादा व्यस्त हैं। लंबे समय से वह अपने प्रदेश का अध्यक्ष भी चुन नहीं पाए हैं जिसका एक बहुत ही ज्यादा नेगेटिव असर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के मानस पर हुआ है। और कांग्रेस के लिए कोढ में खाज जैसी स्थिति यह है कि आम आदमी पार्टी अपनी राजनैतिक न्यूसेंस वैल्यू बढ़ाने में बहुत जोर लगा रही है साथ में ओवैसी कांग्रेस के परंपरागत मुस्लिम मतों को बेहद धीरज से और धीरे-धीरे अपनी और ला रहे हैं। इन दोनों पार्टियों की गुजरात की राजनीति में पैंठ बढ़ना कॉन्ग्रेस की राजनैतिक संपत्ति में दीमक लगने का स्पष्ट संकेत है। हाल ही में हुए गांधीनगर महानगर पालिका के चुनाव के परिणाम उसका उत्तम उदाहरण है।
इन स्थितियों में भाजपा के लिए वाइब्रेंट समिट के बाद का समय राजनीतिक दृष्टि से गोल्डन पीरियड माना जा सकता जुलसा देनेवाली गर्मी और अनिश्चित मॉनसून शुरू होने से पहले ही अगर चुनाव घोषित किया जाए तो भाजपा अपने विरोधी दलोकी की ताकत को कम कर सकती हैं, और इसी के चलते हुए भाजपा अगर गुजरात मे मार्च या अप्रैल मे चुनाव घोषित कर दे तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।