गुजरात में 10,000 से अधिक डॉक्टर 2004 से लंबित भत्तों (pending allowances ) के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कोविड-19 जब चरम (peak) पर था, तब दिन-रात काम करने वाले डॉक्टरों ने मंत्रियों और नौकरशाहों के सामने अपना मुद्दा रखा और यहां तक कि विरोध भी किया। इस बीच, प्रदेश में भाजपा सरकार और भी बड़े बहुमत के साथ सत्ता में लौट आई है, लेकिन डॉक्टरों का बकाया अभी तक नहीं चुकाया गया है।
आखिरकार गुजरात हाई कोर्ट ने इस महीने स्वास्थ्य और परिवार विभाग (Health and Family Department) के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी मनोज अग्रवाल, राज्य के फाइनेंस सेक्रेटरी जेपी गुप्ता, गुजरात की मेडिकल कमिश्नर शाहमीना हुसैन, ईएसआईएस (गुजरात) के चिकित्सा सेवा निदेशक (Director of Medical Services) समीर शाह को नोटिस जारी कर उनसे इस मुद्दे का समाधान पूछा है। जस्टिस निशा ठाकोर द्वारा 12 दिसंबर को जारी आदेश में कहा गया है, “आपको 9 जनवरी 2023 को सुबह 11 बजे तक इस अदालत के सामने खुद या किसी वकील के जरिये पेश होने का नोटिस दिया जाता है।”
कारण बताओ नोटिस के अनुसार, नौकरशाहों को यह साबित करने की आवश्यकता है कि उनकी निष्क्रियता (inaction) के लिए उन्हें दंडित (penalised) क्यों नहीं किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ताओं के वकील पीएस दत्ता और एसपी मजूमदार हैं।
डॉक्टर अपने मूल वेतन के 25% पर नॉन-प्रैक्टिसिंग अलाउंस (NPA) के हकदार हैं, और पेंशन सहित सभी सेवा मामलों के लिए एनपीए की गणना की जाती है। जब अप्रैल 2004 में महंगाई भत्ता (DA) 67% था, तो उसमें से 50% को महंगाई वेतन (Dearness Pay) में बदल दिया गया था। इस कदम का उद्देश्य वेतन बढ़ाना था, लेकिन डॉक्टरों को इससे मासिक वेतन में नुकसान हो गया। गुजरात में सरकारी डॉक्टरों को सालाना लगभग 1.50 लाख रुपये का नुकसान हुआ है।
डॉक्टरों के मामले में एनपीए के साथ 67 फीसदी डीए दिया गया। पेंशनर्स डॉक्टर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष डॉ शैलेंद्र वोरा ने कहा, ‘जब यह गलती हुई, तो हमने अधिकारियों से संपर्क किया। लेकिन किसी ने इसे ठीक नहीं किया। मजबूरी में हमने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और जीत गए। राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने पल भर में उसकी याचिका खारिज कर दी। लेकिन तब भी सरकार ने अदालत के आदेश को नहीं माना। इसलिए हमने अवमानना याचिका (contempt petition) दायर की है।”
वोरा ने कहा कि “दुर्भाग्य से” आईएएस अधिकारी “डॉक्टरों के लिए स्टैंड नहीं लेना चाहते हैं।” वे सहयोगी नहीं हैं। हमारे बारे में भूल जाएं, उन्होंने तो गुजरात हाई कोर्ट के नोटिस का जवाब या कोई आधिकारिक बयान (official statement) भी नहीं दिया है। हम 2004 से लड़ रहे हैं और अपनी गाढ़ी कमाई के लिए लड़ते रहेंगे।
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