अपने परिवार के साथ कनाडा की सीमा से अमेरिका में अवैध रूप से घुसने की कोशिश में जान गंवाने वाले जगदीश पटेल का अंतिम संस्कार विदेश में ही होगा। यहां रहने वाले उनके रिश्तेदारों ने कहा, “हमारे पास शवों को वापस लाने के लिए पैसे नहीं हैं।”
वाइब्स ऑफ इंडिया (वीओआई) ने कनाडा-अमेरिका सीमा पर इमर्सन के पास ठंड से हुई गुजरातियों की मौत और बड़े अमेरिकी सपने के लिए जानलेवा जोखिम उठाने की उनकी अंतर्निहित इच्छा को समझने के लिए डिंगुचा में लगभग दो दिन बिताए। कनाडा ने गुरुवार सुबह तक पीड़ितों की पहचान की घोषणा नहीं की थी। जगदीश पटेल, उनकी पत्नी वैशाली और बच्चों विहांगी और धार्मिक की एक पुरानी तस्वीर को लेकर हमने 20 से अधिक लोगों से बात की। इनमें से अधिकतर ने कहा कि हालांकि डिंगुचा एक छोटा-सा गांव है; फिर भी पटेलों ने लोगों को अपनी योजनाओं के बारे में नहीं बताया था।
गांव अब डरा हुआ है। अमेरिका में आसपास के गांवों से कम से कम 300 अप्रवासी हैं। मध्यम आयु वर्ग के पुरुषों के एक समूह ने हमसे पूछा, “अगर वे यहां आते हैं तो सीआईए अधिकारियों को कैसे पहचाना जाए?’’
गुरुवार की देर रात कांग्रेस नेता बलदेवभाई ठाकोर ने वाइब्स ऑफ इंडिया को पीड़ितों के सामाजिक और आर्थिक इतिहास को समझने और उनके घर तक ले जाने में मदद की। उन्होंने हमें जगदीश, वैशाली, विहांगी और धार्मिक के सम्मान में आयोजित होने वाली प्रार्थना सभा के लिए शुक्रवार सुबह गांव पहुंचने के लिए कहा। विडंबना यह है कि जगदीश की मां मधुबेन पटेल गांव की उप सरपंच हैं, फिर भी वह और उनके पति ने प्रार्थना सभा में भाग लेने के बजाय गांव ही छोड़ दिया।
बूढ़ी हो चुकी चेहरे पर झुर्रियों के साथ, कॉस्टको बैग में भरकर करके हमें घर में बनी चावल की कुरकुरी खिलाने वाली उत्साही महिला से जब हमने बिक्री को लेकर पूछा, तो वह कतई अच्छे मूड में नहीं थी। लगभग व्यंग्य करते हुए उसने कहा, “बैला थीजी गया। गाम नी आबरू गई (यह अपमानजनक है कि नामर्द कनाडा का मौसम नहीं झेल सका)। यह बयान हालांकि आपत्तिजनक है, फिर भी हमने काफी कुछ समझने के लिए इसे जस का तस रखने का फैसला किया है।
इसने मुझे एक हल्के बम की तरह मारा। ‘चमकदार दिखने वाले अमेरिकी जीवन’ की महिमा क्यों प्रभावित होगी? मेरे सवाल पर उन्होंने कहा, “आपको लगता है कि डिंगुचा का अब कोई भविष्य है? अगले कुछ सीजन हम गरीबी में सड़ेंगे और फिर देखते हैं कि कौन हिम्मत जुटाता है और एक और अवैध अप्रवासी बनने के लिए हीरो बन जाता है। इतना ही नहीं, अमेरिकी भी मूर्ख नहीं हैं।”
लेकिन यहां आपके पास हमेशा आपका खेत होता है, मैंने कहा, “क्या आपको लगता है कि इस गांव में पटेलों को कोई सम्मान मिलता है?” तभी एक क्लिक की आवाज आई। मैंने महसूस किया कि कनेक्शन- दोनों सेलुलर और व्यक्तिगत- काट दिया गया।
जगदीश पटेल के घर पहुंचने से पहले हम कनाडा के लिए एक इमिग्रेशन एजेंसी का साइन बोर्ड- हेवनली- के सामने से गुजरे। इसके बाद एक और दिलचस्प साइन बोर्ड दिखा। उसमें दावा किया गया था, “आपको कनाडा जाने के लिए आईईएलटीएस यानी अंतरराष्ट्रीय अंग्रेजी भाषा की ट्रेनिंग लेने की आवश्यकता नहीं है।” एक ड्राइवर ने डींग मारी कि डिंगुचा के लोग बिना वीजा के ऑक्सफोर्ड तक चले गए हैं। उसने बेशर्मी से कहास “हम स्मार्ट लोग हैं। इस जगदीशभाई के पास दोष देने के लिए उनकी नियति के अलावा कुछ नहीं है।” वह तो शिक्षक रह चुके थे; अमेरिका में अब बहुत सारे उबर वाले लोग हैं, जिनके पास कारें हैं।
जगदीश पटेल के एक मंजिला घर में 40 से ज्यादा लोग मौत पर मातम मनाने के लिए जमा हुए थे। बाहर मैंने एक महिला के साथ बात करने की कोशिश की, जिसने कहा कि मैं उन्हें दक्षा कह सकती हूं। उन्हें अपने पति के लिए खाना बनाने में देर हो रही थी, जो पास की एक फैक्ट्री में काम करते हैं और उन्हें अपनी शिफ्ट के लिए देर हो रही थी। फैक्ट्री ने उनसे 102 घंटे काम कराया और उन्हें हर महीने 8,000 रुपये यानी करीब 106 डॉलर का भुगतान किया। वह दुखी होकर कहती हैं, “हम में से आठ उस पैसे पर ही निर्भर हैं।” वह इस बात पर भी जोर देती हैं कि उनकी “आव्रजन” प्रक्रिया को अब थोड़ी देर इंतजार करना होगा। वह हमें बताती हैं, “मुझे इस विचार से नफरत है, लेकिन मुझे आशा है कि मेरे पति हमें ऑस्ट्रेलिया में नहीं छोड़ेंगे। ऑस्ट्रेलिया केवल युवाओं के लिए अच्छा है।”
दक्षा ने कहा कि वह वैशाली को जानती थीं। वह एक ‘फैशनेबल महिला’ थी। उन्होंने कहा, “वैशाली वहां (अमेरिका में) एक ब्यूटी सैलून में काम करना चाहती थी।” उन्होंने कहा, “तो क्या हुआ, अगर वह मर गई? वैशाली डिंगुचा से बच सकती थी। वहां उसका दाह संस्कार अच्छे से हो सकेगा। यहां तो रोज मरने जैसा है। किसी चीज के लिए पैसा नहीं है।” आपको पता है कि सरकार को हमें मुफ्त सैनिटरी नैपकिन देने तक की नौबत आ गई है।
जीवन पर मृत्यु
जीवन क्रूर है। मृत्यु कोमल है। ऐसा कहते हुए पटेलों के एक रिश्तेदार ने हमें चौंका दिया। उनके चचेरे भाई जसवंत बिल्कुल स्पष्ट हैं। वे दाह संस्कार का खर्च नहीं उठा सकते और वे शवों को वापस डिंगुचा नहीं लाना चाहते। उन्होंने कहा, “मेरी एक ही इच्छा है कि कनाडा सरकार उन्हें हिंदू तरीके से दाह संस्कार करे। हम भाजपा के मतदाता हैं।”
कांग्रेसी बलदेव ठाकोर कहते हैं, ”हमारे विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर गुजरात का प्रतिनिधित्व करते हैं। मैं उनसे इस घटना की जांच करने का अनुरोध करता हूं।”
दिलचस्प बात यह है कि जगदीश पटेल की मां मधुबेन डिंगुचा की उप सरपंच हैं। वह पहले ही गांव छोड़ चुकी थी और अपने छोटे बेटे और परिवार को खोने से दुखी हैं।
एक ग्रामीण ने बताया, “मधुबेन पांच साल से हमारे गांव की डिप्टी सरपंच हैं। अगर उनके बेटे को भी बेहतर जीवन यापन करने के लिए अवैध रूप से अमेरिका जाना पड़ा और जान गंवानी पड़ी, तो फिर हमारे बारे में सोचें।” उन्होंने कहा, “हमारे गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल हैं, लेकिन मैं आपको बता दूं कि पटेलों के लिए यहां कोई नौकरी नहीं है।”
चचेरे भाई जसवंत कहते हैं, जगदीश पटेल स्नातक थे, फिर भी स्कूल ने उन्हें अच्छे पैसे देने से मना कर दिया। जिस कारखाने में वह काम करते थे, वह उन्हें 9,000 रुपये प्रति माह से भी कम देता था। क्या उनके पास अवैध अप्रवासी बनने की कोशिश न करने के अलावा कोई विकल्प था?
बता दें कि वाइब्स ऑफ़ इंडिया ने ही सबसे पहले इन मौतों और उनके गुजरात कनेक्शन के बारे में रिपोर्ट दी थी।
यह जोखिम भरा निर्णय लेने से पहले जगदीश ने स्पष्ट रूप से एक शिक्षक, एक कपड़ा व्यापारी, एक किसान और एक पतंग विक्रेता होने की कोशिश की थी, लेकिन कहीं से जीने लायक पैसा नहीं आ रहा था। कुछ समय के लिए वह अहमदाबाद चले गए, लेकिन वहां भी सभ्य तरीके से कमा नहीं सके।
जगदीश ने पूरा एक साल यह अध्ययन करने में लगा दिया कि वह अमेरिका कैसे पहुंचेंगे। दिलचस्प बात यह है कि दो लोगों को छोड़कर किसी को नहीं पता था कि वह गांव छोड़कर अमेरिका जा रहे हैं। वह अपने बच्चों के कॉलेज पूरा करने और शादी करने के बाद ही वापस आना चाहते थे।
डिंगुचा से लौटते समय मुझे ऐसे 59 गांवों के नाम बताए गए, जिनमें से प्रत्येक में अमेरिका में कम से कम तीन अवैध अप्रवासी थे। जाह्नवी के पास तो इनमें से कई की दिलचस्प कहानियां और आंकड़े हैं।
छोटा गांव, बड़े सपने
अहमदाबाद से 44 किलोमीटर दूर स्थित डिंगुचा गांव की आधिकारिक आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार 3,284 है। इसमें ठाकोर और पटेल शामिल हैं, जो मुख्य रूप से खेती और कारखाने में काम करते हैं। रोजगार के बेहतर अवसर प्राप्त करने के लिए यहां के अधिकांश परिवारों से कम से कम एक सदस्य अमेरिका या कनाडा में कार्यरत है।
एक स्थानीय हमें डिंगुचा के अलिखित मानदंडों के बारे में बताता है, “अगर कोई बच्चा डिंगुचा में पैदा होता है, तो उसके भाग्य में एक बात लिखी होती है- वह अमेरिका जाएगा। अगर कोई आदमी न तो अमेरिका जाता है और न ही उसका कोई रिश्तेदार होता है, तो इस बात की बहुत कम संभावना होती है कि उसे दुल्हन भी मिलेगी। ”
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि यहां कृषि में 232, कृषि मजदूरी में 321, गृह उद्योग में 17 और अन्य व्यवसाय में 452 लोग हैं। 266 से अधिक परिवार गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं। शैक्षिक बुनियादी ढांचे के नाम पर गांव में बमुश्किल दो प्राथमिक विद्यालय हैं।
फिएस्टा नामक रेस्तरां में एक 29 वर्षीय युवा ने हमसे बातचीत की। वह पटेल परिवार की दुखद मौतों से अचंभित था। कहा, “मैं तो आईईएलटीएस की तैयारी कर रहा हूं। मैं कनाडा और अमेरिका जाऊंगा और सही तरीके से जाऊगा। मैं वहां पुलिसकर्मी बनना चाहता हूं।”
और, वह जोर देकर कहता है, “मैं अगले 20 साल तक डिंगुचा नहीं आऊंगा। क्योंकि जो भी आया है कहता है, इस गांव में कुछ भी नहीं बदला है।”