विक्टोरिया यूनिवर्सिटी के मिशेल इंस्टीट्यूट के नए शोध से पता चलता है कि महामारी के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय छात्र रिकॉर्ड संख्या में कनाडा, ब्रिटेन और अमेरिका जा रहे हैं। लेकिन ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जाने वाले अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या में भारी कमी जारी है।
हमारी रिपोर्ट- छात्र, बाधा: अंतरराष्ट्रीय शिक्षा और महामारी (Student, interrupted: international education and the pandemic)- के तहत अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए पांच प्रमुख स्थलों की जांच की गई। ये जगहें थीं: ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड, ब्रिटेन और अमेरिका।
हमने पाया कि महामारी की पहली लहर के कारण नए अंतरराष्ट्रीय छात्रों में भारी गिरावट आई। लेकिन अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए खुलने वाले देशों ने जोरदार वापसी की है।
शोध से एक जटिल स्थिति का पता चलता है, जहां महामारी ने दुनिया भर के अंतरराष्ट्रीय छात्रों को अलग तरह से प्रभावित किया।
चीन के नए छात्रों की संख्या अभी भी महामारी से पहले की तुलना में कम है। लेकिन भारत और नाइजीरिया जैसे कुछ देशों से जाने वालों की संख्या रिकॉर्ड स्तर पर है।
अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा इस मायने में महत्वपूर्ण है कि कितने देश अपने शिक्षा क्षेत्र में निवेश का प्रबंधन करते हैं। रिपोर्ट में बताया गया है अंतरराष्ट्रीय छात्रों को आकर्षित करने पर कई देश नए सिरे से जोर दे रहे हैं।
झटका सबको, लेकिन फायदा कुछ को ही
हमारी रिपोर्ट ने संभावित अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर महामारी के प्रभाव को समझने के लिए छात्र वीजा डेटा की जांच की। छात्र वीजा डेटा एक प्रमुख संकेतक है, क्योंकि अधिकांश छात्रों को नामांकन करने से पहले आमतौर पर वीजा की आवश्यकता होती है।
नीचे दिया गया चार्ट 2018 से 2021 तक प्रत्येक वर्ष सितंबर तक 12 महीनों के लिए, प्रत्येक देश में दिए गए नए छात्र वीजा की कुल संख्या को दर्शाता है। महामारी के परिणामस्वरूप सभी देशों में नए छात्र संख्या में गिरावट आई है। लेकिन कुछ देश तो अन्य की तुलना में अधिक प्रभावित हुए हैं।
ब्रिटेन ने सबसे मजबूत वापसी की है। इसके नए अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या रिकॉर्ड स्तर पर है– कोविड पूर्व से 38% अधिक।
वार्षिक डेटा महामारी के कारण होने वाले व्यवधान को अस्पष्ट कर सकता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि देशों ने सामान्य नामांकन पैटर्न में बदलाव करते हुए 2020 और 2021 में विभिन्न स्तरों पर प्रतिबंध लागू किए।
नीचे दिया गया चार्ट 2020 और 2021 में परिवर्तनों का पता लगाने के लिए त्रैमासिक डेटा का उपयोग करता है। सितंबर 2019 की तिमाही चार्ट के लिए उपयोग किए गए सूचकांक 100 के बराबर है। मौसमी रूप से समायोजित डेटा का उपयोग करने से चढ़ाव और उतार के लिए नियंत्रण करते समय परिवर्तनों का पता लगाना संभव हो जाता है, जो आमतौर पर पूरे वर्ष होते हैं।
यह चार्ट महामारी शुरू होने के बाद 2020 में जारी किए गए नए छात्र वीजा में गिरावट को गहराई से दिखाता है। ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, ब्रिटेन और अमेरिका में 80% से अधिक की गिरावट दर्ज की गई है। सितंबर 2021 की तिमाही तक, कनाडा, ब्रिटेन और अमेरिका ने छात्र वीजा पर उपलब्ध डेटा में रिकॉर्ड स्तर पर वापसी की थी।
यह ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देशों के लिए अच्छी खबर हो सकती है, जिन्होंने दूसरे देशों में छात्रों को खो दिया है। कनाडा, यूके और यूएस में तेजी की ओर वापसी बताती है कि सीमाओं के खुलने का इंतजार कर रहे छात्रों की मांग में कमी आई है। यदि ऐसा है, तो ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की यात्रा अधिक संभव होने पर नए अंतरराष्ट्रीय छात्रों को बड़ी संख्या में नामांकन करना चाहिए।
स्रोत देश से क्या प्रभाव पड़ा है?
छात्रों के अपने देशों में होने वाले कार्यक्रम भी महामारी के दौरान निर्णयों को प्रभावित करेंगे। हमारे रिसर्च ने नए अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर उनके मूल देश द्वारा महामारी के प्रभाव को देखा।
नीचे दी गई तालिका सबसे बड़े स्रोत देशों के लिए नए छात्र वीजा की संख्या में परिवर्तन दिखाती है।
नाइजीरिया ने सबसे मजबूत वापसी की है, जो बड़े पैमाने पर यूके में पढ़ने वाले नाइजीरियाई छात्रों की वृद्धि से प्रेरित है।
भारत के नए अंतर्राष्ट्रीय छात्रों में भी पूर्व-महामारी के स्तर की तुलना में लगभग 27% की वृद्धि हुई है। इस वृद्धि के पीछे छात्रों की पसंद में बदलाव है।
2019 की तुलना में सितंबर 2021 तक 12 महीनों में ऑस्ट्रेलिया जाने वाले भारतीय अंतर्राष्ट्रीय छात्रों की संख्या में 62% की गिरावट आई है। इसके विपरीत, यूके में नए भारतीय अंतर्राष्ट्रीय छात्र दोगुने से अधिक, 174% की बढ़ोतरी करते दिखे हैं।
भारत अंतरराष्ट्रीय छात्रों के सबसे बड़े स्रोत देश के रूप में चीन से आगे निकल गया है।
नीतिगत मतलब क्या हैं?
नामांकन में बदलाव और अंतरराष्ट्रीय छात्रों के आर्थिक योगदान पर ध्यान केंद्रित करने के साथ अंतरराष्ट्रीय शिक्षा का विश्लेषण महज संख्या का खेल हो सकता है। लेकिन महत्वपूर्ण नीतिगत निहितार्थ हैं।
उदाहरण के लिए, अंतरराष्ट्रीय छात्र पसंद पर भू-राजनीतिक तनाव के प्रभाव के बारे में बहुत बहस हुई है। हमारा शोध बताता है कि प्रशासनिक बाधाओं और यात्रा प्रतिबंधों के कारण चीनी अंतर्राष्ट्रीय छात्रों में कमी की संभावना अधिक है।
अंतर्राष्ट्रीय छात्र भी शिक्षा क्षेत्रों में कुल निवेश में बहुत योगदान करते हैं। ऑस्ट्रेलिया में, अंतरराष्ट्रीय छात्रों की फीस विश्वविद्यालय के कुल राजस्व का लगभग 27% है। अंतरराष्ट्रीय छात्रों को खोने से शिक्षा संस्थानों, खासकर विश्वविद्यालयों पर बड़ा असर पड़ सकता है।
महामारी के बाद के माहौल में, सरकारें अपने अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा क्षेत्रों को विकसित करने और बढ़ावा देने की कोशिश कर रही हैं।
अमेरिका में बिडेन प्रशासन ने जुलाई 2021 में “अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा के लिए नए सिरे से प्रतिबद्धता” की घोषणा की। ब्रिटेन सरकार का लक्ष्य 2030 तक अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा के मूल्य में 75% की वृद्धि करना है।
कहना ही होगा कि महामारी का अंतरराष्ट्रीय शिक्षा पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। ऐसे में अत्यधिक प्रतिस्पर्धी वैश्विक बाजार में वापसी के हालात तैयार हैं।