अहमदाबाद। केंद्रीय भाजपा नेतृत्व ने भले ही पाटीदार समुदाय को नजरंदाज किए जाने की नाराजगी दूर करने की खातिर इसी समुदाय के भूपेंद्र पटेल नया मुख्यमंत्री बना दिया है। लेकिन समाज के युवा इससे भी संतुष्ट नहीं दिखाई देते हैं।
आरक्षण आंदोलन चलाने वाले हार्दिक पटेल की पाटीदार अनामत आंदोलन समिति (पास) ने भूपेंद्र पटेल सरकार से समुदाय के युवाओं के खिलाफ दर्ज केस वापस लेने की मांग को लेकर फिर से आंदोलन शुरू किया है।
खास बात यह है कि फिर से शुरू हो रहे आंदोलन में हार्दिक पटेल कहीं नहीं दिखते हैं। वे अब कांग्रेस की गुजरात इकाई के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। वास्तव में माना जाता है कि ‘पास’ ने फरवरी में तभी से हार्दिक से दूरी बना ली है, जब युवा पाटीदार ब्रिगेड ने स्थानीय निकाय चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) का समर्थन किया। इसके बाद आप 27 सीटों के साथ सूरत नगर निगम में मुख्य विपक्षी बन गई जबकि कांग्रेस को कोई सीट नहीं मिली।
राजनीतिक रूप से ताकतवर समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले पास ने राज्य सरकार से पाटीदार युवाओं के खिलाफ दर्ज 250 आपराधिक मामलों को वापस लेने की मांग की है। पहले कई बार इस तरह के वायदे दिए गए थे। गौरतलब है कि गुजरात की आबादी में पाटीदारों की हिस्सेदारी करीब 14 फीसदी है।
राज्य पुलिस ने पाटीदारों के खिलाफ ये मामले 2015 दर्ज किए थे जब हार्दिक पटेल के नेतृत्व में पूरे राज्य में आरक्षण आंदोलन चलाया गया था। अब हार्दिक कांग्रेस पार्टी में शामिल हो चुके हैं। ‘पास’ के मौजूदा संयोजक सूरत के अल्पेश कठीरिया ने भी मांग की है कि सरकार को हार्दिक पटेल और उनके खिलाफ दायर देशद्रोह के चार मामलों को तुरंत वापस लेना चाहिए।
पाटीदारों के विभिन्न वर्ग पिछले कुछ महीनों में आपस में मिल रहे हैं। कथित तौर पर समुदाय के साथ हो रही अवहेलना को लेकर कडवा और लेउवा पटेलों के एक स्वर में बोलना असामान्य बात है।
बीजेपी ने एक जैन, विजय रूपाणी को हटाकर एक पाटीदार को मुख्यमंत्री बनाकर इसी असंतोष को खत्म करने का प्रयास किया है। लेकिन लगता है इससे समुदाय में कोई बहुत सांत्वना मिलती नहीं दिख रही है।
समुदाय के युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले ‘पास’ ने इस सप्ताह की शुरुआत में राज्य की राजधानी गांधीनगर में एक बैठक बुलाई थी जिसमें आक्रामक नेताओं दिनेश बंभानिया और धार्मिक मालवीय सहित लगभग 100 सदस्यों ने भाग लिया था।
उन्होंने भूपेंद्र पटेल सरकार को सरदार पटेल की जयंती 31 अक्टूबर तक का अल्टीमेटम देने का फैसला किया। इसके बाद वे आंदोलन तेज कर देंगे। ‘पास’ के वर्तमान संयोजक अल्पेश कठीरिया ने पुष्टि की कि हम 31 अक्टूबर तक मुद्दों को हल करने के लिए सरकार को एक ज्ञापन सौंपकर अल्टीमेटम देंगे।
कठीरिया ने कहा कि 2015 में आरक्षण आंदोलन के दौरान 14 निर्दोष पाटीदार युवा मारे गए थे। हम मारे गए प्रत्येक युवा के परिजनों के लिए सरकारी नौकरी चाहते हैं। सरकार ने हमसे आंदोलनकारियों के खिलाफ मामले वापस लेने का वादा किया था। लेकिन 250 से ज्यादा मामले अभी तक लटके हैं।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने उन पर और हार्दिक पटेल पर कठोर राजद्रोह के चार मामले दर्ज किए हैं। उन्हें भी वापस लिया जाना चाहिए।
इतना ही नहीं, ‘पास’ ने पाटीदारों और अन्य तथाकथित आर्थिक रूप से पिछड़ी उच्च जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के कोटा में शामिल करने के बारे में निर्णय लेने के लिए आर्थिक पिछड़ापन सर्वेक्षण कराने की मांग फिर से उठाई है।
अल्पेश कठीरिया ने बताया कि संसद ने हाल ही में 127वां संविधान संशोधन विधेयक पारित करके राज्यों को अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) की पहचान करने की अनुमति दी है। वह कहते हैं कि यह तय करने से पहले कि क्या पाटीदार ओबीसी श्रेणी के तहत आरक्षण के लिए पात्र हैं, राज्य को सर्वेक्षण करने की आवश्यकता है। हम चाहते हैं कि सरकार पिछड़ेपन के सर्वेक्षण का आदेश दे और फिर पाटीदारों को ओबीसी सूची में शामिल करने के बारे में फैसला करे।
गुजरात में एक बार फिर पाटीदार युवाओं का दावा ऐसा मुद्दा है, जिसे पटेल सरकार को जल्द से जल्द हल करना पड़ सकता है। भाजपा को 2015 में स्थानीय निकाय चुनावों में और उसके बाद 2017 में हुए चुनावों में नुकसान उठाना पड़ा था क्योंकि उसने हार्दिक पटेल के आंदोलन को सख्ती से कुचलने का प्रयास किया था।