आर्टोडोंटिक्स विश्व के कई डेंटिस्ट के द्वारा आरम्भ की गयी एक पहल है जहाँ डेंटिस्ट अपने ख़ाली समय में अपनी कला को उजागर कर सभी के समक्ष प्रस्तुत करते है। इसका आरम्भ 2019 में मुंबई निवासी डॉ. वैशाली दास द्वारा किया गया ,जो पेशे तो डेंटिस्ट है पर साथ ही साथ व अपने ख़ाली वक्त में मूर्तिकला भी करती है।
वाइब्ज़ ओफ़ इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया की, “हालाँकि बचपन से मेरा सपना तो डेंटिस्ट बनने का था पर कहीं ना कहीं आर्ट को लेकरमन में काफ़ी कुछ था, तो जब में अपने शुरुआती दिनों में डेंटिस्ट प्रैक्टिस के लिए आयी तो कहीं ना कहीं यह अनुभव होने लगा कि डेंटिस्ट होना कहीं ना कहीं आर्टिस्ट होने के समान है क्यूँकि लोगों की मुस्कराहट में भी हमें कला का नमूना प्रदर्शित होता है । और जब मुझे लगा कि में यह महसूस कर रही हूँ तो कहीं ना कहीं सब डेंटिस्ट भी यह महसूस कर रहे होंगे तो फिर मुझे लगा कि मुझे कुछ ऐसा शुरू करना चाइए जहाँ सभी डेंटिस्ट मिलकर कला का प्रदर्शन करे, और इसी के साथ कुछ लोगों के साथ मिलकर 2019 में ताज महल पैलेस में आर्ट गैलरी का आयोजन किया जिसमें कई सारे लोग जुड़े और फिर क़ाफ़िला बनता गया आज 60 से ज़्यादा लोग हमारे साथ देश विदेश से जुड़े हुए है। ”
आर्टोडोंटिक्स ना केवल पेंटिंग, व मूर्तिकला से सम्बंधित है परंतु फ़ोटोग्राफ़ी और डिजिटल आर्ट से जुड़े डेंटिस्ट के लिए भी काफ़ी बड़ा प्लेटफॉर्म है।
आर्टोडोंटिक्स में पेशे से तो सीनियर डेंटिस्ट पर पैशन के तौर पर मंझे हुए फोटोग्राफर जो १२ वर्ष से फोटोग्राफी से जुड़े है अली तुंकीवाला ने बताया कि , डेंटिस्ट के तौर पर हमें ना केवल दाँतो की ख़ूबसूरती परंतु उसकी फोटोग्राफी पर भी ध्यान देना होता है। और फिर उसी कैमरा को हम बाहर लेकर जाना सीख गए और उसके बाद ट्रैवल के दौरान या बाहर कई घूमने के दौरान उसको उपयोग करने लगे तो अंदर से एक सुकून का एहसास होने लगा और ना जाने कब कैमरा एक अच्छा दोस्त बन गया पता ही नहीं चला। पहले ट्रैवल करते थे तब फ़ोटो लेते थे परंतु अब फ़ोटो लेने के लिए ट्रैवल करते है।
अहमदाबाद निवासी डॉ.लोपा शाह जो 12 वर्ष से तो डेंटिस्ट है पर बचपन से ही पेंटिंग को लेकर उनके मन में रुचि है और वो बुद्धासना नामक पेंटिंग का निर्माण करती है। उनके अनुसार, “ आर्टोडोंटिक्स से जुड़ने के पीछे वजह यही थी की मेरी कला को लोगों के सामने प्रदर्शित किया जाए। जब पहली बार मुझे इस ग्रूप के साथ जुड़ने के लिए कहा गया तो मन में यही विचार आया कीचलो अब पेशे के साथ अपनी रुचि को भी वक्त और पहचान दी जा सकेगी. और आर्ट के साथ जुड़ने में मेरे परिवार ने भी काफ़ी मदद की। आर्टोडोंटिक्स की सबसे अच्छी बात यही है कि इसमें जो हमारी पेंटिंग बेची जाती है उसका पैसा समाज सेवा के लिए जाता है।”